भोपाल, (संदीप भम्मरकर): मध्य प्रदेश में मीसाबंदी अब आंदोलन की रणनीति पर विचार करने लगे हैं. मीसाबंदियों के संगठन लोकतंत्र सेनानी संगठन के अध्यक्ष तपन भौमिक ने आह्वान किया है कि 4 दिसंबर को भोपाल में प्रदेश भर के मीसाबंदी जुटेंगे और आंदोलन की रणनीति बनाएंगे. लोकतंत्र सेनानी संगठन ने ये भी कहा है कि पेंशन बंद करने के फैसले से कई मीसाबंदियों के परिवार पर संकट आ जाएगा और उनके गुजर बसर का साधन खत्म हो जाएगा.


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कमलनाथ सरकार ने सीएजी की रिपोर्ट का हवाला देते हुए आदेश जारी किया है कि इसमें बजट से अधिक खर्च किया जा रहा है और अब भौतिक सत्यापन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही पेंशन जारी की जाए. बीजेपी को शक है कि सरकार मीसाबंदी पेंशन बंद करने की फिराक में है.


वंदे मातरम के मुद्दे पर कांग्रेस के मास्टर स्ट्रोक के बाद अब बीजेपी मीसाबंदी के मुद्दे पर सरकार को घेरने जा रही है. ये मीसाबंदी कांग्रेस विरोधी और बीजेपी समर्थक समझे जाते हैं. मीसाबंदियों के संगठन लोकतंत्र सेनानी संगठन के प्रदेश अध्यक्ष और बीजेपी नेता तपन भौमिक ने कहा कि भले ही भौतिक सत्यापन किया जाए, लेकिन इसे रोकने की कोशिश नहीं होनी चाहिए. क्योंकि इस पेंशन से मीसाबंदियों के कई परिवारों का घर चलता है. पेंशन के बगैर मीसाबंदियों के कई परिवार बरबादी की कगार पर पहुंच जाएंगे.


मध्य प्रदेश में कुल 12 हजार मीसाबंदी हैं. इनमें से जीवित मीसाबंदियों की संख्‍या 2384 है. जीवित मीसाबंदियों को 25 हजार रुपये और मृतक मीसाबंदियों के परिजनों को साढ़े 12 हजार रुपए की पेंशन दी जाती है. शिवराज सरकार ने इस राशि को सम्मान निधि नाम दिया था. जयप्रकाश नारायण लोकतंत्र सेनानी सम्मान निधि के नाम से पेंशन शुरू की थी. इसे विधानसभा में पारित कराके कानूनी दर्जा भी दिया गया था.


ज़ी मीडिया मीसाबंदियों की हालत जानने के लिए उनके घर पहुंचा. भोपाल के लईक अहमद आपातकाल के दौरान गिरफ्तार हुए थे. बुजुर्गियत का दौर आया तो किस्मत ने भी दगा दिया और उन्हें लकवा हो गया. एक कमरे के घर में चार बेटों के साथ चौबीस घंटे बिस्तर पर गुजारने वाले लईक के गुजर बसर केवल मीसाबंदी पेंशन से होता है. 25 हजार रुपए की पेंशन बंद हुई तो गुजारा मुश्किल हो जाएगा.


बुजुर्ग महिला शबाना की हालत भी कुछ ऐसी ही है. 65 साल की शबाना के पति भी मीसाबंदी थे. कुछ साल पहले उनके पति की बीमारी की वजह से मौत हो गई. शबाना बीमारी की हालत में बिस्तर पर हैं. तीन बेटियों का गुजारा केवल साढ़े 12 हजार रुपए की मीसाबंदी पेंशन से चलता है. रोती हुई शबाना कहती हैं, "पेंशन बंद हुई तो जीवन संकट में पड़ जाएगा.' 


अब हम आपको बताते हैं कि कौन हैं मीसाबंदी. मीसा (MISA) यानी मेंटेनेन्स ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट. 1971 में इंदिरा गांधी सरकार ने लोकसभा में प्रस्ताव लाकर ये कानून लागू किया था. इसके बाद सरकार के पास असीमित अधिकार आ गए थे. यानी पुलिस या सरकारी एजेंसियां कितने भी समय के लिए ऐसे किसी भी शख्स की ऐहतियातन गिरफ्तारी कर सकती थी, जिनकी वजह से आंतरिक सुरक्षा पर खतरा हो सकता है.


बिना वारंट उनकी तलाशी समेत फोन टेपिंग के अधिकार भी सरकार के पास आ गए थे. 1975 से 1977 के बीच सरकार के खिलाफ आंदोलन कर रहे लोगों पर इसका बेजा इस्तेमाल किया गया. आपातकाल के दौरान कई नेताओं को मीसा के तहत गिरफ्तार करके महीनों तक जेल में रखा गया था. 1977 में जब जनता पार्टी सरकार सत्ता में आई तो इस कानून को रद्द कर दिया गया.


मध्य प्रदेश में शिवराज सरकार ने मीसाबंदियों को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जैसा दर्जा दिया. उन्हें लोकतंत्र सेनानी का नाम दिया और उनके सम्मान में पेंशन शुरू की गई. मध्य प्रदेश के अलावा राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में भी ऐसी ही सम्मान निधि दी जाती है.


उत्तर प्रदेश में मायावती ने सत्ता में आने के बाद इस सम्मान निधि को रोकने का आदेश जारी कर दिया, लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस फैसले पर रोक लगा दी. राजस्थान में भी ऐसे ही प्रयास को जयपुर हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था. मध्य प्रदेश में इस मीसाबंदी फैसले पर कोई आंच नहीं आए इसलिए शिवराज सरकार ने इसे कानून बना दिया था. लेकिन बीजेपी को शक है कि कमलनाथ सरकार 7 जनवरी से शुरू होने वाले विधानसभा के पहले ही सत्र में इस कानून को खारिज सरने का विधेयक ला सकती है.