यहां पुलिस के सामने इकट्ठे होते है बहुत सारे पत्थर, फिर लोग एक दूसरे पर बरसाते हैं
पांढुर्णा का विश्व प्रसिद्ध गोटमार मेला का आगाज हो गया है. जिसके चलते मेला स्थल पर जाम नदी के तट पर सावरगांव पक्ष एवं पांढुर्णा पक्ष की ओर बड़ी तादाद में पत्थर पहुंच भी गए. फिर एक दिन पहले ही दोनों ओर से पत्थर चल गए.
सचिन गुप्ता/छिंदवाड़ा: पांढुर्णा का विश्व प्रसिद्ध गोटमार मेला का आगाज हो गया है. जिसके चलते मेला स्थल पर जाम नदी के तट पर सावरगांव पक्ष एवं पांढुर्णा पक्ष की ओर बड़ी तादाद में पत्थर पहुंच भी गए. फिर एक दिन पहले ही दोनों ओर से पत्थर चल गए. हालांकि भारी पुलिस बल तैनात हो चुका था, जिसके चलते तत्काल इस पर काबू पा लिया गया. इस बीच चार लोगों के जख्मी होने की सूचना भी मिली है.
बता दें कि पुलिस विभाग द्वारा भी अपनी जवाबदारी बराबर निभाई जा रही है. एक ओर जहां सावरगांव पक्ष एवं पांढुर्णा पक्ष के लोग परंपरा निभाएंगे. वहीं दूसरी ओर अब तक इस परंपरा के नाम पर 13 लोगों की जान तक जा चुकी है. फिर भी भादो पक्ष की अमावस्या एवं पोले का त्यौहार के दूसरे दिन चंडी माता के जयकारा लगाकर पांढुर्णा पक्ष क एवं सावरगांव पक्ष की ओर से गोटमार प्रारंभ होती है. जाम नदी के तट पर दोनों ही ओर से खेलने वाले खिलाड़ी सुबह से शाम तक लहूलुहान होंते और प्रशासन मुख दर्शक बना होता है.
10 एंबुलेंस और डॉक्टरों की टीम मौजूद
विश्व प्रसिद्ध गोटमार मेले के चलते अधिकारियों को जिम्मेदारी भी सौंप दी गई है. गोटमार मेले के आयोजन को लेकर प्रशासन ने जिला अधिकारियों को अलग-अलग जिम्मेदारी सौंपी है. स्वास्थ्य विभाग, खनिज विभाग, आदि अधिकारियों को अलग-अलग दायित्व सौंपा गए हैं. गोटमार को लेकर स्वास्थ्य विभाग द्वारा व्यवस्था बनाई गई है. जानकारी के मुताबिक 10 एंबुलेंस, डॉक्टरों की टीम पांढुर्णा पक्ष एवं सावरगांव पक्ष की ओर टेंपो में मौजूद रहेंगी. वही जलस्तर को देखते हुए नदी के आसपास विशेष तैनाती रखी जाएंगी.
क्या है गोटमार खेल?
दरअसल गोटगार खेल की पंरपरा 300 साल पुरानी मानी जाती है. इस दिन लोग एक दूसरे पर काफी ज्यादा मात्रा में पत्थर बरसाते हैं, जिसके कारण ही इसे गोटमार कहा जाता है. गोटमार मेले की शुरुआत 17वीं सदी से मानी गई है. महाराष्ट्र की सीमा से लगे पांर्ढुणा में हर साल कृष्ण पक्ष अमावस्या में पोला त्योहार के दूसरे दिन पांढुर्णा और सावरगांव के बीच बहने वाली नदी में पेड़ की स्थापना कर पूजा की जाती है. पांढु्र्णा पक्ष नदी के बीच गाड़े गए झंडे को तोड़ने का प्रयास करता है. सांवरगांव पक्ष तोड़ने से रोकता है. यहां नदी के दोनों ओर लोग इकट्ठा होते है और सुबह से शाम तक पत्थर मारकर एक दूसरे को लहूलुहान कर देते है. बता दें कि इस मेले में कई लोगों की मौत भी हो चुकी है. हालांकि कोरोना को देखते हुए पिछले साल ये मेला स्थगित कर दिया था.
अब तक हुई 13 लोगों की मौत
बता दें कि इस खूनी खेल में अब तक 13 लोगों की मौत हो चुकी है. वहीं गोटमार खेल जिस वक्त शुरू होता है, आज भी मृतकों को परिजनों में अजीब डर का माहौल निर्मित हो जाता है. वहीं इस खेल में दोनों तरफ से काफी ज्यादा लोग घायल होते है.