प्रदीप शर्मा/भिंड: गोली और बोली के लिए कई दशकों तक बदनाम रहा भिंड जिला अब बदल रहा है. भिंड ज़िले के मेहगांव क्षेत्र का एक किसान अपने खेतों में इजरायली खीरे उगा रहा है. स्वाद में लाजवाब इन विदेशी खीरों की वजह से इनकी बिक्री देश की राजधानी दिल्ली तक हो रही है. क्षेत्रीय किसान नरेश भदौरिया के पॉली हाउस पर पहुंच कर उसकी सफलता को कहानी का दीदार कर रहे हैं. 


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जिले के मेहगांव तहसील मुख्यालय से करीब 10 किलोमीटर दूर स्थित मेहगांव-मौ हाईवे के पास नरेश भदौरिया ने शासन और उद्यानिकी विभाग की मदद से अपनी जमीन पर पॉली हाउस लगवाया है. जिसमें वे पारंपरिक खेती से हटकर सब्जियां उगया रहे हैं. लेकिन जिस चीज की पैदावार ने सबका ध्यान खींचा, वह इजरायली खीरा है. डेढ़ महीने लगातार इसकी खेती की गई जिसने पहली बार में ही किस्मत बदल दी.


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बेरोजगार किसान की बदली किस्मत
किसान नरेश भदौरिया ने बताया कि वे पहली बार खेती कर रहे हैं. उन्होंने पहले कभी फसल नहीं उगाई, वे बेरोजगार थे उन्होंने कई व्यवसायों में हाथ आजमाया लेकिन कमाई में मात खाते रहे. हाल ही में वे राजस्थान गए हुए थे. जहां रास्ते में हाईवे किनारे उन्हें एक पॉली हाउस दिखाई दिया. उन्होंने वहां जाकर जब किसान से बात की और इस सिस्टम को समझा, इसके बाद उन्होंने खुद भी पॉली हाउस लगाने का फैसला लिया.


पॉलीहाउस बनवाया
भिंड आए तो उद्यानिकी विभाग पहुंचकर जानकारी ली और पॉली हाउस लगाने की बात रखी, प्रोजेक्ट पास हो गया कुछ समय में करीब 28 लाख रुपए की लागत से पॉली हाउस बनकर तैयार हो गया. उन्होंने बताया कि इसके लिए वे खुद करीब साढ़े 14 लाख रुपए विभाग में जमा किए थे. जिसमें करीब 50 फीसदी सब्सिडी के तौर पर उन्हें वापस मिल गया. 


इजराइल का खीरा किया तैयार 
अब बात थी फसलों की जिसके लिए उन्होंने काफी रिसर्च किया और आखिर में इजरायल से खीरे के बीज मंगवाए. नरेश बताते है. कि इन बीज से करीब डेढ़ महीने में ही पौधे तैयार हो कर फल यानी खीरा देने लगा, फसल की देखभाल के संबंध में जानकारी देने देहरादून और लखनऊ से वैज्ञानिकों के दल भी आते रहते हैं. जो बताते है. कि फसल में कब और कितना खाद देना है साथ ही देखभाल कैसे करनी है,इस इजरायली खीरे की बात ही कुछ अलग है,किसान नरेश के खेतों में उग रहा यह इजरायली खीरा भारतीय खीरे के मुकाबले दिखने में बिल्कुल हरा होता है,इस पर किसी तरह की धारियां नहीं होती हैं. साथ ही इसका छिलका आलू की तरह पतला होता है. खाने में यह बहुत टेस्टी और मुलायम होता है,इसका छिलका उतारे बिना ही इसे खाया जा सकता है. 


दिल्ली तक जा रहा माल
किसान नरेश के मुताबिक ये इजरायल के बीज से तैयार पौधे भी आम पौधों से अलग हैं. जिनमे खीरे एक या दो नहीं बल्कि गुच्छों में लगते हैं. नरेश ने बताया कि वर्तमान में प्रतिदिन खेत से करीब तीन से पांच क्विंटल खीरा तोड़ा जाता है और उन्हें दिल्ली तक सप्लाई किया जाता है. बीते दो सप्ताह से वे भिंड की सब्जी मंडी में अपना खीरा पहुंचा रहे हैं. डेढ़ महीने से कम समय में ये खीरा बंपर पैदावार के साथ अच्छे दामों पर बिक रहा है. दिल्ली में ये खीरा करीब 25 से 30 रुपए प्रतिकिलो और भिंड में 15 से 20 रुपए प्रतिकिलो तक का भाव जाता है. ऐसे में कहा जा सकता है कि इस आधुनिक तकनीक के जरिए उन्होंने कम समय में काफी लाभ कमा लिया है.


12 महीने में फसल लगाएंगे
किसान ने कहा कि आज की परिस्थिति देख कर लगता है कि उन्हें यह धंधा 10 साल पहले ही शुरू कर देना चाहिए. नरेश कहते है कि यह आधुनिक खेती लाभ का धंधा साबित हो रही है. क्योंकि इस पॉली हाउस में वे 12 महीने फसल लगाएंगे. खीरे के बाद इस परिसर में वे लाल, हरी और पीली शिमला मिर्च लगाने वाले है. जिसके लिए उन्नत बीज भी उन्हें वैज्ञानिकों ने उपलब्ध कराए हैं.