अब मनमानी नहीं कर सकेंगे MP के प्राइवेट स्कूल, शिवराज सरकार ने तय की फीस बढ़ोतरी की सीमा
स्कूली शिक्षा विभाग की ओर से बनाए गए नियमों के मुताबिक प्राइवेट स्कूलों को साल में सिर्फ एक बार 10-15 % की बढ़ोतरी को ही मंजूरी मिलेगी. निजी स्कूल अधिकतम 15 फीसदी से ज्यादा फीस नहीं बढ़ा सकेंगे. इस संबंध में स्कूली शिक्षा विभाग ने गजट नोटिफिकेशन भी जारी कर दिया है.
भोपालः मध्य प्रदेश में प्राइवेट स्कूल अब मनमानी फीस नहीं बढ़ा पाएंगे. सरकार प्राइवेट स्कूलों पर नकेल कसने की तैयारी कर रही है. इसके लिए स्कूली शिक्षा विभाग ने फीस बढ़ोतरी के नियम बनाए हैं, जिससे निजी शिक्षण संस्थानों के फीस स्ट्रक्चर पर राज्य सरकार का कंट्रोल होगा. राज्य और कलेक्टरों की अध्यक्षता में जिला स्तरीय समिति निजी स्कूलों की फीस तय करेगी.
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स्कूली शिक्षा विभाग ने बनाए नियम
स्कूली शिक्षा विभाग की ओर से बनाए गए नियमों के मुताबिक प्राइवेट स्कूलों को साल में सिर्फ एक बार 10 से 15 % की बढ़ोतरी को ही मंजूरी मिलेगी. निजी स्कूल अधिकतम 15 फीसदी से ज्यादा फीस नहीं बढ़ा सकेंगे. इस संबंध में स्कूली शिक्षा विभाग ने गजट नोटिफिकेशन भी जारी कर दिया है. फीस बढ़ोतरी के प्रस्ताव जिला समिति राज्य स्तरीय समिति को भेजेगी.
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कानून था, नियमों के बिना अधूरा था
अभी निजी स्कूल हर साल 15 से 25 फीसद फीस बढ़ा देते हैं और अभिभावक हर साल विरोध दर्ज कराते हैं. सरकार ने इसका स्थायी समाधान दिसंबर 2017 में ’मप्र निजी विद्यालय फीस विधेयक 2017’ लाकर करने की कोशिश की थी. कानून तो बना पर कोई नियम न होने के कारण मैदानी अधिकारी चाहकर भी निजी स्कूलों की मनमानी पर रोक नहीं लगा पा रहे थे. विस्तृत नियमों के बिना इस कानून का कोई मतलब ही नहीं था. अब स्कूल शिक्षा विभाग ने नियम बनाकर इस परेशानी को दूर कर दिया है.
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नियम में क्या प्रावधान किए गए हैं?
प्राइवेट स्कूलों के फीस स्ट्रक्चर को लेकर बनाए गए नियमों में कई कड़े प्रावधान दिए गए हैं. इसके तहत निजी स्कूल हर साल 10 से 15 फीसद से ज्यादा फीस नहीं बढ़ा सकेंगे. अधिक फीस वसूलने पर स्कूल प्रबंधन पर 2 लाख रुपये तक का अर्थदंड और कानूनी कार्रवाई का प्रावधान है. दूसरी बार शिकायत सही पाए जाने पर अर्थदंड दोगुना होगा. फीस बढ़ाने के लिए स्कूल को अपनी आमदनी और खर्चे दिखाना होंगे. स्कूल किसी दुकान विशेष से पाठ्यक्रम की किताबें एवं अन्य सामग्री खरीदने के लिए दवाब नहीं बनाएंगे.
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