राहुल सिंह राठौड़/उज्जैन: महाकाल लोक के पहले चरण के कार्य पूरे हो चुके हैं.कुछ ही दिनों में 11 अक्टूबर को प्रधानमंत्री मोदी कार्यों का लोकार्पण करने वाले हैं. महाकाल लोक में शिव से जुड़ी कई कहानिया प्रतिमाओं,दीवारों पर श्लोकों व नक्काशी के माध्यम से दर्शाई गई हैं. चूंकि आज विजयादशमी पर्व है आपको महाकाल लोक में बन कर तैयार हुई 25 फुट ऊंची रावण की विशाल प्रतिमा के बारे में रावण और शिव से जुड़ी कहानी बताते हैं कि रावण का अभिमान भगवान शिव ने चूर-चूर किया, कैसे रावण शिव भक्त हुआ और उसका नाम दशानन से रावण कैसे पड़ा?


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रावण स्वभाव से अभिमानी रहा
महाकाल लोक के प्रोजेक्ट मैनेजर कृष्ण मुरारी शर्मा ने बताया कि रावण की ये विशाल प्रतिमा दर्शा रही है कि रावण कैलाश पर्वत लिए खड़ा है और कैलाश पर बैठे भगवन शिव पार्वती हंस रहे हैं.इसके पीछे की जो कहानी है वो इस प्रकार है कि ये कहानी शिव पुराण व वाल्मीकि रामायण में मिलती है.जिसमें रावण से जुड़ा ये प्रसंग है कि रावण ब्राह्मण वंश में जरूर पैदा हुआ,लेकिन स्वभाव से वो अभिमानी रहा है. 


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रावण रोया तो उसका नाम दशानन से रावण हुआ
बता दें कि रावण ने कड़ी तपस्या कर ब्रह्मा जी से वरदान लिया कि उसे नर और वानर के सिवा कोई नहीं मार सकता. उसी अभियान के चलते जब भी वो कहीं जा रहा था तो एक बार उसके मार्ग में कैलाश पर्वत आ गया उसने उसे उठा कर साइड में रखना चाहा.जब उसने ऐसा किया तो भगवान शिव ध्यान मुद्रा में कैलाश पर्वत पर बैठे थे.जिससे उनका ध्यान भंग हो गया और ध्यान भंग होने की वजह से भगवान शिव ने क्रोध में पैर के अंगूठे के बल से रावण के हाथ को दबा दिया.कैलाश के नीचे हाथ दबने से रावण की जोर स्व पुकार निकली वो पुकार तीन लोक में गुंजायमान हुई.जिसके बाद रावण ने भगवान शिव की महिमा को समझा और उसने शिव तांड़व से भगवान शिव की स्तुति की. इस प्रकार रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न किया. बता दें कि रावण रोया तो उसका नाम दशानन से रावण हुआ.


प्रोजेक्ट मैनेजर ने आगे जानकरी देते हुए कहा कि जब शिव रावण की स्तुति से प्रसन्न हुए तो उन्होंने उसका हाथ कैलाश के नीचे दबा हुआ निकाला और वो जब रोया(रोदन करने लगा) तो उसको रावण नाम दिया गया. जिसके बाद भगवान शिव ने उसे वरदान रूप में आशीर्वाद भी दिया. वहीं यहां प्रतिमा में संस्कृत में श्लोक भी लिखा है:


संस्थाप्य तत्पुष्पकमसशुरक्ष: पुप्लावकैलाशगिरेश्चमूले। जित्वादिगीशांश्चसगर्वितस्य कैलाशमान्दोलयत: सुरारे:।। अंगष्ठकृत्येवरसातल यातस्य दशाननश्य। अलूनकायस्य गिरंनिशम्य विहस्य देव्यासहदत्तमिष्ठम्। तस्मैप्रसन्न: कुपितोपि शम्भुरयुक्तदातेति न संशयोअत्र।।


अर्थात - रावण ने कैलाश पर्वत को उठाया.तब शिवजी ने पैर के अंगूठे से पर्वत को ऐसा दबाया कि दशानन रसातल में जाने लगा.तब शिवजी देवी पार्वती के साथ प्रसन्न हुए.