Patwari Hatyakand Update: शहडोल। पटवारी हत्याकांड में अब जिला प्रशासन और पुलिस आमने सामने हैं. देवलोंद थाना के झिरिया गोपालपुर में पटवारी की कुचलकर हत्या कर दी गई थी. इस हत्या में दर्ज की गई एफआईआर अब विवादों में हैं. इस एफआईआर को लेकर कई तरह के विरोधाभास बयान सामने आए हैं जिससे यह साबित हो रहा है कि पटवारी को कुचलकर मारने वाला हत्यारा अभी भी पुलिस की गिरफ्त से बाहर है.


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परिजनों ने उठाए सवाल
पुलिस ने जिसे हत्या का मुख्य आरोपी बनाया है अब उसके परिजनों ने ही एफआईआर झूठा बताया है. आरोपी शुभम की मां और चाचा का कहना है कि उनका बेटा घर में सो रहा था. सुबह वह खुद 1000 रुपए के लालच में ट्रैक्टर पहुंचाने थाना आया था जिसके बाद पुलिस ने उसे ही हत्या का आरोपी बना दिया. परिजनों का कहना है कि जब शुभम ने हत्या की थी तो दिन में वह खुद ट्रैक्टर चलाकर थाना क्यों आता?


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पुलिस की जांच पर उठे सवाल
इसके बाद पुलिस ने पहले बयान दिया कि हमने ट्रैक्टर जब्त करने के बाद उसके मालिक को गिरफ्तार किया. मालिक नारायण सिंह की निशानदेही के आधार पर शुभम विश्वकर्मा को आरोपी बनाया गया है. यानी पुलिस का कहना है कि वाहन मालिक ने हमें जिसे बताया हमने उसे उठाकर आरोपी बना दिया.


अब पुलिस का कहना हमने एफआईआर उन पटवारी के बयान के आधार पर लिखा है जो घटना के चास्मदीद गवाह हैं. हमें पटवारियों ने हो ट्रैक्टर का नंबर बताया, उन्होंने ही ट्रैक्टर का रंग बताया. पुलिस ने एफआईआर में जो जैसा भी लिखा है पटवारियों के बयान के आधार पर लिखा है. इसमें पुलिस ने अपने से कुछ नहीं जोड़ा है.


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पुलिस की जांच पर क्या बोले पटवारी
पटवारियों का कहना है कि सब कुछ इतनी जल्दी हुआ है कि हम कुछ अच्छे से देख ही नहीं पाए. हम लोग पीछे थे, फौज से रिटायर पटवारी थोड़ी फुर्तीले थे वो हमसे पहले ट्रैक्टर के पास चले गए थे. 5 से 10 सेकंड के भीतर ट्रैक्टर पटवारी को कुचलते हुए आगे भाग गया. हम लोग न तो गाड़ी का नंबर देख पाए, न ट्रैक्टर का रंग और न ही अच्छे से चालक को निहार पाए. घटना होने के बाद हम सन्न हो गए थे.


क्या है सवाल
सवाल यह भी खड़ा होता है कि जिले की कलेक्टर एवं एसडीएम नायब तहसीलदार जहां घटनाक्रम हुआ इस विषय में कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं है. पुलिस सारी कार्रवाई कर रही है और प्रशासनिक व्यवस्था द्वारा कोई मदद नहीं की जा रही है. जिला प्रशासन के मौन धारण करने का कारण क्या है यह मौन धारण करने के कारण कई सवाल जन्म लेते हैं. क्या माफियाओं के साथ जिला प्रशासन की मिली भगत थी, किसको जिला प्रशासन बचाना चाहता है?


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