जिस तारीख का इंतजार था, वह आखिरकार आज घोषित हो ही गई.  पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव को लेकर केंद्रीय चुनाव आयोग ने तारीखों की घोषणा कर दी है.  इसके बाद मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ राजस्थान, तेलांगना और मिजोरम में आचार संहिता लग गई है. इन राज्यों की गतिविधियों पर चुनाव आयोग की पैनी नजर होगी. वहीं मीडिया भी इससे अछूता नहीं है. इन पांच राज्यों में कौन सी खबर और कैसी खबर निकल रही है, इसको लेकर आयोग भी मीडिया संस्थानों से नियमों का अनुपालन करने को कहा है. वरना, कार्रवाई की जा सकती है. गौरतलब है कि पेड न्यूज का मामला बीते कई चुनावों में सुर्खियां बटोर चुका है.


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ऐसे में जरा सी चूक मीडिया की साख को बट्टा लगा सकता है. साथ ही चुनाव आयोग के नोटिस का जवाब भी देना होगा. इससे बचने के लिए जरूरी है कि जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, वहां के पत्रकार और उन राज्यों पर जो लोग बाहर से भी स्टोरी लिख रहे हैं, उन्हें लोकतांत्रिक मर्यादाओं और आयोग द्वारा तय की गई लक्ष्मण रेखा का पालन करना चाहिए. 


कुछ साल पहले से ही आयोग इस पर पैनी नजर रखता है. बीते चुनावों के दौरान कई नामचीन संस्थाओं को आयोग के सवालों का जवाब देना पड़ा है और पत्रकार बिरादरी में उसकी किरकिरी भी हुई है. बीते दशक से पारंपरिक मीडिया के साथ सोशल मीडिया पर भी आयोग की निगहबानी होती है. यदि किसी खबर के माध्यम से किसी दल अथवा किसी प्रत्याशी विशेष का चुनाव का प्रचार किया जाता है, तो ट्विटर, फेसबुक, यू-ट्यूब, विकिपीडिया जैसे सोशल मीडिया पर प्रचार सामग्री पोस्ट करने से पहले नियमों के तहत रिटर्निंग ऑफिसर से अनुमति लेनी होगी. चुनाव आयोग ने इस संबंध में पूर्व में ही कड़े दिशा-निर्देश जारी किए हुए हैं.


बीते वर्षों में केंद्रीय चुनाव आयोग ने माना है कि सोशल मीडिया और वेबसाइट भी रेडियो-केबल टीवी की तरह इलेक्ट्रॉनिक मीडिया है. जिस पर किए जाने वाले चुनाव प्रचार को कानूनी रूप दिया जाना चाहिए और तो और, राजनीतिक दलों से भी आयोग की ओर से कहा गया है कि बगैर अनुमति के सोशल मीडिया का उपयोग चुनाव प्रचार के लिए न करें. चुनाव आयोग ने यह भी स्पष्ट किया है कि सोशल मीडिया पर न केवल आचार संहिता लागू रहेगी, बल्कि वेबसाइट और सोशल मीडिया एकाउंट पर पोस्ट की जाने वाली सामग्री इसके अधीन रहेगी.


भारत निर्वाचन आयोग द्वारा इस संबंध में जारी दिशा निर्देशों में साफ तौर पर कहा गया है कि सोशल मीडिया मसलन ट्विटर, फेसबुक, यू-ट्यूब विकिपीडिया और एप्स पर कोई भी विज्ञापन या एप्लीकेशन देने से पहले इसका प्रमाणीकरण कराकर अनुमति ली जाए. यह अनुमति मीडिया सर्टिफिकेशन ऑफ मॉनिटरिंग कमेटी देगी.


गौर करने योग्य यह भी है कि 20 मार्च, 2019 को  सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (आईएएमएआई) ने तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा और चुनाव आयुक्तों अशोक लवासा और सुशील चंद्रा को "आम चुनाव 2019 के लिए स्वैच्छिक आचार संहिता" प्रस्तुत की. आचार संहिता को आईएएमएआई और फेसबुक, व्हाट्सएप, ट्विटर, गूगल, शेयरचैट और टिकटॉक आदि सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के प्रतिनिधियों के साथ कल की बैठक के बाद विकसित किया गया. मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने उठाए गए कदमों की सराहना करते हुए कहा कि संहिता का निर्माण एक अच्छी शुरुआत का संकेत है, लेकिन अनिवार्य रूप से इसे बनाने का काम अभी बाकी है. उन्होंने कहा कि प्रतिभागियों को आचार संहिता में की गई प्रतिबद्धताओं का अक्षरश: पालन करना होगा. प्लेटफ़ॉर्म ने सिन्हा समिति की सिफारिशों के अनुसार आरपी अधिनियम, 1951 की धारा 126 के तहत रिपोर्ट किए गए किसी भी उल्लंघन को तीन घंटे के भीतर संसाधित करने के लिए प्रतिबद्ध किया है.


प्लेटफ़ॉर्म ईसीआई के लिए एक उच्च प्राथमिकता समर्पित रिपोर्टिंग तंत्र बनाने और किसी भी रिपोर्ट किए गए उल्लंघन पर शीघ्र कार्रवाई करने के लिए आम चुनाव की अवधि के दौरान समर्पित टीमों को नियुक्त करने पर भी सहमत हुए हैं. प्रतिभागियों ने राजनीतिक विज्ञापनदाताओं को मीडिया प्रमाणन और निगरानी समिति द्वारा जारी पूर्व-प्रमाणित विज्ञापन प्रस्तुत करने के लिए एक तंत्र प्रदान करने पर भी सहमति व्यक्त की है. आचार संहिता भुगतान किए गए राजनीतिक विज्ञापनों में पारदर्शिता की सुविधा प्रदान करने का भी वादा करती है.


(सुभाष झा राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार हैं. विचार व्यक्तिगत हैं.)