जहां भगवान श्री कृष्ण ने ली शिक्षा, वहां के स्वयंभू शिवलिंग की है अद्भुत मान्यता, जानिए इसका रहस्य
महाकाल की नगरी उज्जैन में अंकपात मार्ग पर संदीपनी मुनि का आश्रम है. इस आश्रम में संदीपनी मुनि द्वारा स्थापित दुर्लभ शिवलिंग है. आइए जानते हैं इस शिवलिंग से जुड़े पौराणिक महत्व के बारे में.
राहुल सिंह राठौड़/उज्जैन: कहते है धर्मिक नगरी उज्जैनी अवंतिका बाबा महाकाल की नगरी के नाम से जानी जाती है, लेकिन बाबा महाकाल ही नहीं बाबा महाकाल के साथ कई ऐसे प्राचीन रहस्य इस नगरी से जुड़े हैं. जो हैरान कर देते हैं. शिव की इस नगरी में पग-पग पर देव स्थल स्थापित है. उन्हीं में से एक है शहर के अंकपात मार्ग स्थित गुरु संदीपनी आश्रम, जहां भगवान श्री कृष्ण ने संदीपनी मुनि से शिक्षा ली थी. इस आश्रम में अति प्राचीन दुर्लभ सर्वेश्वर महादेव का शिवलिंग स्थापित है. आइए मंदिर के पुजारी रूपम व्यापम से जानते हैं इस इस आश्रम और इसमें स्थापित अदभुत् शिवलिंग के रहस्य के बारे में.
दरअसल ये एक ऐसा स्थान है जहां सर्वेश्वर महादेव की वजह से संदीपनि आश्रम की नींव रखी गई, क्योंकि जब महर्षि सांदीपनि अपनी पत्नी के साथ इस स्थान पर पधारे थे. तब यहां सूखा और अकाल पड़ा हुआ था. यहां की जनता बड़ी त्रस्त थी. किसी प्रकार का यहां कोई आश्रम नहीं था. यहां सिर्फ एक जंगल था. एक पेड़ के नीचे गुरु संदीपनि व गुरुमाता दोनों आम जनता को बैठे दिखे तो उन्होंने गुरु और गुरु माता दोनों से कहा कि आप बहुत बड़े और सिद्ध संत नजर आ रहे है. कुछ ऐसा करें कि यहां पड़ रहे अकाल से हमें राहत मिले. यहां शांति बनी रहे.
बिल्व पत्र से उत्पन्न हुआ शिवलिंग
आम जन के आग्रह पर श्री कृष्ण के गुरु संदीपनि मुनि ने यहां कोई शिवलिंग नहीं होने से बिल्व पत्र पर जल चढ़ाया और भगवान शिव को प्रसन्न किया. भगवान शिव गुरु संदीपनि की तपस्या से प्रसन्न हुए और स्वयं महाकाल महादेव रूप में आशीर्वाद देने गुरु संदीपनि के सामने प्रकट हुए और कहा कि जब तक इस अवंतिका नगरी उज्जैन में यह शिवलिंग स्थापित है यहां पर कभी सूखा और अकाल नहीं पड़ेगा. ऋषि संदीपनि तुमने जनकल्याण के लिए यह कार्य किया है. मैं तुमसे अत्यधिक प्रसन्न हूं और तुम्हारे ही कारण आज इस पूरे अंचल का नाम मालवा अंचल के नाम से जाना जाएगा क्योंकि मालवा का अर्थ है हरा भरा होना सुख शांति का वातावरण बना रहना. महादेव ने आशीर्वाद दिया और उसके बाद जय श्री महादेव अंतर्ध्यान हुए तो यह शिवलिंग प्रकट हुआ.
पाषाण काल के पत्थर का है शिवलिंग
मंदिर के पुजारी रुपम व्यास ने बताया कि स्वयंभू शिवलिंग पाषाण पत्थर के हैं, जो मुश्किल ही किसी स्थान पर स्थापित हुए दिखाई देते हैं. उन्हीं में से एक यह स्थान है, भगवान महाकाल के समकक्ष ही इस शिवलिंग का स्थान माना गया है. क्योंकि नाग महाराज भी यहां पर भगवान शिव के साथ हैं, गुरु सांदीपनि का इतिहास त्रेतायुग का रहा है और द्वापर युग में श्री कृष्ण आए.
सांदीपनि की पत्नी ने शिव से मांगा वरदान
पुजारी रूपम व्यास ने बताया कि गुरु संदीपनि के साथ उनकी पत्नी ने भी भगवान शिव को जल अर्पित कर प्रसन्न किया था. शिव ने प्रसन्न होकर संदीपनि की पत्नी से कहा कि है माता मांगो तुम क्या मांगना चाहती हो क्योंकि शिव का मातृत्व प्रेम भी गुरुमाता को देख जाग उठा था. उनके 7 बच्चे मृत्यु को प्राप्त हो चुके थे. माता ने कहा प्रभु मेरे सातों बच्चे खत्म हो गए है. उसी वक्त शिव ने गुरु संदीपनि को कहा कि आप एक आश्रम कि यहां पर स्थापना करों क्योंकि द्वापर युग आने ही वाला है और द्वापर युग में 2 छात्र आपके आश्रम में आएंगे और शिव की आज्ञा को मान गुरु संदीपनि ने आश्रम स्थापित किया. जहां भगवान श्री कृष्ण और सुदामा ने गुरु संदीपनी से शिक्षा ग्रहण किया.
नगरी में कोई झूठ नहीं बोल सकता
पुजारी रूपम व्यास बताते हैं कि श्री कृष्ण सुदामा से जुड़ी एक कहानी अद्भुत है कहते है आश्रम में शिक्षा लेने जब प्रभु और उनके मित्र सुदामा आये तब गुरु संदीपनि की पत्नी गुरुमाता ने उन्हें चने दिए 40 दाने की दो पोटली दी और कहा लकड़ी लेकर आओ भूख लगेगी तो चने ले जाओ. दोनों लकड़ी बीनने गए पानी गिरने लगा तो श्री कृष्ण ने वो दोनों पोटली सुदामा को दे दी और सुदामा को पेड़ और चढ़ा दिया. वे नीचे ही रहे वहां उनके साथ सुदामा ने चालाकी की और पेड़ पर बैठ दोनों पोटली के चने खा गए. जब श्री कृष्ण को कट-कट की आवाज आई तो उन्होनें सुदामा से पूछा कि सुदामा तुम क्या खा रहे हो. जिस पर सुदामा ने कहा कि कृष्ण में कुछ नहीं खा रहा हूं, ठंड के मारे मेरे दांत किट किटा हैं वहीं श्री कृष्ण ने सुदामा का झूठ पकड़ा और यह प्रसंग प्रचलित है उसी समय से कि जो भी झूठ बोलता है उसको 6 महीने से साल भर के अंदर उस झूठ का भुगतान यहीं पर करना पड़ता है.
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