भोपालः मध्यप्रदेश के बहुचर्चित ई टेंडर घोटाले (E tender scam) को लेकर ईडी (ED) की टीम ने भोपाल, बेंगलुरू और हैदराबाद में 18 स्थानों पर सर्चिंग की है. ईडी की टीम मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव गोपाल रेड्डी के हैदराबाद स्थित बंजारा हिल्स वाले बंगले पर भी पहुंची. सूत्रों का कहना है कि ईडी के अधिकारियों ने करीब 5 घंटे से भी ज्यादा वक्त तक रेड्डी से पूछताछ की है.


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दरअसल, 3000 करोड़ के ई टेंडर घोटाले में हैदराबाद की दो कंपनियां मैक्स मेंटाना (Max Mentana) और माईक्रो जीवीपीआर इंजीनियर्स लिमिटेड (Micro GVPR Engineers Limited) के प्रमोटर गुंडलुरू वीरा शेखर रेड्डी का नाम भी ई टेंडर घोटाले में सामने आया है. बताया जा रहा है कि मेंटाना कंपनी से करोड़ों रुपए हवाला के तौर पर ट्रांसफर किए गए थे. जिसके तार पूर्व मुख्य सचिव गोपाल रेड्डी से जुड़ने के कारण ईडी ने उनसे पूछताछ की है.


कंपनी के ठिकाने पर सर्चिंग
इसके अलावा ईडी की टीम ने भोपाल में मैक्स मेंटाना कंपनी के ठिकाने पर भी देर रात सर्चिंग की.  जबकि मानसरोवर कॉम्पलेक्स में ऑस्मो आईटी साल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड के संचालक विनय चौधरी, अरुण चतुर्वेदी और सुमित गोलवलकर के यहां भी सर्चिंग हुई. ये कार्रवाई इतनी गोपनीय रखी गई कि स्थानीय पुलिस तक का सहयोग नहीं लिया गया था. दूसरी तरफ ई टेंडर का साफ्टवेयर डेवलप करने वाली बेंगलुरू की अंट्रेस सॉफ्टवेयर कंपनी के यहां भी सर्चिंग की बात बताई जा रही है.


ई टेंडर घोटाले में अचानक से शुरू हुए सर्चिंग अभियान से हड़कंप मचा हुआ है. बता दें कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने इन सभी कंपनियों के खिलाफ ईओडब्ल्यू (EOW) में मामला दर्ज किया था, जिसमें ऑस्मो आईटी सोल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड के संचालक विनय चौधरी, अरुण चतुर्वेदी और सुमित गोलवलकर, एमपीएसईडीसी के महाप्रबंधक एनके ब्रम्हे को जेल भी भेजा गया था. इस पूरे मामले में तत्कालीन जल संसाधन एवं वर्तमान गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा के ओएसडी पर भी ईओडब्ल्यू (EOW)ने मामला दर्ज किया था.


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जानिए क्या है ई-टेंडरिंग घोटाला?
मध्य प्रदेश सरकार ने अलग-अलग विभागों के ठेकों में भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए 2014 में ई-टेंडरिंग की व्यवस्था लागू की थी. इसके लिए बेंगलुरू की निजी कंपनी से ई-प्रोक्योरमेंट पोर्टल बनवाया गया. तब से मध्य प्रदेश में हर विभाग इसके माध्यम से ई-टेंडर करता है.


मध्य प्रदेश लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग (MP Public Health Engineering Department or MP-PHE) ने जलप्रदाय योजना के 3 टेंडर 26 दिसंबर 2017 को जारी किए थे. इनमें सतना के 138 करोड़, राजगढ़ के 656 करोड़ और 282 करोड़ के टेंडर थे.


टेंडर नंबर 91: सतना के बाण सागर नदी से 166 एमएलडी पानी 1019 गांवों में पहुंचाने के लिए 26 दिसंबर 2017 को ई.टेंडर जारी किया गया था. इस प्रोजेक्ट के लिए 5 बड़ी नामी कंपनियों ने टेंडर भरे थे.


टेंडर नंबर 93: राजगढ़ जिले की काली सिंध नदी से 68 एमएलडी पानी 535 गांवों को सप्लाई करने का टेंडर 26 दिसंबर 2017 को जारी किया गया था. इस प्रोजेक्ट के लिए 4 नामी कंपनियों ने  टेंडर भरे थे.


टेंडर नंबर 94: राजगढ़ जिले के नेवज नदी पर बने बांध से 26 एमएलडी पानी 400 गांवों को सप्लाई करने के लिए  26 दिसंबर 2017 को ई.टेंडर जारी किया गया था. इस प्रोजेक्ट के लिए 7 कंपनियों ने टेंडर भरे थे.


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इस तरह हुआ था ई-टेंडिरिंग में फर्जीवाड़ा?
टेंडर टेस्ट के दौरान 2 मार्च 2018 को जल निगम के टेंडर खोलने के लिए डेमो टेंडर भरा गया. जब 25 मार्च को टेंडर लाइव हुआ तो पता चला कि डेमो टेंडर अधिकृत अधिकारी पीके गुरू के इनक्रिप्शन सर्टिफिकेट से नहीं बल्कि फेक इनक्रिप्शन सर्टिफिकेट से भरा गया था. बोली लगाने वाली एक निजी कंपनी 2 टेंडरों में दूसरे नंबर पर रही. कंपनी ने इस मामले में गड़बड़ी की शिकायत की. कंपनी की शिकायत पर तत्कालीन प्रमुख सचिव ने विभाग की लॉगिन से ई-टेंडर साइट को ओपन किया तो उसमें एक जगह लाल क्रॉस दिखाई दिया.


ई-टेंडर में टेम्परिंग कर रेट बदले गए
उन्होंने इस संबंध में जब विभाग के अधिकारियों से पूछा तो जवाब मिला कि यह रेड क्रॉस टेंडर साइट पर हमेशा ही आता है.  तत्कालीन प्रमुख सचिव ने पूरे मामले की जांच कराई तो सामने आया कि जब ई-प्रोक्योरमेंट में कोई छेड़छाड़ करता है तो रेड क्रॉस का निशान आ जाता है. जांच में ई-टेंडर में टेम्परिंग कर रेट बदलने का तथ्य उजागर हुआ.  इसके लिए एक नहीं कई डेमो आईडी का इस्तेमाल हुआ. तत्कालीन प्रमुख सचिव मैप-आईटी मनीष रस्तोगी ने ई-टेंडर घोटाला पकड़ा था.


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