SC ST In MP Politics: मध्य प्रदेश में चुनावी (Madhya Pradesh Election 2023) साल में आते ही राजनीतिक महारथियों का फोकस एससी-ओसटी और आदिवासी वर्ग (Caste Politics In MP) पर मुड़ गया है. बीजेपी और कांग्रेस ने अपना चुनावी प्लान अनुसूचित जाति को साधने के हिसाब से बना लिया है और जमीनी स्तर पर काम भी शुरू कर दिया है. कांग्रेस अनुसूचित जनजातीय विभाग का बड़ा सम्मेलन कर रही है, जिसमें पूर्व सीएम कमलनाथ (Kamalnath) सियासी कास्ट प्लान तैयार कर रहे हैं. इसी के सहारे 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अपनी जीत सुनिश्चित करने की उम्मीद लगा रही है.  दूसरी तरफ फरवरी से बीजेपी विधानसभा वार अनुसूचित जाति वर्ग के सम्मेलन करेगी. बीजेपी आलाकमान (BJP) ने साफ कर दिया है कि प्रदेश की हर छोटी-बड़ी गतिविधियों को इसे ध्यान में रखकर किया जाए. एमपी में साल 2023 में विधानसभा (MP Assembly Election 2023) चुनाव हैं. 


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MP की राजनीतिक जमीन पर आदिवासियों की अहमियत
मध्य प्रदेश की राजनीति को ध्यान से देखें तो पता चलता है कि यहां की सत्ता पाने में आदिवासी वोटबैंक निर्णायक भूमिका में रहते हैं और इसे साधने के लिए प्रदेश की दोनों ही बड़ी पार्टियां समय समय पर जुगत लगाती रहती है. लोकसभा चुनाव में आदिवासियों के लिए 47 लोकसभा सीटें आरक्षित हैं. वहीं 60 से ज्यादा सीटों पर आदिवासी मतदाताओं का खासा प्रभाव रहता है. ऐसे में बीजेपी ने द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद पर लाकर 60 से ज्यादा सीटों पर अपनी पकड़ बनाने के लिए मास्टर स्ट्रोक खेला.  हालांकि बीजेपी का ये कदम सिर्फ मध्य प्रदेश के लिए नहीं था. मध्य प्रदेश के अलावा गुजरात, झारखंड, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में भी बड़ी संख्या में आदिवासी वोटर निर्णायक स्थिति में रहते हैं.  


भारत जोड़ो यात्रा का चुनावी इफेक्ट
साल 2022 के अंत में प्रदेश सबसे ज्यादा चर्चा का विषय रहा राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा  इसकी काट के लिए बीजेपी ने 2023 के चुनाव को देखते हुए जनजातीय बाहुल्य विधानसभाओं और लोकसभा सीटों पर रथयात्रा निकालने का प्लान बनाया. रथयात्रा में जनजातीय गौरव दिवस पर टंट्या मामा बलिदान दिवस पर कार्यक्रम आयोजित कर आदिवासी वोटबैंक को रिझाने की भरपूर कोशिश की. रथयात्रा कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा की काट कही गई, लेकिन वो कुछ कमाल नहीं कर पाई. भारत जोड़ो यात्रा ने एमपी में 12 दिनों में कई विधानसभाओं और लोकसभा सीटों पर फोकस किया. कहा गया कि द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाने के बाद कांग्रेस ज्यादा सक्रिय हुई और भारत जोड़े यात्रा पटल पर आई. 


जयस ने डाला टेंशन में
बीजेपी ने जयस के प्रभाव को कम करने के लिए भी अपनी पार्टी के आदिवासी नेताओं को एक्टिव कर दिया. आदिवासी संगठन जयस ने आदिवासियों के प्रभाव वाली 80 विधानसभा सीटों पर अपने कैंडिडेट उतारने का ऐलान किया तो कांग्रेस ही नहीं बीजेपी को भी बड़ा झटका लगा, जिसके चलते दोनों दल जयस को काउंटर करने की रणनीति बनाने में जुट गए. 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सत्ता की चाबी आदिवासियों के वोटों के सहारे ही मिली थी. 47 सीटों में से कांग्रेस को 30 सीटें मिली थीं, लेकिन इस बार ये इतना आसान नहीं है और ये खुद कांग्रेस भी जानती है. पीएम मोदी को एमपी लाकर और जनजातीय गौरव दिवस मनाकर बीजेपी ने कांग्रेस के लिए कड़ी टक्कर देने का काम किया और इसका असर कुछ हद तक नगरीय निकाय और पंचायत  चुनाव में देखने को भी मिला. अब कांग्रेस को डर है कि विधानसभा में भी आदिवासियों का झुकाव बीजेपी की तरफ ना चला जाए. जयस संगठन के संरक्षक डॉ. हीरालाल अलावा कांग्रेस से विधायक हैं.


करणी सेना बिगाड़ सकती है खेल
साल के अंत में मप्र राज्य में विधानसभा चुनाव होना है. ऐसे में जातीय समीकरण बैठाने में सत्ताधीश लगे हुए हैं. इस बीच करणी सेना ने भी राजनीति में एंट्री के संकेत दे दिए हैं. बता दें कि भोपाल के जंबूरी मैदान में जुटे लाखों की संख्या में युवा अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहें हैं. करणी सेना की 21 सूत्रीय मांगे हैं और करणी सेना प्रमुख जीवन सिंह शेरपुर का कहना है कि मांगे नहीं पूरी नहीं हुई तो सत्ता बदल देंगे. उनका दावा है कि सवर्ण और पिछड़ा वर्ग मेरे साथ में है. मौजूदा स्थिति में अगर मांगे मानी गई तो ये वोट बैंक भाजपा की तरफ जाएगा, वरना मप्र की राजनीति में एक और बदलाव देखने को मिल सकता है. यानि सरकार ने पेसा एक्ट हो या फिर और कोई योजनांए जो आदिवासियों के लिए लेकर आ रही है. इसके बावजूद भाजपा आदिवासियों को जोड़ने में पूरी तरह सक्षम नहीं दिखाई दे रही है.


पाटीदार समाज पर भी दांव
विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए भाजपा ने ओबीसी को साधने के लिए इस बार पाटीदार समाज पर भी दांव खेलने के मूड में है. आपको बता दें कि हाल में ही पार्टी ने राज्यसभा सांसद के रुप में इंदौर की पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष कविता पाटीदार को चुना था. कविता की उम्मीदवारी पर मोहर लगाने में पूरे पाटीदार समाज ने मेहनत की थी .इसके लिए पार्टी के अंदर बाकायदा एक अभियान चलाया गया जो मालवा निमाड़ के पाटीदार समाज से शुरु हुआ था. इससे ये देखा जा रहा है कि भाजपा पार्टी ओबीसी वर्ग को भी रिझाने की कोशिश कर रही है. इसके अलावा आपको बता दें कि कविता पाटीदार का चयन इंदौर की राजनीति में शक्ति के संतुलन के रुप में देखा जा रहा है जो आगामी विधान सभा चुनाव पर काफी असर डाल सकता है.


SCST वोटबैंक को मनाने में कांग्रेस का कदम 
आदिवासियों का साथ पाने के लिए कांग्रेस भी कई कदम चल रही है. कांग्रेस सभी 47 विधानसभा क्षेत्रों में सम्मेलन कर रही है. इसमें कांग्रेस द्वारा किए गए आदिवासी हित के कार्यों को जनता को याद दिलवाया जाएगा. कांग्रेस अनुसूचित जनजातीय विभाग का बड़ा सम्मेलन करने जा रही है. इसके बाद साफ कहा जा सकता है कि कांग्रेस अनुसूचित जनजातीय के ही  सहारे है. कमलनाथ सियासी कास्ट प्लान तैयार कर रहे हैं, जो 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत तय करे. इसके लिए अनुसूचित जनजाति विभाग के कार्यकर्ताओं का सम्मेलन प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में हुआ. सम्मेलन में प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने अनुसूचित जनजाति विभाग के कार्यकर्ताओं को टिप्स दिए.


बीजेपी ने आदिवासी समाज के लिए क्या क्या किया
बीते 15 नवंबर को मध्य प्रदेश सरकार ने आदिवासियों को अधिकार संपन्न बनाने वाला पेसा (पंचायत, अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार क़ानून, 1996) क़ानून लागू किया. ये आदिवासी नायक बिरसा मुंडा की जयंती के अवसर पर किया. इसे ही ‘जनजातीय गौरव दिवस’ के रूप में मनाया जाता है. बता दें कि साल 1996 में संसद से पारित यह क़ानून ग्राम सभाओं को अधिकार संपन्न बनाकर प्रशासन का अधिकार देता है. इससे स्थानीय जनजातियों को जल, जंगल और ज़मीन का अधिकार व संस्कृति का संरक्षण सुनिश्चित किया जा सके. साथ ही, यह क़ानून विवादों के समाधान भी परंपरागत तरीकों से ग्राम सभाओं के स्तर पर निपटाने की बात करता है और ग्राम पंचायतों को बाजारों के प्रबंधन की शक्ति भी प्रदान करता है. आदिवासी या जनजातीय समुदायों को साहूकारी प्रथा से मुक्ति जैसे प्रावधान भी इसमें हैं.