राघोगढ़ अब रियासत तो नहीं रही, लेकिन `राजा साहेब` और `छोटे साहेब` का जलवा अब भी बरकरार
राघोगढ़ रियासत भले ही खत्म हो गई हो, मगर इसके वारिश आज भी राजा कहलाते हैं और मध्य प्रदेश की राजनीति इन्हीं के इर्द-गिर्द घूमती नजर आती है.
मध्य प्रदेश, छत्तीसढ़, राजस्थान में राजे-रजवाड़ों का लंबा इतिहास रहा है. आजादी के बाद अब रियासतें तो नहीं रहीं लेकिन इन शाही परिवारों की खनक आज भी भारत की राजनीति में गूंजती है. इन रियासतों ने अपने दौर में अपने क्षेत्र की सियासत को खासा प्रभावित किया है. राजगद्दी जाने के बाद इन शाहीघरानों ने अपने रसूख के बल पर देश की राजनीति में अपनी पकड़ बनानी शुरू कर दी और ये राजघराने, विधानसभा हो या फिर लोकसभा, सभी जगह अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखे हुए हैं.
मसलन मध्य प्रदेश में राघोगढ़ के राजा दिग्विजय सिंह 10 वर्षों तक मुख्यमंत्री रहे हैं. इसी तरह ग्वालियर राजघराने से ताल्लुक रखने वाली वसंधुरा राजे राजस्थान की मुख्यमंत्री हैं. उनके माधवराव सिंधिया के बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया मध्य प्रदेश में कांग्रेस की तरफ से मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में शुमार हैं.
राघोगढ़ रियासत भले ही खत्म हो गई हो, मगर इसके वारिश आज भी राजा कहलाते हैं और मध्य प्रदेश की राजनीति इन्हीं के इर्द-गिर्द घूमती नजर आती है. राघोगढ़ अब रियासत नहीं बल्कि गुना जिले की राघोगढ़ विधानसभा सीट के रूप में जाना जाता है. कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और प्रदेश के 2 बार मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह की पारंपरिक सीट है. इस बार यहां से दिग्विजय सिंह के पुत्र जयवर्द्धन सिंह चुनाव लड़ रहे हैं.
मध्य प्रदेश की सियासत में एक ऐसा राजघराना जिसका हर दल में है बोलबाला
आज भी राजा साहेब और छोटे साहब
रियासत तो नहीं रही मगर, राघोगढ़ के लोग आज भी दिग्विजय सिंह को राजा साहेब, दिग्गीराजा या हुकुम के नाम से पुकारते हैं. उनके छोटे भाई लक्ष्मण सिंह को छोटे साहब कहा जाता है. इस सीट पर एक लंबे समय से कांग्रेस का ही कब्जा रहा है.
मध्य प्रदेश : जहां सियासत में आज भी चलता है रियासतों का सिक्का
राजगद्दी से सत्ता की कुर्सी तक
राघोगढ़ के 12वें शासक बलभद्र सिंह 1945 में सिंहासन पर बैठे थे, लेकिन आजादी के बाद जब राजशाही का अंत हुआ तो उन्होंने लोकतंत्र की राह पकड़ी और बलभद्र सिंह ने 1951 के चुनावों में एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा और राघोगढ़ विधानसभा सीट पर जीती हासिल की थी. राघोगढ़ के राजा बलभद्र सिंह के बेटे दिग्विजय सिंह ने 1971 में राजनीति में प्रवेश किया और वह राघोगढ़ नगरपालिका के अध्यक्ष बने. 1977 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीत कर राघोगढ़ विधानसभा क्षेत्र से विधान सभा सदस्य बने. 1980 में फिर से चुनाव जीतने के बाद दिग्विजय को अर्जुन सिंह मंत्रिमंडल में राज्यमंत्री बनाया गया. 1984 और 1992 में वह लोकसभा के सदस्य चुने गए. 1993 और 1998 में वह दो बार राज्य के मुख्यमंत्री बने. राघोगढ़ सीट पर इसी शाही परिवार का कब्जा रहा है. दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह राघोगढ़ सीट से विधायक हैं.
एक ही परिवार के हाथ सत्ता की डोर
दिग्गी राजा के छोटे भाई लक्ष्मण सिंह यहां से सांसद रह चुके हैं और उनके बेटे विक्रमादित्य सिंह इस समय राघोगढ़ नगरपालिका के अध्यक्ष हैं. जयवर्धन सिंह का बात करें तो दिग्विजय सिंह के इस इकलौते पुत्र को महाराज कुंवर या छोटे बाबा साहेब के नाम से भी जाना जाता है. जयवर्धन ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन करने के बाद कोलंबिया यूनिवर्सिटी से डिग्री हासिल करके राजनीति में कदम रखा और पिछले चुनावों में शानदार जीत हासिल की. इस बार इस परिवार का कांग्रेस की सत्ता में वापसी को लेकर अहम रोल होगा.