प्रमोद शर्मा/भोपाल: इस साल के अंत में होने जा रहे मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव (Mp election 2023) की तैयारियों में जुटी बीजेपी (Bjp) की निगाह अपने नेताओं के सोशल मीडिया (Social media) अकाउंट पर भी है. 5G के जमाने में सोशल मीडिया आज भी की जिंदगी का अहम हिस्सा बन गया है. सोशल मीडिया की मदद से लोगों को सीधे जोड़ा जा सकता है. यही कारण है कि बीजेपी अपनी मंत्री-विधायकों को सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने की लगातार निर्देश दे रही है. वहीं अब उनकी टेंशन बढ़ने वाली है, जिनके फॉलोवर्स बहुत कम है.


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दरअसल बीजेपी दफ्तर में हुई बैठक में भाजपा विधायक और सांसदों को दो टुक ये कह दिया गया है कि अपनी रीच और फॉलोवर्स को बढ़ाएं. संगठन के साफ निर्देश है कि सोशल मीडिया के जमाने में सोशल मीडिया पर फॉलोवर नहीं तो कैसे फिट बैठेंगे आप? अब संगठन के की नसीहत के बाद विधायक और सांसदों की टेंशन बढ़ गई है.


जनता से कनेक्ट होने के निर्देश
बीजेपी दफ्तर में हुई इस बैठक में विधायक और सांसदों को जनता से कनेक्ट होने के लिए साफ निर्देश दे दिए गए है. जब बैठक में सभी विधायकों और सांसदों से उनके ऑफिशियल अकाउंट के बारे में पूछा तो सभी के हाथ पैर फूल गए. क्योंकि संगठन के बार निर्देश के बाद भी कई विधायकों और सांसदों की रीच बढ़ी नहीं है. संगठन ने निर्देश दिया है कि अपने कार्यकर्ता से जुड़े.



शिवराज सिंह चौहान टॉप पर
एमपी में सबसे लंबे समय से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के फेसबुक पर 49 लाख फॉलोअर्स हैं. ट्विटर पर 89 लाख फॉलोअर्स हैं. इस हिसाब से शिवराज सिंह चौहान अभी सबसे टॉप पर हैं. वहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया के ट्विटर पर 52 लाख फॉलोवर्स हैं, जबकि फेसबुक पर 6.45 लाख फॉलोवर्स है.


ट्विटर पर नरोत्तम की फॉलोइंग टॉप पर
शिवराज कैबिनेट में शामिल मंत्रियों में गृहमंत्री डॉ नरोत्तम मिश्रा के ट्विटर पर सबसे ज्यादा फॉलोअर्स हैं. ट्विटर पर नरोत्तम मिश्रा को 6.96 लाख लोग फॉलो करते हैं. नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेन्द्र सिंह के 3.98 लाख फॉलोअर हैं.


2023 चुनाव के लिए क्यों जरुरी है सोशल मीडिया 
दरअसल, आज के बदलते वक्त में किसी भी चुनाव के लिए सोशल मीडिया बेहद जरुरी है.  जनता तक अपनी बात पहुंचाने का सबसे आसान माध्यम सोशल मीडिया ही है. एक्सपर्ट की मानें तो सोशल मीडिया के जरिए ग्राफिक्स, लाइव सेशन, वीडियो, फोटो का इस्तेमाल कर अपनी बात बेहतर रूप से जनता तक पहुंचाई जा सकती है. यही वजह है कि पॉलिटिकल पार्टियां भी बड़े पैमाने पर अब इसका इस्तेमाल करने लगी हैं.