श्रीमद्भागवत गीता के बारे में क्या सोचते थे महात्मा गांधी, जानिए बापू ने किसे माना सच्चा धार्मिक व्यक्ति...
Mahatma Gandhi death anniversary: महात्मा गांधी अपने विचारों के कारण देश और दुनिया के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं. आपने उनके राजनीतिक, आर्थिक विचारों को तो हमेशा सुना या पढ़ा ही होगा, लेकिन गांधी जी के धार्मिक विचार भी कम महत्वपूर्ण नहीं है.
Mahatma Gandhi death anniversary: राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्यतिथि (Mahatma Gandhi death anniversary) 30 जनवरी को मनाई जाएगी. 30 जनवरी, 1948 को नाथूराम गोडसे(Nathuram Godse) ने महात्मा गांधी(Mahatma Gandhi) की गोली मारकर हत्या कर दी थी. महात्मा गांधी को पूरा नाम मोहनदास करमंचद गांधी था, उन्हें बापू नाम से भी संबोधित किया जाता है. उन्होंने अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराने के लिए पूरे देश को एकजुट किया. सत्य और अहिंसा को अपनाया और सफलता हासिल की. ''अहिंसा परमो धर्म: उनका संदेश था, जो पुरी दुनिया में आज भी प्रासंगिक है.
गौरतलब है कि महात्मा गांधी अपने विचारों के कारण देश और दुनिया के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं. आपने उनके राजनीतिक, आर्थिक विचारों को तो हमेशा सुना या पढ़ा ही होगा, लेकिन गांधी जी के धार्मिक विचार भी कम महत्वपूर्ण नहीं है. तो चलिए जानते हैं गांधी जी पुण्यतिथि पर उनके धार्मिक विचार (Gandhiji religious thoughts) को..
श्रीमद्भागवत गीता का काफी प्रभाव
दरअसल महात्मा गांधी पर श्रीमद्भागवत गीता का काफी गहरा असर था. वे नियमित इसका पाठ करते थे. सस्ता साहित्य मंडल नई दिल्ली से गांधी जी के लेखों पर प्रकाशित गीता की महिमा में उनके धार्मिक विचारों की काफी झलक मिलती है. एक लेख में महात्मा गांधी ने लिखा कि गीता शास्त्रों का दोहन है, आज गीता मेरे लिए केवल बाइबिल नहीं, कुरान नहीं, बल्कि माता हो गई है.
गीता पर महात्मा गांधी के विचार(Gandhiji religious thoughts)
- महात्मा गांधीजी ने गीता को लेकर एक गहरी बात कही थी. उन्होंने कहा था कि ''जब कभी संदेह मुझे घेरते हैं और मेरे चेहरे पर निराशा छाने लगती है तो मैं गीता को एक उम्मीद की किरण के रूप देखता हूं. गीता में मुझे एक छंद मिल जाता है, जो मुझे सांत्वना देता है. मैं कष्टों के बीच मुस्कुराने लगता हूं.
- महात्मा गांधी ने कहा कि मैं सनातनी होना का दावा करता हूं, लेकिन गीता के मुख्य सिद्धांत के विपरीत जो भी हो, उसे मैं हिंदू धर्म से विरोध मानता हूं, और अस्वीकार करता हूं. गीता में किसी धर्म या धर्म गुरु का विरोध नहीं है.
- जो भी व्यक्ति गीता का भक्त होता है, उनके जीवन में कोई निराशा नहीं होती है. वह आनंदमय रहता है. लेकिन इसके लिए बुद्धिवाद नहीं अव्यभिचारिणी भक्ति चाहिए.
- महात्मा गांधी ने कहा कि मैं गीता की मदद से ट्रस्टी शब्द का अर्थ अच्छी तरह समझ पाया हूं. ट्रस्टी करोंड़ों की संपत्ति रखते हैं, लेकिन उस पर हमारा अधिकार नहीं होता. इस तरह मुमुक्षु यानी मोक्ष को अपना आचरण रखना चाहिए, यह मैंने गीता से सीखा.
गांधी जी किसे मानते थे सच्चा धार्मिक?
महात्मा गांधी के मुताबिक परमात्मा का कोई धर्म नहीं होता है. जो व्यक्ति दूसरों के दुख दर्द को समझता है, असली धार्मिक वहीं है. बता दें कि महात्मा गांधी सर्वधर्म समभाव पर विश्वास करते थे.