हरीश गुप्ता/छतरपुर: कहते हैं कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती और इसका प्रमाण दिया है,मध्यप्रदेश (MP News) के छतरपुर जिले के कूंड़ गांव के नाथू राम कुशवाहा ने, जिले के एक छोटे से गांव कूंड़ के किसान ने सूखा से परेशान होकर आठ साल की कड़ी मेहनत से एक-एक पत्थर को एकत्रित कर धसान नदी के ऊपर किसी भी शासकीय मदद के बिना ही टेंपरेरी बांध बना दिया है. बता दें कि बांध बनने से अब नदी में हर समय जल भराव रहता है. जिस कारण से किसान की 10 बीघा कृषि भूमि तो सिंचित हो ही रही है. साथ ही साथ आसपास के किसानों की 100 बीघा के लगभग जमीन पर अब बाकी फसलों के साथ-साथ सब्जी और फूलों की खेती कर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो रहे हैं. 


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फसल सूख कर हो जाती थी खराब 
छतरपुर जिले के आखिरी गांव कूंड़ के 70 वर्षीय किसान नत्थू कुशवाहा और उनके परिवार की जीवकोपार्जन का एक मात्र साधन खेती ही है, लेकिन खेती में पानी की कमी होने के चलते हमेशा सूखा की स्थिति निर्मित होने से फसल सूख कर खराब हो जाती थी और वो भी तक जब उनके खेतों के किनारे से बुंदेलखंड क्षेत्र की प्रमुख जीवनदायनी धंसान नदी बहने के बावजूद भी वह कुछ नहीं कर पाते थे. कई बार उन्होंने शासन-प्रशासन से नदी पर बोरी बंधान बनाने सहित अन्य मुद्दों को लेकर ज्ञापन आदि दिए. जिसके बाद कई बार शासन प्रशासन ने बांध के लिए नपाई भी कराई, लेकिन हर बार की तरह नतीजा वहीं बेनतीजा. जिसके बाद किसान नत्थू कुशवाहा ने थक हार कर स्वयं ही नदी पर बंधा बनाने का दृढ़ निश्चय किया तो परिवार के लोगों ने उनका मनोबल तोड़ दिया कि तुम नहीं कर पाओगे, लेकिन वह नहीं माने और अपने संकल्प में लग गए.


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बांध का निर्माण 2014 में शुरू हुआ था
बता दें कि सन 2014 में उन्होंने धंसान नदी पर बांध बनाना शुरू किया था. गांव में, खेत किनारे, नदी पर जहां कहीं उन्हें पत्थर मिलते एक-एक पत्थर को सहेज कर नदी के बांध में लगाने लगे. एक बार बंधा का कार्य लगभग आधा पूरा हो चुका था, लेकिन नदी में आई तेज धार के चलते बंधा भसक गया. जिसके बाद उन्होंने दुगनी मेहनत और संकल्प के साथ बंधा बनाने में लग गए. इस तरह लगभग 8 साल की कड़ी मेहनत के बाद किसान नत्थू कुशवाहा ने अकेले अपनी दम पर परिवार एवं गांव वालों को गलत साबित कर बंधा खड़ा कर दिया. बंधा बनने से कूंड़ गांव से बहने वाली नदी जो हमेशा गर्मियों में सुख जाती थी. गौरतलब है कि किसान नत्थू कुशवाहा की कहानी पढ़कर बिहार के  दशरथ मांझी की कहानी याद आ गई.