उज्जैन: दीपावली के अगले दिन पड़वा पर्व मनाएं जाने की सदियों पुरानी परंपरा रही है. लेकिन आज सोमवती अमावस्या होने से पड़वा पर्व कल 14 नवंबर को मनाया जाएगा. वहीं अगर बात उज्जैन जिले के बड़नगर तहसील अंतर्गत ग्राम भिडावदा की करें तो यहां पड़वा पर्व परंपरा अनुसार आज ही मनाया गया. पर्व पर गाय के गोबर से गोवर्धन मना कर महिलाएं पूजा करती है. साथ ही एक अनूठी परंपरा का निर्वहन इस दिन कई वर्षों से अलग-अलग गांवों में होता आ रहा है. जिसमें दर्जनों गौ माताएं इंसान के ऊपर से दौड़ती है.


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अब इसे परंपरा कहे या आस्था के नाम पर परंपरा का खेल? शासन-प्रशासन भी इसमें कभी हस्तक्षेप नहीं कर पाया. हालांकि पुलिस सुरक्षा में तैनात रहती है. देश की सुख-समृद्धि और खुद की मनोकामनाएं पूरी होने पर श्रद्धालु प्रत्येक वर्ष इस परंपरा में भाग लेते है.


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5 दिन उपवास के बाद खेल
दरअसल यह परंपरा सदियों पुरानी बताई जाती है. अनादि काल से चली आ रही है, इस परंपरा में श्रद्धालु 5 दिन का उपवास रखकर मंदिर में भजन-कीर्तन करते हैं और आखरी दिन जमीन पर लौटते हैं व ऊपर से एक साथ दर्जनों गाय दौड़ती है. गायों को श्रद्धालुओं के ऊपर से निकाला जाता है. जिसे श्रद्धालु आर्शीवाद मानते है.


मनोकामनाएं पूरी होती है
उज्जैन से करीब 60 से 70 किलामीटर की दूरी पर स्थित बड़नगर तहसील के ग्राम भिड़ावद के है. जहां फिर अनूठी आस्था देखने को मिली है. गांव में सुबह गाय का पूजन किया गया और पूजन के बाद लोग जमीन पर लेट गए और उनके ऊपर से गायें निकाली गई. मान्यता है कि ऐसा करने से हर मनोकामनाएं पूरी होती है और जिन लोगों की मनोकामनाएं पूरी हो जाती है, वे ही ऐसा करते है. परम्परा के पीछे लोगों का मानना है कि गौ माताओं में 33 करोड़ देवी-देवताओ का वास रहता है और गौ माता के पैरों के नीचे आने से देवताओं का आशीर्वाद मिलता है.


गोवर्धन पूजा के दिन अनूठी परंपरा निभाई जाती है
आस्था के नाम पर यहां लोगों की जान के साथ खिलवाड़ भी किया जाता हैं. हमारे देश भारत ने आज वैज्ञानिक तरक्की के जरिये भले ही दुनिया भर में अपनी मजबूत पहचान बना ली है लेकिन 21वीं सदी में जी रहे भारत देश में आज भी परंपरा और आस्था का बोलबाला है. आस्था और परंपरा की हदें पार हो जाये तो आस्था और अंध विश्वास में फर्क करना मुश्किल हो जाता हे.


क्या है गोवर्धन पर्व ?
मान्यता है कि जब कृष्ण ने ब्रजवासियों को मूसलधार वर्षा से बचने के लिए सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी ऊंगली पर उठाकर रखा और गोप-गोपिकाएं उसकी छाया में सुखपूर्वक रहे तो सातवें दिन भगवान ने गोवर्धन को नीचे रखा और हर वर्ष गोवर्धन पूजा करके अन्नकूट उत्सव मनाने की आज्ञा दी. तभी से यह उत्सव अन्नकूट के नाम से मनाया जाने लगा.


रिपोर्ट - राहुल सिंह राठौड़