Lord Shree Krishna 16 Kalayen: भगवान विष्णु के अवतार श्री राम को 12 कलाओं का ज्ञान था, जबकि श्री कृष्ण को 16 कलाओं यानी संपूर्ण कलाओं का ज्ञान था. भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद माह के अष्टमी तिथि के दिन हुआ था. इसलिए हर वर्ष भाद्रपद माह की अष्टमी तिथि के दिन कृष्ण जन्मोत्सव मनाया जाता है. इस बार कृष्ण जन्मोत्सव 19 अगस्त को मनाया जाएगा. भगवान कृष्ण का गीता ज्ञान समस्त मानव समुदाय के लिए पथ प्रदर्शक है. ऐसे में कृष्ण जन्मोत्सव पर आज हम आपको भगवान कृष्ण के उन 16 कलाओं के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे पढ़कर आप भावविभोर हो जाएंगे.


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भगवान कृष्ण के अंदर मौजूद थी ये 16 कलाएं


श्रीधन संपदा
प्रथम कला के रूप में धन संपदा को स्थान दिया गया है. यानी जिसके पास अपूत धन हो और वह आत्मिक रूप से भी धनवान हो. साथ ही उसके घर से कोई खाली हाथ नहीं जाए. वह प्रथम कला से संपन्न माना जाता है. ये कला भगवान श्री कृष्ण में मौजूद है.


भू- अचल संपत्ति
दूसरी कला का नाम है भू अचल संपत्ति, यानी जिस व्यक्ति के पास पृथ्वी का राज भोगने की क्षमता है और पृथ्वी के एक बड़े भू-भाग पर जिसका अधिकार हो, वह अचल संपत्ति का मालिक होता है. भगवान श्री कृष्ण ने अपनी योग्यता से द्वारिका पुरी को बसाया था इसलिए यह कला उनमें मौजूद है.


कीर्ति


 तीसरी कला का नाम है कीर्ति, यानी जिस व्यक्ति के मान-सम्मान व यश की कीर्ति से चारों दिशाओं में गूंजती हो और लोग उसके प्रति श्रद्धा भाव व विश्वास रखते हों, वह तीसरी कला से संपन्न होता है. यह कला भगवान कृष्ण में मौजूद है.


इला
चौथी कला का नाम इला है जिसका अर्थ है मधुर वाणी. भगवान श्री कृष्ण में यह कला भी मौजूद है, क्योंकि पुराणों में इसका उल्लेख है कि श्री कृष्ण की वाणी सुनकर क्रोधी व्यक्ति भी अपना सुध-बुध खोकर शांत हो जाता था और भगवान की भक्ति में लीन हो जाता था.


लीला
पांचवीं कला का नाम है लीला. जिसका अर्थ होता है आनंद. भगवान श्री कृष्ण धरती पर लीलाधर के नाम से भी जाने जाते हैं, क्योंकि इनकी रोचक बाल लीलाओं को सुनकर हर कोई मोहित और भावविभोर हो जाता है.


कांति
छठी कला का नाम है कांति. यानी जिसके स्वरूप को देखकर हर कोई आकर्षित और प्रसन्न हो जाता है, जिसके छवि को देखने को बार-बार मन करता है. भगवान कृष्ण की मोहिनी छवि को देखकर पूरा ब्रज मंडल हर्षित हो जाता था. इसलिए यह कला भगवान कृष्ण में मौजूद है.


विद्या
सातवीं कला का नाम विद्या है. यानी जो वेद विद्या से परिपूर्ण हो. भगवान श्री कृष्ण वेद, वेदांग के साथ ही युद्घ और संगीत कला में पारंगत थे. इसलिए यह कला भगवान कृष्ण में मौजूद है.


विमला
आठवीं कला का नाम है विमला. यानी जो लोग छल-कपट नहीं करते हैं उन्हें आठवीं कला से युक्त माना जाता है. भगवान श्री कृष्ण कभी किसी के प्रति छल-कपट नहीं रखते थे और वे सबके साथ समान व्यवहार करते थें. इसलिए यह कला उनके भीतर मौजूद थी. 


उत्कर्षिणि
नौवी कला का नाम है उत्कर्षिणि. यानी जिसमें इतनी शक्ति मौजूद हो कि लोग उसकी बातों से प्रेरणा लेकर लक्ष्य भेदन कर सकें. भगवान कृष्ण ने नौवी कला का परिचय देते हुए महाभारत के युद्ध में अर्जुन को युद्ध के लिए प्रेरित किया और अधर्म पर धर्म की विजय पताका लहराई.


ज्ञान
दसवीं कला का नाम है ज्ञान. यानी जो अपने बुद्धि विवेक से मानव हित की रक्षा करता हो. भगवान कृष्ण ने अपने विवेक का परिचय देते हुए अधर्म पर धर्म की जीत के लिए दुर्योधन से पांच गांव मांगने और महाभारत के युद्ध के लिए प्रेरित किया था.


क्रिया
ग्यारहवीं कला के रूप में क्रिया यानी कर्म को स्थान प्राप्त है. कर्म का मतलब है जो खुद को मनुष्य की तरह काम करते हुए लोगों को भी कर्म करने की प्रेरणा देते हैं. भगवना कृष्म में यह कला मौजूद थी.


योग
बारहवीं कला को योग के नाम से जाना जाता है. यानी जिनका मन केंद्रित है और अपने मन को आत्मा में लीन कर लिया हो. भगवान कृष्ण ने योग साधना के दम पर मां के गर्भ में पल रहे राज परीक्षित की ब्रम्हास्त्र से रक्षा की थी.


प्रहवि
तेरहवीं कला का नाम प्रहवि है. इसका अर्थ विनय होता है. यानी जिसके पास सब कुछ होते हुए भी अंहकार नाम की कोई चीज न हो. भगवान कृष्ण में यह कला थी, क्योंकि वे खुद राजा होते हुए अपने गरीब मित्र सुदामा को गले से लगा लेते थें.


सत्य
चौदहवीं कला का नाम सत्य है. यानी जो सत्य बोलने से परहेज न रखता हो. भगवान कृष्ण में यह कला मौजूद थी, क्योंकि जब शिशुपाल ने पूछा कि शिशुपाल का वध तुम्हारे हाथों ही होगा, तो कृष्ण ने निःसंकोट भाव में कह दिया हां, यह विधि का विधान है और इसे मुझे करना पड़ेगा.


इसना 
पंद्रहवीं कला का नाम इसना है. यानी जिससे व्यक्ति कहीं पर भी अपना प्रभाव स्थापित कर लेता हो. भगवान कृष्ण में यह कला मौजूद थी, क्योंकि उन्होंने अपने आधिप्तय के दम पर मथुरा वासियों को द्वारिका में बसने के लिए तैयार किया था.


अनुग्रह 
सोलवीं कला का मान उपकार है. यानी बिना कुछ उम्मीद किए लोगों की निस्वार्थ भाव से सेवा करना. भगवान कृष्ण में यह कला मौजूद है, क्योंकि जो भी भक्त इनसे कुछ मांगता है उसकी हर मनोकामना पूरी करते हैं.


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disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी सामान्य जानकारियों और धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है. zee media इसकी पुष्टि नहीं करता है.