गरियाबंद: जीवन को जीने के लिए महिलाओं को बहुत संघर्ष करना होता है.  जीवन के हर पड़ाव में महिलाओं को अलग-अलग किरदार निभाने पड़ते हैं. कभी बेटी, कभी बहन, कभी पत्नी तो कभी मां. अपने हर किरदार में खरा उतरना भी महिलाओं के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है. घर परिवार से इतर देखें तो महिलाएं आज पुरुषों से किसी भी क्षेत्र में कम नहीं है, फिर बात चाहे शहरी महिलाओं की हो या ग्रामीण महिलाओं की हर क्षेत्र में महिलाएं अपनी ताकत और जज्बे से लोगों को आश्चर्यचकित कर रहीं हैं. दुनिया आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मना रही है. पॉवरफुल बिजनेस वीमेन, फेमस एक्ट्रेस की स्टोरी अपने बहुत पढ़ी होंगी, लेकिन छत्तीसगढ़ के गरियाबंद की सावित्री की कहानी लोगों को लिए किसी मिसाल से कम नहीं है. 
   
कैंसर पीड़ित पति को घर से निकाला
शादी के बाद सावित्री के जीवन में सबकुछ ठीक चल रहा था. दो बच्चों के साथ परिवार में सारी खुशियां थी, लेकिन अचानक घर की खुशियों को मानों ग्रहण सा लग गया था. सावित्री के पति को कैंसर हुआ. ससुराल वालों को पति की बीमारी का पता चला तो उन्होंने पति और दोनों बच्चों के साथ उसे घर से निकाल दिया. 


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मायके में झोपड़ी बनाकर किया गुजर बसर
ससुराल वालों ने साथ छोड़ा तो उम्मीदों की डोर मायके वालों ने बांधी. सावित्री के परिवार को रहने के लिए जमीन का टुकड़ा दिया. बीमार पति और दो बच्चों को लेकर उसी जमीन पर एक झोपड़ी तैयार की और जिंदगी के नए आयाम को फिर से शुरू किया. 


भाई ने बांधी हिम्मत 
जिंदगी किसी तरह पटरी पर आई थी कि कैंसर से पीड़ित सावित्री के पति ने उसे अलविदा कह दिया. अब घर की जिम्मेदारी उसी के कंधों पर थी. उसके पास अब मजदूरी करने के सिवाय और कोई विकल्प नहीं था. 13 रुपये से मजदूरी शुरू की, लेकिन दो बच्चों के साथ इतने कम पैसों में गुजारा करना मुश्किल हो रहा था. इसलिए लीक से हटकर कुछ कर गुजरने का जज्बा लेकर सावित्री आगे बढ़ी और इस कदम में उसका भाई ढाल बनकर अपनी बहन के साथ खड़ा हुआ.



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कुछ करने का था जज्बा
सावित्री का भाई उसके जज्बे को पहचान गया था. सावित्री को कुछ नया काम करना था. सावित्री ने अपनी ताकत का पहचाना, सूप और टोकरी बनाना शुरू किया. भाई ने पैसे उधार लेकर एक पुरानी साइकिल का इंतजाम किया और फिर साइकिल से गांव-गांव में जाकर बेचना का काम शुरू किया.   


मेहमत से पटरी पर आई जिंदगी
पति की मौत के बाद जिंदगी थम सी गई थी लेकिन दो बच्चों की जिम्मेदारी ने उसे मेहनत करने की हिम्मत दी. सावित्री ने अपनी मेहनत से न केवल अपने परिवार को सड़क पर लाने से बचाया बल्कि अपने जीवन की गाड़ी को एक बार फिर पटरी पर लाकर खड़ा कर दिया. 


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गांववालों के लिए मिसाल बनीं सावित्री
सावित्री की मेहनत का लोहा उसके गांव वाले तो मानते ही है, इसके साथ ही आस-पास के गांव के लोग भी सावित्री की मिसाल देते हैं. सावित्री ने एक कुशल गृहणी होने के साथ-साथ परिवार के मुखिया होने का फर्ज भी अदा किया है. 


बेटों के लिए रोल मॉडल बनीं मां 
सावित्री ने कैसे मेहनत की है, इस बात से उनके बच्चों बहुत अच्छी तरह वाकिफ हैं. बच्चों को काम के लिए इधर-उधर न भटकाने पड़े, इसलिए उसने घर में ही बच्चों के लिए एक दुकान खोल दी है. आज सावित्री अपनों बेटों के लिए रोल मॉडल बन गईं हैं.