प्रमोद सिन्हा/खंडवा: चैत्र नवरात्र से हिंदू नववर्ष प्रारंभ होने जा रहा है. नव वर्ष की शुरुआत ही शक्ति की आराधना से प्रारंभ होती है. 9 दिनों तक श्रद्धालु शक्ति की भक्ति में लीन होंगे. नवरात्र के नौ दिनों तक माता के अलग-अलग स्वरूपों की आराधना की जाएगी. इस खास मौके पर हम आपको खंडवा के पौराणिक तुलजा भवानी माता के मंदिर में ले चलते हैं. यहां मान्यता है कि मां की प्रतिमा दिन में तीन रूप बदलती है. साथ ही मंदिर में स्थापित माता की स्वयंभू प्रतिमा का जुड़ाव रामायण और महाभारत काल से जुड़ा हुआ है.


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खंडवा का तुलजा भवानी माता का मंदिर. इस मंदिर के बारे में कुछ ऐसी पौराणिक कथाएं भी जुड़ी हैं, जिससे यहां का जुड़ाव त्रेता युग और द्वापर युग से होता है. कहा जाता है कि भगवान राम ने अपने वनवास के दौरान इस मंदिर में पूजन-अर्चन किया था. रामायण और महाभारत में जिस खांडव वन के बारे में वर्णन मिलता है. वह खांडव वन भी इसी क्षेत्र को माना गया है. इसी खांडव वन के नाम पर इस क्षेत्र को खंडवा नाम दिया गया है.


भगवान श्रीराम से जुड़ी मान्यता
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्रीराम ने इसी खांडव वन में अपने वनवास के दौरान समय बिताया था और इसी शक्तिस्थल पर लगातार 9 दिनों तक पूजा-अर्चना कर लंका के लिए कूच किया था. माता से दिव्य अस्त्र-शस्त्र प्राप्त किए थे. जबकि कुछ लोगों का यह भी मानना है कि माता भवानी ने खरदूषण के आतंक को खत्म करने के लिए भगवान श्रीराम को कुछ विशेष और दिव्य अस्त्र-शस्त्र वरदान में दिए थे.


खंडवा जिले की धार्मिक एवं पुरातात्विक धरोहरों में माता तुलजा भवानी का यह मंदिर सबसे प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर माना जाता है. मंदिर के गर्भगृह में स्थापित भवानी माता साक्षात सिद्धीदात्री के रूप में विराजित हैं. अष्टभुजी से बनी माता की यह प्रतिमा सिंह पर सवार है, जो राक्षसों का वध कर रही हैं, लेकिन, प्रतिदिन किए जाने वाले माता के विशेष श्रृंगार के कारण श्रद्धालुओं को माता का यह पूर्ण स्वरूप साक्षात रूप से दिखाई नहीं देता है. ऐसी मान्यता है कि भवानी माता की यह प्रतिमा भी दिन में तीन बार अलग-अलग रूप बदलती है, जिसमें सुबह के समय बाल्यावस्था, दोपहर के समय युवावस्था और शाम के समय वृद्धावस्था स्वरूप का दर्शन होता है. इस मंदिर से अनेक लोग हैं जो पीढ़ियों से नियमित यहां दर्शन करने आते हैं और सेवा करते हैं. इन भक्तों की गहरी आस्था माताजी के प्रति जुड़ी हुई है.


मां तुलजा भवानी मराठा शासक शिवाजी की कुलदेवी 
इस मंदिर में विराजित मां तुलजा भवानी मराठा शासक शिवाजी की कुलदेवी भी है. इतिहासकार बताते हैं कि शिवाजी स्वयं और उनका कुलवंश भी इस मंदिर में माता की आराधना करने आते हैं थे. किवदंती है कि शिवाजी को मां भवानी ने शमशीर प्रदान की थी. उसी शमशीर के तेज से उन्होंने मुगलों के दांत खट्टे किए थे. चैत्र और अश्विन की नवरात्र के अवसर पर लगातार 9 दिनों तक यहां आस-पास के लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है.जिसके कारण मंदिर क्षेत्र का माहौल एक विशाल मेले में बदल जाता है. यहां श्रद्धालुओं की अनन्य आस्था जुड़ी हुई है. मंदिर में विराजित शक्ति स्वरूपा से सच्चे मन से जो मांगो वह आशीर्वाद मिलता है.