नई दिल्ली: देश इस साल आजादी का महापर्व मना रहा है. इस साल आजादी के 75 साल पूरे हुए हैं, इसको यादगार बनाने के ल‍िए अमृत महोत्‍सव मनाया जा रहा है. इसी अवसर पर हम आपको बता रहे हैं क‍ि मध्‍य प्रदेश की राजधानी जब जबलपुर से अचानक भोपाल बन गई तो जबलपुर के लोगों ने उस साल द‍िवाली नहीं मनाई थी.  


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राजधानी के लिए जबलपुर का नाम था आगे 


दरअसल, राज्य पुनर्गठन आयोग ने राजधानी के लिए जबलपुर का नाम सुझाया था. महाकौशल के तत्कालीन प्रभावशाली नेता सेठ गोविंद दास ने भी जबलपुर को राजधानी बनाने के लिए बेहद सक्रियता दिखाई. बाद में ये खबरें तेजी से फैली कि इसके पीछे सेठ गोविंददास का स्वार्थ छिपा है. उन्होंने जबलपुर के राजधानी बनने के पहले ही नागपुर रोड पर सैकड़ों एकड़ भूमि खरीद ली. जब ये खबरें जवाहर लाल नेहरू तक पहुंची तो उन्होंने जबलपुर को राजधानी बनाने का मन बदल लिया. 


1955 में जबलपुर में नहीं मनी थी दि‍वाली 


जबलपुर के स्थान पर इंदौर और भोपाल को राजधानी बनाने पर विचार हुआ लेकिन भोपाल के बीचों-बीच होने और बड़े भवनों की वजह से इसे राजधानी बनाने का निर्णय लिया गया. राजधानी न बनाए जाने का दुःख जबलपुर के लोगों में इतना था कि उन्होंने 1955 में दि‍वाली नहीं मनाई. शंकर दयाल शर्मा, जवाहरलाल नेहरू को समझाने में सफल रहे कि भोपाल को राजधानी बनाने से कई समस्याओं से निजात मिल सकती है. भोपाल में पृथकतावादी ताकतें कमजोर हो जाएंगी क्योंकि भोपाल नवाब भारत से अलग होकर पाकिस्तान के साथ जाना चाह रहे थे, बाद में वो दवाब में इसके लिए तैयार हुए थे. यही कारण है क‍ि भोपाल में भारत सरकार के पांव मजबूती से जमें, इसके ल‍िए मध्‍य प्रदेश की राजधानी भोपाल बनना तय हुआ था. 


इस तरह बना था मध्‍य प्रदेश 


आजादी पहले और उसके कुछ समय बाद तक मध्य प्रदेश को सेंट्रल प्रोविंस यानी मध्य प्रांत और बरार के नाम से जाना जाता था. देश की आजादी के बाद सभी रियासतों को स्वतंत्र भारत में मिलाकर एकीकृत किया गया. इसके बाद एक नवंबर 1956 को मध्य भारत को मध्य प्रदेश के तौर पर पहचाना जाने लगा. इसे आजादी के पहले गठित 4 राज्यों को मिलाकर बनाया गया था. मध्य प्रदेश का निर्माण तत्कालीन सीपी एंड बरार, मध्य भारत ( ग्वालियर-चंबल ), विंध्यप्रदेश और भोपाल को मिलाकर हुआ था. राज्यों के पुनर्गठन की प्रक्रिया आजादी के बाद शुरू हुई थी. इसके लिए राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन किया गया. आयोग के पास उत्तर प्रदेश जितना बड़ा एक और राज्य बनाने की जिम्मेदारी थी. क्योंकि यह राज्य महाकौशल, ग्वालियर-चंबल, विंध्य प्रदेश और भोपाल के आसपास के हिस्सों को मिलाकर बनाया जाना था.


मध्य भारत को मध्य प्रदेश के तौर पर पहचाना जाने लगा


राज्य पुनर्गठन आयोग को सभी सिफारिशों पर विचार-विमर्श करने में करीब 34 महीने यानि ढाई साल लग गए. आखिरकार राज्य पुनर्गठन आयोग ने तमाम अनुशंसाओं के बाद अपनी रिपोर्ट जवाहरलाल नेहरू के सामने रखी, तब उन्होंने इसे मध्य प्रदेश नाम दिया और एक नवंबर 1956 को मध्य भारत को मध्य प्रदेश के तौर पर पहचाना जाने लगा.


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