राहुल सिंह राठौड़/उज्जैन: धार्मिक नगरी उज्जैन जहां शिव के साथ शक्ति भी विराजमान है, इसलिए इस स्थान का हिंदू धर्म में बहुत महत्व है. मान्यता है उज्जैन नगरी में माता सती की दाहिनी कोहनी गिरी थी, जिसे हरिसिद्धि माता के नाम से जानते हैं. आज शारदीय नवरात्रि का पहला दिन होने की वजह से सुबह से ही दर्शन पूजन के लिए भक्तों की कतारें लगी हुए है. आइए जानते हैं मंदिर के महत्व और इससे जुड़ी कहानियों के बारे में...


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भगवान शिव ने स्थापित किया है शक्तिपीठ
दरअसल माता सती के अंग जो विश्व भर में अलग-अलग स्थानों पर गिरे थे, उनमें से एक उज्जैन भी रहा है. जहां माता सती की दाहिनी कोहनी गिरी थी, तभी से भगवान शिव ने यहां शक्तिपीठ के रूप में माता का स्थान स्थापित किया, जिन्हें आज हम सभी हरिसिद्धि माता के नाम से जानते है. वहीं शिव जी का ज्योतिर्लिंग महाकाल रूप में विराजमान है.


राजा विक्रमादित्य ने किए थे शीश अर्पण
मंदिर के पुजारी बताते है कि पहले दिन मंदिर के पुजारियों द्वारा व आम जन घरों में परिवार के सदस्य घट स्थापना करते हैं. 9 दिन तक पुजन अर्चन चलता है, 9 वें दिन माता के लिए विशेष हवन पूजन किया जाता है, जब राजा विक्रमादित्य थे तब उन्होंने माता को अपना आराध्य बनाया शीश तक उन्होंने माता के चरणों मे अर्पण किये, ऐसी मान्यता है उज्जैन में हर 12 वर्षो में अकाल पड़ता था, जिसको दूर करने के लिए उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने सभी देवियों को प्रसन्न किया था और इसी वजह से यहां माता का प्रकोप कम है. उज्जैन में शांति बनी रहने का यही एक कारण है सभी भक्तों पर माता का आशीर्वाद बना रहता है.



51 फीट ऊंचे स्तम्भ में दीपों को जलाने में लगता है 60 लीटर तेल
दरअसल मंदिर में स्थापित 51 फीट ऊंचे 1100 दीपों के दो दीप स्तम्भ जलाने में एक बार में 60 लीटर तेल की आवश्यकता होती है व 4 किलो रुई की, समय-समय पर इन दीप स्तंभों की साफ-सफाई भी की जाती है, जो काफी मुश्किल है. लेकिन आज भी शहर का एक परिवार इस परंपरा को बखूबी निभा रहा है, मंदिर के पुजारी बताते है कि "साल भर में 3 नवरात्रि" होती है एक गुप्त नवरात्रि, चैत्र नवरात्रि व कुंवार माह की नवरात्रि सभी का अपना महत्व है. इसमें देवियों के मंदिर में पूजा 9 दिन तक अलग-अलग स्वरूप में की जाती है. भक्तों का तांता मंदिर में लगा रहता है, गरबा आयोजन किया जाता है, 9 दिन उपवास रखने वाला मनुष्य शुद्ध होता है.


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