Apara Ekadashi 2023: अपरा एकादशी व्रत करने से सभी तरह के पापों से मिलती है मुक्ति, जानें महत्व और पूजन विधि
Apara Ekadashi 2023:ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि के दिन अपरा एकादशी व्रत रखा जाएगा. हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है. आइए जानते हैं एकादशी व्रत का महत्व और पूजा विधि.
Apara Ekadashi 2023: हिंदू धर्म में अपरा एकादशी का विशेष महत्व होता है. इस दिन भगवान विष्णु जी की पूजा की जाती है. मान्यताओं के अनुसार एकादशी व्रत करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है. बता दें कि ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अपरा एकादशी के नाम से जाना जाता है. अपरा एकादशी को जलक्रीड़ा एकादशी, अचला एकादशी और भद्रकाली एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. इस बार अपरा एकादशी का व्रत 15 मई 2023 को रखा जाएगा. चलिए जानते हैं इस व्रत को रखने का महत्व.
अपरा एकादशी का महत्व
अपरा एकादशी का व्रत 15 मई यानी सोमवार को रखा जाएगा. वहीं इसका पारण 16 मई 2023 को सुबह 06.41 से सुबह 08.13 मिनट पर तक किया जाएगा. मान्यताओं के अनुसार अपरा एकादशी का व्रत करने से अनजाने में हुए पापों का उद्धार होता है. इसलिए इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. इस एकादशी के प्रताप से मनुष्ट प्रेत योनी से मुक्ति पाकर बैकुंठ लोक को जाता है. इस व्रत को करने से मनुष्य के पापों का नाश होता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार झूठ बोलकर किसी को ठगना और दूसरों की निंदा करना आदि पाप भी अपरा एकादशी को करने से नष्ट होते हैं.
अपरा एकादशी पूजन विधि
एकादशी के व्रत को विवाहित अथवा अविवाहित दोनों कर सकते हैं. एकादशी व्रत के एक दिन पहले सात्विक भोजन करें. एकादशी पर सुबह जल्दी उठें और स्नान करें. नहाने के बाद सूर्यदेव को जल अर्पित करें. इसके बाद पत्नी संयुक्त रूप से लक्ष्मीनारायण जी की पूजा करें. पूजा के लिए एक साफ चौकी पर श्रीगणेश, भगवान लक्ष्मीनारायण की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें. इसके बाद पूरे सच्चे मन से भगवान की पूजा करें.
अपरा एकादशी पर करें इन मंत्रों का जाप
श्री विष्णु मंत्र
मंगलम भगवान विष्णुः, मंगलम गरुणध्वजः।
मंगलम पुण्डरी काक्षः, मंगलाय तनो हरिः॥
विष्णु स्तुति
शान्ताकारं भुजंगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगन सदृशं मेघवर्ण शुभांगम्।
लक्ष्मीकांत कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं
वन्दे विष्णु भवभयहरं सर्व लौकेक नाथम्॥
यं ब्रह्मा वरुणैन्द्रु रुद्रमरुत: स्तुन्वानि दिव्यै स्तवैवेदे:।
सांग पदक्रमोपनिषदै गार्यन्ति यं सामगा:।
ध्यानावस्थित तद्गतेन मनसा पश्यति यं योगिनो
यस्यातं न विदु: सुरासुरगणा दैवाय तस्मै नम:॥