Bhagoriya Festival 2023: मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य इलाकों में भगोरिया की धूम शुरू हो गई है. जगह-जगह पर भगोरिया मेला   (bhagoria Mela) लगा हुआ है. आदिवासी संस्कृति (Adivasi culture) को विश्व मानचित्र पर जीवंत कर देने वाला भगोरिया पर्व अपने आप में अनगिनत खासियतों को समेटे है. होली (Holi) से एक हफ्ते पहले शुरू होने वाले इस उत्सव का आदिवासी समुदाय को बेसब्री से इंतजार रहता है. क्या युवा और क्या बुजुर्ग सभी इस मेले में मदमस्त अंदाज और संगीत की धुन पर थिरकते है.


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बता दें कि होली के सात दिन पहले मनाए जाने वाले इस उत्सव में आदिवासी समाज खोया रहता है.  एमपी के आदिवासी अंचल के झाबुआ, अलीराजपुर, बड़वानी, खरगोन, खंडवा और धार जिले में ये पर्व मुख्य रूप से मनाया जाता है. इस साल यह 1 मार्च से 7 मार्च तक मनाया जाएगा. इन सात दिनों के दौरान आदिवासी समाज के लोग खुलकर अपनी जिंदगी जीते हैं. तो चलिए आपको भगोरिया मेले के बारे में बताते हैं.. कि  क्यों आदिवासी समाज में इसे लेकर काफी उत्साह रहता है..



यहां रिश्ते भी तय होते हैं
भगोरिया मेला दुनिया का पहला ऐसा मेला होगा. जहां मदमस्त अंदाज और संगीत की धुन पर थिरकते युवा अपने जीवनसाथी की तलाश में निकलते हैं, और अपने रिश्ते भी तय करते हैं. मेलें में आने वाले युवा एक दूसरे को वहीं पसंद कर गुलाल लगा कर अपने प्यार का इजहार करते हैं. उसके बाद साथी की सहमती और परिजनों की रजमांदी से रिश्ते को पुख्ता करने के लिए एक-दूसरे को पान खिलाते हैं. रंग-बिरंगे परिधानों में सजी युवतियां और भंवरों की तरह इनके आस-पास आदिवासी युवक वहां मौजूद युवतियों को रिझाने के लिए उनके आगे पीछे मंडराते हैं. भगोरिया मेले में ये दृश्य आम हैं.



यहां प्यार का इशारा गुलाबी रंग
इस मेले में एक कहानी और ज्यादा प्रचलित है कि अगर लड़का और लड़की एक दूसरे को गुलाबी रंग का गुलाल लगा दें तो इसे प्यार का इजहार या प्रपोज माना जाता है. हालांकि अब बदलते वक्त के साथ मेले में रिवाज बदल रहा है. मेले में आधुनकिता का असर भी दिखने लगा है.


जानिए क्यों मनाते है भगोरिया
दरअसल मान्याता है कि भगोरिया की शुरुआत राजा भोज के समय शुरू हुई थी. उस समय दो भील राजा कासूमरा और बालून ने अपनी राजधानी में भगोर मेले का आयोजन किया था. इसके बाद दूसरे भील राजा भी अपने क्षेत्रों में इस मेले का आयोजन करने लगे. फिर इसके बाद से ही आदिवासी बाहुल्य इलाकों में भगोरिया उत्सव मनाया जा रहा है।


दूसरी मान्यता
पौराणिक कथाओं के मुताबिक झाबुआ जिले के ग्राम भगोर में एक प्राचीन शिव मंदिर है. मान्यता है कि इसी स्थान पर भृगु ऋषि ने तपस्या की थी. कहा जाता है कि हजारों साल से आदिवासी समाज के लोग भव यानी शिव और गौरी की पूजा करते आ रहे हैं. इसी से भगोरिया की उत्पत्ति हुई है.



 


नाचते-गाते उत्सव मनाते हैं आदिवासी
इस भगोरिया मेले में आदिवासी संस्कृति की झलक देखने को मिल जाती है. अगर आप आदिवासी संस्कृति को देखना चाहते हैं, तो इस मेले में जरूर जाइये. आदिवासी लोग अलग-अलग टोलियों में  आते हैं, मेले में रंग बिरंगी पारंपरिक वेश-भूषा होती है. इस मेले में लड़कियां अपने हाथ पर टैटू भी गुदवाती है. वहीं इस अनोखे मेले में आदिवासी युवतियां- महिलाएं खुलेआम देशी और अंग्रेजी शराब का सेवन भी करती है. वहीं ताड़ी (ताड़ के पेड़ के रस से बनी देसी शराब) के बगैर भगोरिया हाटों की कल्पना भी नहीं की जा सकती. इसका सेवन मेले का मजा और दोगुना कर देता है.