Kamal Nath political career: लोकसभा चुनाव 2024 से पहले एमपी में सियासी घमासान तेज है. मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ को लेकर अटकलों का बाजार गर्म है. उनके भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में शामिल होने की अटकलें तेज हैं. गौरतलब है कि कमलनाथ की गिनती न सिर्फ मध्य प्रदेश बल्कि देश के कद्दावर नेताओं में होती है. वो छिंदवाड़ा से कई बार लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं. उन्हें हमेशा से ही गांधी परिवार का करीबी माना जाता रहा है, तो आइए जानते हैं कमलनाथ के राजनीतिक करियर के बारे में..


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इंदिरा गांधी के 'तीसरे बेटे' से छिंदवाड़ा के शहंशाह तक
देश के किसी भी कोने में राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले लोग जब छिंदवाड़ा की बात करते हैं तो उनके दिमाग में सबसे पहला नाम कमलनाथ का आता है. कारण यह है कि कमल नाथ ने यहां लगातार इतने चुनाव जीते हैं कि कमल नाथ और छिंदवाड़ा एक-दूसरे के पर्याय बन गए हैं. हालांकि, कमल नाथ मूल रूप से मप्र के रहने वाले नहीं हैं. कमल नाथ का जन्म कानपुर में हुआ था. आपातकाल के बाद 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी पहली बार हार गई थी. 1980 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस देश की सत्ता में वापसी की कोशिश कर रही थी. इंदिरा गांधी फिर से देश की प्रधानमंत्री बनने में लगीं थीं. आपको बता दें कि कमलनाथ और छिंदवाड़ा का रिश्ता करीब 45 साल पुराना है. कमल नाथ ने 1980 में पहली बार छिंदवाड़ा से लोकसभा चुनाव जीता था. इंदिरा गांधी ने खुद कमल नाथ को मैदान में उतारा था.


देखें वीडियो:
Kamal Nath News: जब इंदिरा गांधी ने कमलनाथ को कहा था अपना 'तीसरा बेटा'


खास बात यह थी कि 13 दिसंबर 1979 को मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में एक चुनावी सभा थी. उस वक्त कांग्रेस अध्यक्ष और पूर्व पीएम इंदिरा गांधी यहां सभा करने आई थीं. तब सभा में इंदिरा गांधी ने युवा कमल नाथ की ओर इशारा करते हुए कहा था कि ये सिर्फ कांग्रेस नेता नहीं हैं, राजीव और संजय के बाद ये मेरे तीसरे बेटे हैं. बता दें कि अपने पहले चुनाव में कमलनाथ ने 147,779 वोट हासिल किए थे. उन्होंने जनता पार्टी के प्रतुल चंद्र द्विवेदी को मात दी थी. कमलनाथ की इस जीत के बाद छिंदवाड़ा में एक नए युग की शुरुआत हुई. इसके बाद छिंदवाड़ा कमलनाथ का गढ़ बन गया और वह 1991 तक लगातार 4 लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंचे.


कमलनाथ की पहली हार 
1996 में हवाला कांड में कमल नाथ का नाम आया था. जिसके चलते पार्टी ने उनके स्थान पर उनकी पत्नी अलका नाथ को उम्मीदवार बनाया था. जहां चुनाव में अलका नाथ विजयी हुईं थीं. हालांकि, लगभग 8 महीने के बाद, अलका नाथ ने अचानक इस्तीफा दे दिया. जिससे कमल नाथ फिर से चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में भाजपा नेता और पूर्व सीएम सुंदरलाल पटवा ने कमल नाथ को मात दी थी. बता दें कि छिंदवाड़ा में ये कमलनाथ और कांग्रेस की पहली हार थी. बहरहाल, इसके बाद 1998 के लोकसभा चुनावों में, कमल नाथ ने जीत हासिल की और 2014 तक सीट बरकरार रखी. 2019 में, लोकसभा चुनावों के दौरान, कमल नाथ एमपी के सीएम थे. जिसके चलते उनके बेटे नकुल नाथ ने छिंदवाड़ा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. वर्तमान में नकुल नाथ यहां से सांसद हैं.


हार के पीछे एक दिलचस्प कहानी
छिंदवाड़ा में कमलनाथ ने कई चुनाव लड़े, जिनमें से एक को छोड़कर सभी जीते. इस हार के पीछे एक दिलचस्प कहानी है. 1996 में, कमलनाथ पर हवाला कांड के आरोप लगे थे. इसके कारण पार्टी ने उनकी पत्नी अलकानाथ को छिंदवाड़ा से मैदान में उतारा. अलकानाथ चुनाव जीत गईं, लेकिन कमलनाथ संसदीय सदस्य नहीं थे, इसलिए उन्हें बंगला खाली करने का नोटिस मिला. उन्होंने पत्नी को बंगला अलॉट करने की कोशिश की, लेकिन नियमों के मुताबिक पहली बार चुनाव जीतने वालों को उतना बड़ा बंगला नहीं मिल सकता था. कहा जाता है कि जब हवाला कांड की बात ठंडी हुई, तो कमलनाथ ने अपनी पत्नी से इस्तीफ़ा दिलवाया. 1997 में छिंदवाड़ा सीट पर उपचुनाव हुए, जिसमें कमलनाथ को बीजेपी नेता और पूर्व सीएम सुंदर लाल पटवा से मुकाबला हुआ. जहां कमलनाथ को हार का सामना करना पड़ा. बता दें कि ये छिंदवाड़ा लोकसभा सीट पर कमलनाथ के साथ-साथ कांग्रेस की भी यह पहली हार थी.


 


कमलनाथ और संजय गांधी की दोस्ती 
मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम कमल नाथ और पूर्व पीएम इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी बेहद खास दोस्त थे. उत्तराखंड के दून स्कूल में संजय गांधी और कमल नाथ की दोस्ती परवान चढ़ी. कलकत्ता से बी.कॉम की डिग्री के साथ स्नातक करने के बाद, कमल नाथ ने राजनीति में एंट्री की. संजय गांधी के कारण ही कमल नाथ ने 1968 में युवा कांग्रेस में प्रवेश किया था. बता दें कि आपातकाल के उथल-पुथल भरे दौर के बीच, संजय गांधी ने युवा नेताओं की एक कोर टीम इकट्ठी की, जिनमें कमलनाथ भी थे. इस टीम में जगदीश टाइटलर, आरके धवन और रुखसाना सुल्ताना जैसे लोग शामिल थे.


बता दें कि संजय गांधी को लेकर कमलनाथ का एक किस्सा बेहद मशहूर भी है. आपातकाल के बाद देश में जनता पार्टी का शासन था. 1979 में संजय गांधी को एक मामले में तिहाड़ जेल में बंद कर दिया गया था. इस दौरान इंदिरा गांधी अपने बेटे की सुरक्षा को लेकर काफी चिंतित थीं. कहा जाता है कि तब कमलनाथ ने जानबूझकर तिहाड़ जेल जाने के लिए जज से लड़ाई की थी. जज ने कोर्ट की अवमानना के आरोप में कमलनाथ को सात दिन की सजा सुनाई थी. जहां वह तिहाड़ जेल में संजय गांधी के साथ रहे थे. 


कहा जाता है कि इंदिरा गांधी को कमलनाथ 'मां' कहकर बुलाते थे. संजय गांधी, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के निधन के बाद भी वह गांधी परिवार के खास बने रहे. यहां तक कि जब ताकत सोनिया गांधी और राहुल गांधी के हाथों में आई, तब भी कमल नाथ गांधी परिवार के भरोसेमंद विश्वासपात्रों में से एक थे.


नौ बार सांसद और दो बार विधायक
बता दें कि कमलनाथ छिंदवाड़ा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ते हुए नौ बार विजयी हुए. उन्होंने 1980, 1984, 1989, 1991, 1998, 1999, 2004, 2009 और 2014 में जीत हासिल की. इसके अलावा वह 2019 और 2023 में दो बार छिंदवाड़ा से विधायक का चुनाव भी जीत चुके हैं.


कई बार बने मंत्री
कमल नाथ ने अपने राजनीतिक जीवन में कई महत्वपूर्ण मंत्री पद संभाले हैं. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली UPA 2 सरकार में वो 22 मई 2009 से 19 जनवरी 2011 तक सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री थे. इसके बाद उन्होंने 19 जनवरी 2011 से 28 अक्टूबर 2012 तक शहरी विकास मंत्री और 28, 2012 अक्टूबर से 26 मई, 2014 तक संसदीय कार्य मंत्री का कार्यभार संभाला था.


वहीं, मनमोहन सिंह की UPA 1 सरकार में वो 24 मई 2004 से 22 मई 2009 तक वाणिज्य और उद्योग मंत्री थे. इससे पहले, उन्होंने पी.वी. नरसिम्हा राव की सरकार में 16 सितंबर, 1995 से 16 मई, 1996 तक कपड़ा राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और 26 जून, 1991 से 16, 1995 सितंबर तक पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) के रूप में कार्य किया था. 


MP के 18वें मुख्यमंत्री
2018 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने जीत हासिल की थी. 15 साल के अंतराल के बाद कांग्रेस सत्ता में लौटी थी. इस जीत में कमलनाथ की भी अहम भूमिका रही. चुनाव से पहले कमलनाथ को मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष की जिम्मेदारी मिली थी. जिसके चलते जीत के बाद पार्टी ने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी कमलनाथ को दी. हालांकि, उनकी सरकार महज 15 महीने बाद ही गिर गई क्योंकि ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कई विधायक बीजेपी में शामिल हो गए थे.


15 महीने की सरकार गिरने के बाद जब एक बार फिर बीजेपी की सरकार बनी तो कमलनाथ विपक्ष के सबसे बड़े नेता बने. कमल नाथ ने 19 अगस्त, 2020 को मध्य प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका संभाली और वह 29 अप्रैल, 2022 तक इस पद पर रहे. चूंकि, कमल नाथ एमपी पीसीसी के अध्यक्ष भी थे और नेता प्रतिपक्ष भी थे. इसलिए 28 अप्रैल 2022 को, कमल नाथ ने मध्य प्रदेश विधानसभा में विपक्ष के नेता के पद से इस्तीफा दिया था. कांग्रेस ने 2023 का विधानसभा चुनाव भी कमल नाथ के चेहरे पर ही लड़ा था. हालांकि, इस चुनाव में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा.


कमलनाथ द्वारा संभाले गए पद


वर्ष विवरण
1980 - 1984 7वीं लोक सभा के लिए चुने गए
1984 - 1989 8वीं लोक सभा के लिए चुने गए
1989 - 1991 9वीं लोक सभा के लिए चुने गए
1991 - 1996 10वीं लोक सभा के लिए चुने गए
पर्यावरण एवं वन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) (1991-95)
कपड़ा राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) (1995-96)
1998 - 1999 12वीं लोक सभा के लिए चुने गए
सदस्य, पेट्रोलियम और रसायन संबंधी स्थायी समिति
सदस्य, संसद सदस्य स्थानीय क्षेत्र विकास योजना संबंधी समिति
सदस्य, सलाहकार समिति, विद्युत मंत्रालय
1999 - 2004 13वीं लोक सभा के लिए चुने गए
सदस्य, वित्त संबंधी स्थायी समिति (1999-2000)
सदस्य, सलाहकार समिति, खान और खनिज मंत्रालय (2000-04)
2004 - 2009 14वीं लोक सभा के लिए चुने गए
केंद्रीय कैबिनेट मंत्री (वाणिज्य और उद्योग)
2009 - 2014 15वीं लोकसभा के लिए चुने गए
केंद्रीय कैबिनेट मंत्री सड़क परिवहन और राजमार्ग (2009-11)
केंद्रीय कैबिनेट मंत्री शहरी विकास के लिए  (2011-14)
संसदीय मामलों के केंद्रीय कैबिनेट मंत्री (2012-14)
2014 - 2018 16वीं लोकसभा के लिए चुने गए
प्रोटेम स्पीकर
सदस्य, वाणिज्य संबंधी स्थायी समिति
सदस्य, सलाहकार समिति, वित्त और कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय
2019 - 2023 15वीं मध्य प्रदेश विधानसभा के लिए निर्वाचित
मध्य प्रदेश के सीएम (2018-20)
नेता प्रतिपक्ष, एमपी विधानसभा (2020-22)
2023 -वर्तमान 16वीं मध्य प्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए