मध्य प्रदेश के सियासी जैकपॉट का काउटडाउन शुरू हो चुका है. इस बार सत्ता का जैकपॉट किसके हाथ लगता है, ये तो 11 दिसंबर की शाम तक स्पष्ट हो जाएगा. सूबे का ताज भले ही किसी के सिर पर सजे, लेकिन यह तय है कि ताजपोशी में यहां के शाही घरानों की अहम भूमिका रहेगी. मध्य भारत के मध्य प्रदेश बनाने से लेकर अबतक राज्य की सियासत यहां की रियासतों के इर्द-गिर्द घूमती रही है. 


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आजादी के बाद भारत से राजे-रजवाड़े और राजशाही भले ही खत्म हो गई हो, लेकिन एक नबंवर, 1956 को मध्य प्रदेश के गठन के बाद से लेकर अब तक जितने भी लोकतंत्र के समर हुए हैं, चाहे वह विधानसभा चुनाव हो या फिर लोकसभा, राजघरानों की मेहरबानी में ही हुए हैं. अर्जुन सिंह से लेकर दिग्विजय सिंह तक, यहां ज्यादातर मुख्यमंत्री राजघरानों के ही बने हैं या फिर मंत्रिमंडल में इन घरानों का वर्चस्व रहा है. 


मध्य प्रदेश की शाही विरासत
आजादी से पहले मध्य प्रदेश 3-4 हिस्सों में बटा हुआ था. 1950 में मध्य प्रांत और बरार को छत्तीसगढ़ और मकराइ रियासतों के साथ मिलकर मध्य प्रदेश का गठन किया गया था. राजधानी नागपुर थी. 1 नवंबर, 1956 को मध्य भारत, विंध्य प्रदेश तथा भोपाल राज्यों को भी इसमें ही मिला दिया गया. भोपाल को राज्य की राजधानी बनाया गया. 1 नवंबर, 2000 को मध्य प्रदेश का पुनर्गठन हुआ, और छत्त्तीसगढ़ मध्य प्रदेश से अलग होकर भारत का 26वां राज्य बना. 


मध्‍य प्रदेश : जहां सियासत में आज भी चलता है रियासतों का सिक्का


मध्य प्रदेश के राजवंश
वैसे तो मध्य प्रदेश का गठन तमाम छोटी-बड़ी 25 रियासतों को मिलाकर ही किया गया था. इनमें से कुछ रियासतें आजादी के बाद ही खत्म हो गई थीं, लेकिन कुछ के वंशजों का दबदबा आज भी कायम है. यहां फैली रियासतों की बात करें तो प्रमुख रूप से ग्वालियर और राघोगढ़ के नाम सहसे आगे आते हैं. लेकिन इनके अलावा देवास, रीवा, नरसिंहगढ़, चुरहट, खिचलीपुर, दतिया, छतरपुर और पन्ना जैसे घराने भी प्रत्यक्ष रूप में सूबे की राजनीति में भागीदार रहते हैं. राजघरानों की दखल का ये आलम है कि आज भी लोग इन्हें राजा साहेब, छोटे साहेब या महाराज कुंवर जैसे नामों से संबोधित करते हैं. 


सिंधिया राजवंश
मध्य प्रदेश और राजस्थान में इस शाही घराने की तूती बोलती है. सिंधिया परिवार ने भारत की आजादी तक ग्वालियर पर शासन किया. इसके बाद ग्वालियर के राजा जीवाजी राव सिंधिया को वहां का राजप्रमुख बनाया गया. 1962 में जीवाजी राव की पत्नी तथा राजमाता विजयाराजे सिंधिया लोकसभा के लिए चुनी हुईं. उनके पुत्र माधवराव सिंधिया 1971 में कांग्रेस पार्टी का प्रतिनिधित्व करते हुए लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए और 2001 मे मृत्यु तक लोकसभा के सदस्य रहे. उनके पुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया भी अपने पिता की लोकसभा सीट पर 2004 चुने गए. 


राव घराना
चुरहट जागीर के राव घराने में अर्जुन सिंह का जन्म 5 नवंबर, 1930 को हुआ था. अर्जुन सिंह के पिता राव शिवबहादुर सिंह ने 1952 में यहां से चुनाव लड़ा था, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद उनकी विरासत को उनके बेटे ने आगे बढ़ाया और 3 बार मुख्यमंत्री से लेकर कई बार केंद्रीय मंत्री और राज्यपाल तक के पदों पर वह विराजमान रहे. 


वह राजीव गांधी और डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार में प्रमुख मंत्रालयों के मुखिया रहे थे. मध्य प्रदेश विधानसभा के सदस्य के रूप में अर्जुन सिंह ने राजनीति में अपना कैरियर शुरू किया. मध्य प्रदेश राज्य में मुख्यमंत्री पद के लिए (1980-85 और 1988-89) चुने गए, साथ ही साथ 1985 में पंजाब के राज्यपाल के रूप में उनका एक संक्षिप्त कार्यकाल रहा. अर्जुन सिंह के बेटे अजय सिंह राहुल भैया अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं और राज्य की राजनीति में एक कद्दावर नेता हैं. और इस बार चुनावों में वह बड़ी ताल ठोंक रहे हैं.