इंदौर: अयोध्या के बाबरी और काशी की ज्ञानवापी की तर्ज पर धार की भोजशाला में पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने की मांग की गई है. इंदौर हाईकोर्ट ने सोमवार को इस मामले की सुनवाई करते हुए अब इसका फैसला सुरक्षित रख लिया है. बता दें कि हिंदू पक्ष की ओर से भोजशाला में हर शुक्रवार को होने वाली नमाज पर रोक लगाने की मांग की है. हिंदू पक्ष दावा कर रहा है कि यह विद्या की देवी सरस्वती का मंदिर है. 


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दरअसल भोजशाला विवाद को लेकर इंदौर हाई कोर्ट में अलग-अलग संगठनों ने सात जनहित याचिका दायर की गई है. इसके अलावा हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस ट्रस्ट की ओर से भी पक्ष रखा गया है. बता दें कि एएसआई के पुराने सर्वे में विष्णु कमल और संस्कृत के शब्द का जिक्र किया गया था.


इंदौर हाईकोर्ट ने फैसला रखा सुरक्षित
हिंदू पक्ष के वकील ने कोर्ट के पास तथ्य रखे थे कि आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की 1903 की रिपोर्ट में यहां सरस्वती मंदिर की पुष्टि की थी. यहां पर सरस्वती माता की मूर्ति लंदन के एक म्यूजियम में कैद है और इसके साथ ही मंदिर के पुराने गुंबजों पर संस्कृत में लिखे श्लोक के फोटो भी हिंदू पक्ष की वकील के तरफ से पेश किए गए. 


वकील ने कहा था कि इसलिए इस मामले को ज्ञानवापी की तरह ही आर्कियोलॉजिकल सर्वे कराकर कोर्ट अपना फैसला सुनाए. फिलहाल इस पूरे मामले में इंदौर हाईकोर्ट ने फैसले को सुरक्षित रखा है, इसके साथ ही जबलपुर हाईकोर्ट में भी याचिकाओं की जानकारी मांगी है. याचिकाओं की जानकारी आने के बाद ही कोर्ट अपना आगे का फैसला सुनाएगी.


भोजशाला का अबतक का इतिहास
- भोजशाला विवाद वर्ष 1034 में मूर्ति स्थापना से अब तक
- धार शासक परमार वंश के राजा भोज ने वर्ष 1034 में सरस्वती सदन और वाग्देवी मूर्ति की स्थापना की थी. तब वहां महाविद्यालय संचालित होता था.
- वर्ष 1456 में मेहमूद खिलजी ने सरस्वती सदन में मौलाना कमालुद्दीन का मकबरा और दरगाह बनाई.
- वर्ष 1857 में सरस्वती सदन की खुदाई में वाग्देवी की मूर्ति मिली.
- वर्ष 1880 में भोपावर पॉलिटिकल एजेंट मेजर किनकेड इस मूर्ति को लंदन ले गया. तब से मूर्ति वहीं है। इस मूर्ति की प्रतिकृति भोजशाला में है.
- वर्ष 1909 में धार रियासत ने एन्शिएंट मोन्यूमेंट एक्ट लागू करते हुए भोजशाला परिसर को संरक्षित स्मारक घोषित किया था. आजादी के बाद ये पुरातत्व विभाग के अधीन हो गया.
- वर्ष 1935 में धार रियासत के दीवान ने भोजशाला को कमाल मौला की मस्जिद बताते हुए शुक्रवार की नमाज पढ़ने की अनुमति दी.
- भोजशाला में सरस्वती जन्मोत्सव की शुरुआत वर्ष 1952 में केशरीमल सेनापति, प्रेमप्रकाश खत्री, बसंतराव प्रधान, ताराचंद अग्रवाल ने की.
- 4 फरवरी 1991 से प्रति मंगलवार सत्याग्रह शुरू किया गया. यह सत्याग्रह भोजशाला की मुक्ति के नाम पर भोजशाला उत्सव समिति ने शुरू किया था.
- सत्याग्रह में हर मंगलवार को हनुमान चालीसा का पाठ किया जाता था.
- वर्ष 1995 में भोजशाला में विवाद हुआ. इसके बाद मंगलवार को यहां पूजा करने और शुक्रवार को नमाज पढ़ने की अनुमति दी गई.
- 12 मई 1997 को धार कलेक्टर ने भोजशाला में प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया, लेकिन सत्याग्रह जारी रहा. बैरिकेड्स के बाहर से हनुमान चालीसा का पाठ किया जाता रहा.
- 6 फरवरी 1998 को पुरातत्व विभाग ने भी यहां आम लोगों के प्रवेश पर रोक लगा दी.
- बाद में भोजशाला में शुक्रवार को दोपहर 1 से 3 बजे तक नमाज पढ़ने की अनुमति दी गई.
- वर्ष 2003 में मंगलवार को बगैर फूलमालाओं के पूजन की अनुमति दी.
- 6 फरवरी 2003 को बसंत पंचमी के दिन नमाज को लेकर भोजशाला में विवाद हुआ. इससे तनाव बढ़ा और 18 फरवरी 2003 को धार में दंगे हुए.
 - इस हिंसा के बाद केंद्र की तत्कालीन अटल बिहारी सरकार ने 3 सांसद शिवराज सिंह चौहान, एएसएस आहलूवालिया और बलवीर पुंज की कमेटी से जांच करवाई.
- 8 अप्रैल 2003 में अंदर जाकर प्रति मंगलवार हनुमान चालीसा का पाठ करने की इजाजत मिली.
- 3 फरवरी 2006 को भी शुक्रवार और बसंत पंचमी एक साथ आए थे, जिसके बाद विवाद की स्थिति बन गई थी. उस समय हवन बंद करवाकर प्रशासन ने 13 लोगों से नमाज पढ़वाई. इसमें धार के तत्कालीन प्रभारी मंत्री कैलाश विजयवर्गीय से लोगों ने विरोध किया था.
- 12 फरवरी 2016 को बसंत पंचमी और शुक्रवारएक ही दिन होने पर विवाद की स्थिति बनी. पूजन और नमाज को लेकर दोनों पक्ष अड़ गए, जिसके कारण धार सहित आसपास के जिलों में हाई अलर्ट रहा.
- 12 फरवरी 2016 को पुलिस ने बसंत पंचमी पर दर्शन करने पहुंचे लोगों को दोपहर में जबरदस्ती बाहर निकाल दिया था. इस दौरान लाठीचार्ज हुआ. बाद में पुलिस सुरक्षा में 25 लोगों को पुलिस वाहन में लाकर नमाज पढ़वाई गई. यह मामला भी काफी विवादित रहा.