श्यामदत्त चुतुर्वेदी/नई दिल्ली: पूरे देश में भारत की आजादी के 75 साल पूरे ( 75th Independence Day ) होने अमृत महोत्सव की धूम है. स्वाधान भारत के 75 साल पूरे होने पर 15 अगस्त 2022 यानी 76वें स्वतंत्रता दिवस पर खास आयोजन होने हैं. इस दौर में कई छुपी ऐतिहासिक कहानियां सामने आ रही हैं. ऐसी एक कहानी है मध्य प्रदेश के गठन के समय उपजे विवाद कि जिस कारण ग्वालियर और इंदौर की रियासतों ने प्रदेश के गठन से किनारा कर लिया था. आज हम बता रहे हैं इसी कहानी के बारे में कि इन रियासतों ने ऐसा क्यो किया था.


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Independence day 2022 : इस साल होगा कौन सा स्वतंत्रता दिवस ? 75वां या 76वां, समझिये कैसे


पहले जान लें कैसे बना मध्य प्रांत या मध्यभारत ?
सबसे पहले जान लें कि आजादी पहले और उसके कुछ समय बाद तक मध्य प्रदेश को सेंट्रल प्रोविंस यानी मध्य प्रांत और बरार के नाम से जाना जाता था. इसके बाद 28 मई 1948 को मध्य भारत प्रांत का गठन भी किया गया, जिसमें ग्वालियर और मालवा का क्षेत्र शामिल थे. इस प्रांत की दो राजधानियां थीं. ग्वालियर को विटर कैपिटल और इंदौर को ग्रीष्म राजधानी का रूतबा हासिल था.


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मध्य प्रदेश के विरोध का पहला कारण- 4 राज्यों का विलय
आजादी के बाद पूरे देश के साथ ही मध्य प्रांत में भी 26 जनवरी, 1950 को संविधान लागू होने के बाद 1952 में पहले आम चुनाव हुए. इसके बाद राज्य पुनर्गठन आयोग बनाया गया. एक नवंबर 1956 को इसे आजादी के पहले गठित 4 राज्यों को मिलाकर बनाया गया था. इनमें महाकौशल, ग्वालियर-चंबल, विंध्य प्रदेश और भोपाल के आसपास के हिस्से शामिल थे. इन इलाकों की अपनी राजधानी, विधानसभाएं और प्रशासक हुआ करते थे, जो यहां शासन करते थे. इस कारण मध्य प्रदेश के गठन का विरोध होना लाजमी था.


मध्य प्रदेश के विरोध का दूसरा कारण- आर्थिक
प्रदेश के गठन के समय ग्वालियर व इंदौर की रियासतें इसके लिए राजी नहीं थी. क्योंकि दोनों ही राज्य उस समय देश के धनी राज्यों में से एक थे. मध्य प्रदेश बन जाने से इन रियासतों या राज्यों पर पिछड़े इलाकों का विकास करने का बोझ बढ़ जता. इसके अलावा मध्यभारत में विंध्य, भोपाल व महाकौशल को भी मिलाया जा रहा था, इस कारण राज्य के मुख्यमंत्री तखतमल जैन ने मध्यप्रदेश में मध्यभारत को मिलाने पर ही विरोध जताया था.


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मध्य प्रदेश के विरोध का तीसरा कारण- राजधानी
मध्य प्रदेश की स्थापना से पहले राजधानी को लेकर लंबी खीचतान भी चली. कई क्षेत्रीय विवाद भी सामने आए. भोपाल से ज्यादा ग्वालियर, इंदौर और जबलपुर का नाम इस दौरान काफी आगे रहा, लेकिन फिर कुछ क्षेत्रीय कारणों और नवाबी भवनों की संख्या ज्यादा होने के चलते भोपाल को सरकारी कामकाज के लिए उपयुक्त जगह माना गया और इसे राजधानी चुना गया.


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मध्य प्रदेश का गठन के समय आयोग के सामने भोपाल का पलड़ा भारी था. इंदौर और ग्वालियर मध्य भारत की दो राजधानियां पहले से थीं, जिस कारण इनका दावा मजबूत था. इस कारण से भी दबी जुबान में यहां के नेता मध्य प्रदेश के गठन का विरोध करने लगे थे. वहीं मुख्यमंत्री तखतमल जैन ने मध्यप्रदेश में मध्यभारत को मिलाने पर ही विरोध जताया था. हालांकि पंडित रविशंकर शुक्ल के चलते रायपुर भी प्रवल दावेदार रहा. इसके साथ ही जबलपुर भी अपना दावा पेश कर दिया था.


अंत में पंडित नेहरू ने दी मध्य प्रदेश को सहमति
राज्य पुनर्गठन आयोग को सभी सिफारिशों और विवादों पर विचार-विमर्श कर उनका निपटारा करने में करीब 34 महीने यानि ढाई साल लग गए. आखिरकार राज्य पुनर्गठन आयोग ने तमाम अनुशंसाओं के बाद अपनी रिपोर्ट तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के सामने रखी, तब उन्होंने इसे मध्यप्रदेश नाम दिया और एक नवंबर 1956 से मध्यभारत को मध्य प्रदेश के तौर पर पहचाना जाने लगा.