अविनाश प्रसाद/बस्तरः विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरे की शुरुआत हरियाली अमावस्या से ही हो चुकी है. बस्तर दशहरे की हर रस्म खास होती है. दशहरे की चौथी रस्म नार फोड़नी बुधवार को पूरी हो गई है. जगदलपुर के सिरहासार भवन में रथ निर्माण का काम चल रहा है. नार फोड़नी की रस्म के तहत विशालकाय लकड़ी के रथ में लगने वाले काष्ठ पहियों में एक्सल के लिए आज छेद किए गए. इस रस्म को पूरा करने के लिए पारम्परिक तरीके से बस्तर दशहरा समिति के लोगों ने पूजा पाठ किया.


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600 वर्षों से चली आ रही परंपरा 
नार फोड़नी रस्म के बाद बस्तर दशहरे में चलने वाले रथ के निर्माण की प्रक्रिया और तेज हो जाएगी. बस्तर के दशहरे में विशालकाय रथ आकर्षक का केंद्र होता है. ये पर्व यहां शक्ति की आराधना के पर्व के रूप में मनाया जाता है. रियासतकालीन ये पर्व यहां 600 से भो अधिक वर्षों से मनाया जा रहा है. बस्तर का दशहरा किसी एक समाज या धर्म का पर्व नहीं है. बल्कि इसमें सभी धर्म संप्रदायों की सहभागिता होती है.


जानिए कैसे होता है मेले का आयोजन
रथ के निर्माण में 240 वृक्षों की 51 घन मीटर लकड़ियां लगती है. इसे 2 निश्चित गांवों के लोग 25 दिन की अवधि में मनाते है. इसी रथ पर मां दंतेश्वरी के छत्र को सवार कर उनकी परिक्रमा करवाई जाती है. बस्तर दशहरा में शामिल होने के लिए सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों से सैकड़ों की संख्या में लोग पैदल ही मुख्यालय जगदलपुर तक पहुंचते हैं. इसमें बड़ी संख्या ऐसे लोगों की होती है जो 50 से डेढ़ सौ किलोमीटर तक का सफर पैदल ही तय कर मां दंतेश्वरी के सम्मान में यहां पहुंचते हैं. बस्तर संभाग भर के सैकड़ों गांवों की ग्राम देवी देवताओं के विग्रह को लेकर उनके पुजारी दशहरे में शामिल होने के लिए जगदलपुर पहुंचते हैं और मां दंतेश्वरी के सम्मान में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते हैं.


75 दिनों की अवधि में होते हैं विभिन्न विधि विधान 
आपको बता दें कि बस्तर दशहरे का पर्व 75 दिनों तक चलता है. यह पर्व सावन माह की हरियाली अमावस्या के दिन शुरू होती है. जिनमें पाटजात्रा, डेरी गड़ाई, काछिन गादी, जोगी बिठाई, फूल रथ चालन, नवरात्र पूजा, मावली परघाव, भीतर रैनि और बाहर रैनि प्रमुख हैं. आने वाले दिनों में दशहरे के उत्साह और बढ़ेगा.


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