Positive Story: भारत में मिली शरण तो बंजर जमीन को पसीने से सींच बनाया उपजाऊ, जानें बैतूल के शरणार्थी गांव की कहानी
Positive Story: आज जब देश में CAA कानून के बीत शरणार्थियों की बात हो रही है तो आइये बैतूल जिले की एक ऐसी स्टोरी जानते हैं जहां शरणार्थियों ने बंजर जमीन को खून पसीना सींचकर उपजाऊ बना दिया.
Positive Story: बैतूल। CAA कानून का नोटिफिकेशन जारी होने के बाद देश में शरणार्थियों की बात हो रही है. इस बीच मध्य प्रदेश के बैतूल में बांग्लादेश और पाकिस्तान से लाए गए शरणार्थियों भी काफी चर्चा में हैं. ऐसा इसलिए की सालों से उनकी मेहनत का असर इलाके में दिख रहा है.
बांग्लादेश और पाकिस्तान के शरणार्थी
बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए शरणार्थियों को बैतूल में बसाया गया था. इनकी कड़ी मेहनत ने कमाल कर दिया है. कभी जंगल पहाड़ की इस बंजर जमीन को खून पसीने सींच कर खेती लायक बना दिया है. यह किसान अब धान, गेंहू, सरसों, मूंगफली, मक्का, सोयाबीन समेत बड़ी मात्रा में सब्जियां लगा कर उन्नत किसान की श्रेणी में शामिल हो रहे हैं.
सरकार ने दी थी जमीन
सरकार ने प्रत्येक शरणार्थियों को पुनर्वास के लिए पांच-पांच एकड़ जमीन दी थी. इन्होंने इस जमीन पर खेती करना शुरू कर दिया. अब यहां फसलों के साथ बड़ी मात्रा में मछली पालन हो रहा है और धान की फसल लहलहा रही हैं.
1964 और 71 में आए थे
बांग्लादेश के बंगाली समाज के लोग 1964 में शरणार्थी के तौर पर भारत चले आए. उन्हें बैतूल के चोपना में बने पुनर्वास कैंप लाया गया. उसके बाद पाकिस्तान और बांग्लादेश विभाजन के दौरान भी साल 1971 में कई बंगाली चोपना पुनर्वास केंद्र में लाए गए थे.
32 गांव बसाए गए थे
चोपना पुनर्वास क्षेत्र में शरणार्थियों के लिए 32 गांव बसाए गए थे. धीरे-धीरे इन गांवों की जनसंख्या बढ़ने लगी है. वर्तमान में इन गांवों में मतदान करने वाले लोगों की जनसंख्या 35 हजार है. वहीं कुल जनसंख्या 40 हजार के पार चली गई है. यहां कुल 2500 शरणार्थी परिवार रहते हैं.
तीन फसलें ली जाती हैं
इस क्षेत्र में किसान तीन फसल लेता है. मुख्य फसल के रूप में यहां धान है इसके बाद दूसरी फसल चना, गेहूं, सरसों और तीसरी फसल के रूप में गर्मी के सीजन में मूंगफली, मूंग और मक्का का उत्पादन होता है. तरबूज की पैदावार भी यहां होती है. इसके अलावा मौसमी सब्जियों भी उगाई जाती है.
होती है अच्छी आवक
तालाबों को यहां सिंचाई के साथ ही मछली पालन के लिए उपयोग किया जाता है. बंगाली समाज के लोग मछली पालन स्वयं के लिए भी करते हैं और इसको बाजार में भी बेचते हैं, जिससे उनको काफी अच्छी आवक हो जाती है.