सुरखी में बजी गोविंद की वंशी, जानिए कांग्रेस की बड़ी हार के कारण
बुंदेलखंड अंचल की सुरखी विधानसभा सीट पर बीजेपी के गोविंद सिंह राजपूत ने बड़ी जीत दर्ज की है. शुरुआत में यहां मुकाबला कड़ा दिख रहा था. लेकिन बाद में कांग्रेस प्रत्याशी पारुल साहू पिछड़ती चली गयी.
सागरः बुंदेलखंड अंचल की हाईप्रोफाइल सुरखी सीट पर बीजेपी प्रत्याशी गोविंद सिंह राजपूत ने बड़ी जीत दर्ज की है. उन्होंने कांग्रेस की पारुल साहू को 41143 वोट से चुनाव हराया है. गोविंद सिंह राजपूत को चुनाव के बीच में ही मंत्री पद भी छोड़ना पड़ा था. जिससे यहां मुकाबला कड़ा हुआ. लेकिन नतीजों के बाद गोविंद सिंह राजपूत ने यहां बड़ी जीत दर्ज की.
बीजेपी प्रत्याशी की जीत के कारण
बेहतर चुनाव मैनेजमेंट
गोविंद सिंह राजपूत के पास राजनीति का लंबा अनुभव रहा है. बेहतर चुनाव मैनेजमेंट उनका सबसे बड़ा प्लस प्वाइंट रहा. गोविंद सिंह राजपूत के परिवार के लोग लगातार सुरखी क्षेत्र लगातार सक्रिय रहे. उनके दोनों भाई गुलाब सिंह राजपूत और हीरासिंह राजपूत क्षेत्र में अपने भाई के पक्ष में प्रचार करते रहे और क्षेत्र की जनता से सतत संपर्क में रहे. जिसका फायदा चुनाव में गोविंद सिंह राजपूत को मिला. इसके अलावा बुंदेलखंड अंचल के बड़े बीजेपी नेताओं का साथ भी उन्हें मिला. मंत्री भूपेंद्र सिंह राजपूत और गोपाल भार्गव लगातार उनके समर्थन में प्रचार करते रहे. तो पिछले चुनाव के प्रत्याशी सुधीर यादव भी गोविंद सिंह राजपूत के साथ कदम से कदम मिलाकर चले जिससे यहां उनकी राह आसान हो गयी.
कांग्रेस से भाजपा में आने के बाद बनाए गए थे मंत्री जीतने पर पुनः मंत्री बनने से क्षेत्र के विकास की उम्मीद..
गोविंद सिंह राजपूत जब कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए तो उन्हें शिवराज सरकार में भी मंत्री बनाया गया. प्रदेश में बीजेपी की सरकार होने की वजह से सुरखी में विकास कार्यों की जमकर सौगात दी गयी. जिससे यहां गोविंद सिंह राजपूत की राह आसान रही. इसके अलावा सिंधिया और शिवराज भी लगातार उनके समर्थन में प्रचार करते रहे. सीएम शिवराज ने चुनाव जीतने के बाद फिर से गोविंद सिंह राजपूत को मंत्री बनाने की बात कही है.
कांग्रेस प्रत्याशी की कमियों का मिला फायदा
कांग्रेस प्रत्याशी पारुल साहू के परिवार की छवि उनके विधायक रहते जनता का काम नहीं करने की रही. पारुल साहू पर जनता ने आरोप लगाया है चुनाव जीतने के बाद क्षेत्र से सात साल तक लगातार वे लापता रही. अचानक से पारुल ने कांग्रेस ज्वाइन की और चुनाव मैदान में उतरी. जिससे क्षेत्र की जनता में उनके प्रति नाराजगी रही.
कांग्रेस प्रत्याशी की हार के कारण...
सत्ता पक्ष का विधायक रहते हुए भी क्षेत्र में काम नहीं होने का आरोप
पारुल साहू ने 2013 के आम चुनाव में गोविंद सिंह राजपूत को महज 141 वोट के अंतर से चुनाव हराया था. पांच साल के दौरान उन पर क्षेत्र के काम न करने के आरोप लगे. जिससे क्षेत्र की जनता में कही न कही पारुल साहू के प्रति नाराजगी रही जिसका उन्हें चुनाव के दौरान नुकसान उठाना पड़ा.
क्षेत्र से लगातार 7 साल तक लापता रहने का मुद्दा...
पांच साल के विधायक कार्यकाल में पारुल साहू पर क्षेत्र से लापता रहने के आरोप भी खूब लगे. पारुल साहू मूल रुप से सागर शहर से आती थी. लेकिन वे सुरखी से चुनाव जीती. लिहाजा काम नहीं होने के के मुद्दे को बीजेपी ने चुनाव में जमकर भुनाया.
बूथ पर कार्यकर्ताओं की कमी...
पारुल साहू की हार का यह एक बड़ा कारण रहा. बूथ पर कार्यकर्ताओं की कमी होने से पारुल प्रचार के दौरान अकेली ही दिखी. हालांकि कमलनाथ ने उनके पक्ष में सभाएं जरुर की. लेकिन बीजेपी की अपेक्षा कांग्रेस नेतृत्व जमीनी स्तर पर कमजोर नजर आया जिसका नुकसान चुनाव में हुआ. इस दौरान संगठन स्तर पर कांग्रेस के स्थानीय नेता चुनाव से दूर रहे. जिससे पारुल चुनावी प्रचार में मुश्किल में नजर आयी. ये कुछ ऐसी वजहे रही जिससे वे शायद चुनाव हार गयी.
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