किस्सा मध्य प्रदेश के CM शिवराज सिंह का, जिनकी राजनीति का कैनवास हर रंग में है रंगा
29 नवंबर 2005 को शिवराज सिंह चौहान के बारे में तब शायद किसी ने नहीं सोचा होगा कि शिवराज मुख्यमंत्री के रूप में मध्य प्रदेश में सबसे लंबी पारी खेलने वाले हैं, लेकिन शिवराज ने तमाम चुनौतियों को पार कर ऐसा करके दिखाया. लेकिन यह सब उनके लिए इतना आसान नहीं था.
भोपालः मध्य प्रदेश की सियासत के सबसे कद्दावर और चर्चित चेहरों में से एक, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपना 63वां जन्मदिन मना रहे हैं. एक ऐसा नेता जो मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा 15 साल तक मुख्यमंत्री पद पर रहने का रिकॉर्ड बना चुका है और अभी भी सीएम पद की कमान शिवराज के हाथों में ही है. शिवराज न केवल सत्ता बल्कि संगठन दोनों की पहली पसंद माने जाते हैं. आज उनके जन्मदिन पर आपको बताते हैं उनका राजनीतिक सफर के बारे में कि आखिर कैसे मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्हें इतने लंबे समय तक मध्य प्रदेश में अपने आप को स्थापित बनाए रखा है.
29 नवंबर 2005 को बाबूलाल गौर की जगह मुख्यमंत्री बने शिवराज सिंह चौहान के बारे में तब शायद किसी ने नहीं सोचा होगा कि शिवराज मुख्यमंत्री के रूप में मध्य प्रदेश में सबसे लंबी पारी खेलने वाले हैं, लेकिन शिवराज ने तमाम चुनौतियों को पार कर ऐसा करके दिखाया. लेकिन यह सब उनके लिए इतना आसान नहीं था.
प्रदेश में बनाई मामा की छवि
शिवराज सिंह चौहान ने सत्ता और संगठन में ऐसा समन्वयय किया कि उनके नाम का सिक्का पूरे मध्य प्रदेश में चल निकला. मुख्यमंत्री बनते ही उन्होंने लाड़ली लक्ष्मी योजना की शुरुआत कर प्रदेश में खुद को 'मामा' के तौर पेश किया, एक ऐसा नेता जो जनता के बीच बिल्कुल जनता की तरह ही पहुंचता. न लंबा काफिला न सियासी ठाठबाठ, शिवराज बिल्कुल सरल, सहज अंदाज में लोगों के बीच पहुंचते उनकी परेशानी सुनते और तत्काल उसके समाधान का आदेश देते. जो उनकी लोकप्रियता का सबसे बड़ा कारण है.
हर रंग में रंग जाते हैं शिवराज
शिवराज सिंह चौहान फिलवक्त प्रदेश के ऐसे नेता है जो हर रंग में रंगे नजर आते हैं, दीपावली हो या होली का त्यौहार, फिर चाहे आदिवासी महोत्सव या खेल का मैदान, वे होली की हुड़दंग में शामिल हो जाते हैं, तो दिवाली अनाथ बच्चों के साथ मनाते हैं. खेल के मैदान पर पहुंचकर अपना जौहर दिखाते हैं तो आदिवासियों के साथ उनके रंग में रह जाते हैं. उनका यही देशी अंदाज उन्हें दूसरे नेताओं से खास बना देता है.
गुटबाजी से दूर
शिवराज सिंह चौहान की छवि शुरू से ही एक ऐसे राजनेता के तौर पर है जो गुटबाजी से दूर माने जाते हैं. वह अटल-आडवाणी के समय में भी बीजेपी के सबसे निर्विवाद चेहरे रहे, तो मोदी-शाह के युग में भी हर मोर्चे पर सफल है. यही वजह है कि फिछेल 17 सालों से शिवराज संगठन की पहली पसंद बने हुए हैं.
मुख्यमंत्री के तौर पर प्रशासनिक कसावट सियासी जमावट में शिवराज का कोई तोड़ नहीं है. किस अफसर को कौन सी जिम्मेदारी देनी है और किस मंत्री को किस काम में लगाना है यह शिवराज की रणनीतिक कुशलता का सबसे बड़ा मजबूत पक्ष है. यही वजह है कि जब कोरोनाकाल में चौथी बार बीजेपी की सरकार सत्ता में लौटी तो पीएम मोदी ने शिवराज के नाम पर सहमति जताने में जरा भी देर नहीं की.
ओबीसी वर्ग का प्रमुख चेहरा
आज के वक्त में शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश में ओबीसी नेता के रूप सबसे फिट हैं, क्योंकि भले ही वह ओबीसी वर्ग से आते हैं, लेकिन राजनीति तमाम जातिवादी और सियासी समीकरणों को शिवराज बेहतर समझते हैं. वह आदिवासी परिवार के घर भोजन करने पहुंच जाते हैं, तो रविदास की जयंती पर भजन में रंग जाते हैं, संतो का आशीर्वाद लेते हैं तो किसानों की समस्याओं को सुलझाते हैं. यानि शिवराज हर वर्ग में अपनी मजबूत पकड़ रखते हैं.
हर मामले में फिट हैं शिवराज
सियासी हलकों में यह चर्चा खूब होती है कि शिवराज सिंह चौहान हर मामले में कैसे फिट हो जाते हैं. दरअसल, सत्ता और संगठन का तालमेल बनाना शिवराज बखूबी जानते हैं, वे भले ही 63 साल के हो गए हैं. लेकिन आज भी एक युवा नेता की तरह जोशीले हैं. घंटों सभाएं करते हैं तो मीलों पैदल भी चल लेते हैं. किसी काम से पीछे नही हटते. यही वजह है कि वह 63 साल की उम्र में भी अपनी सियासी पारी को तेजी से आगे बढ़ा रहे हैं.
पांव-पांव चलने वाले भैया कैसे बने मप्र के सरताज
शिवराज सिंह चौहान का किस्सा राजनीतिक गलियारों में मशहूर है. कहा जाता है कि जब वह अखिल विद्यार्थी परिषद में 1977-1978 में वे संगठन मंत्री बने. उस वक्त उन्होंने कुशाभाऊ ठाकरे से अखिल विद्यार्थी परिषद में काम करने के लिए उनकी एक पुरानी एंबेसडर कार की डिमांड की. जिस पर ठाकरे ने मुरली मनोहर जोशी से कहा कि आजकल के युवा नेता पैदल चलना भी पसंद नहीं करते. कुशाभाऊ ठाकरे ने शिवराज सिंह चौहान से कहा कि आप पैदल ही अपना संघर्ष करो तो आपको अखिल विद्यार्थी परिषद का महासचिव बना दिया जाएगा. उसके बाद शिवराज सिंह चौहान ने पैदल ही अपना सफर शुरू किया और राजधानी भोपाल में उस वक्त कांग्रेस की अर्जुन सिंह सरकार के खिलाफ बड़ा आंदोलन किया उस आंदोलन में शिवराज ने अपने दम पर ही राजधानी भोपाल में बीजेपी कार्यकर्ताओं की इतनी भीड़ कर दी पूरी सरकार हिल गई. जिससे शिवराज की उनकी पहचान ही बदल गई. जिसके बाद उन्हें 1980 से 1982 तक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में महासचिव बनाया गया. शिवराज सिंह चौहान ने अपने संसदीय क्षेत्र में किसान, मजदूर, गरीब सहित हर तबके के मुद्दों को उठाया, तब भी उन्होंने कई पदयात्राएं की जिसके चलते उन्हें लोग ''पांव-पांव वाले भैया'' के नाम से पुकारने लगे.
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