RSS को लेकर MP हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, बैन हटाते हुए कहा- गलती सुधारने में लगे 5 दशक
MP News: मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर बेंच ने RSS को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है. कोर्ट ने केंद्र सरकार के पूर्व कर्मचारियों के संघ ज्वाइन करने के प्रतिबंध के खिलाफ फैसला सुनाया है. साथ ही कहा कि सरकार को गलती सुधारने में 5 दशक लग गए.
MP High Court on RSS: मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर बेंच ने RSS के कार्यक्रमों में कर्मचारियों के बैन पर बड़ा फैसला सुनाया है. कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई के दौरान टिप्पणी करते हुए कहा कि RSS (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) कोई सांप्रदायिक संगठन नहीं है,जिसमें शामिल होने के लिए किसी को रोकें. सरकार को इस गलती को सुधारने में 5 दशक लग गए. साथ ही कोर्ट ने संशोधन को ऑफिशियल साइट पर अपलोड करने और देशभर में प्रचारित करने की बात भी कही है.
कोर्ट ने हटाया प्रतिबंध
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर बेंच ने केंद्रीय सरकार द्वारा सरकारी कर्मचारियों के RSS की गतिविधियों में शामिल होने के प्रतिबंध को हटा दिया है. जस्टिस सुश्रुत अरविंद धर्माधिकारी और जस्टिस गजेंद्र सिंह की पीठ ने इस मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि RSS की कोई सांप्रदायिक संगठन नहीं है. सरकार को अपनी गलती स्वीकार करने में 5 दशकर लग गए.
पिछले साल की गई थी याचिका दायर
सेवानिवृत्त केंद्रीय सरकारी कर्मचारी पुरुषोत्तम गुप्ता ने 19 सितंबर 2023 को हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की थी. इस याचिका में केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियमों के साथ-साथ केंद्र के कार्यालय ज्ञापनों को चुनौती दी गई थी, जिसमें सरकारी कर्मचारियों को संघ की गतिविधियों में भाग लेने से रोकने की बात थी.
कोर्ट ने क्या कहा
इस मामले में सुनवाई करते हुए कोर्ट ने टिप्पणी देते हुए कहा- 'अदालत इस बात पर अफसोस जताती है कि केंद्र सरकार को अपनी गलती का एहसास होने में करीब पांच दशक लग गए. यह स्वीकार करने में कि RSS जैसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध संगठन को गलत तरीके से देश के प्रतिबंधित संगठनों में रखा गया था.'
कोर्ट ने आगे कहा- 'केंद्र ने संबंधित सर्कुलर में जो संशोधन किया है, उसे ऑफिशियल वेबसाइट पर डालें. देशभर में जनसंपर्क विभाग के माध्यम से प्रचारित करें कि रिटायर होने के बाद कर्मचारी आरएसएस में शामिल हो सकते हैं. आरएसएस के द्वारा सरस्वती शिशु मंदिर सहित समाज उत्थान के कई प्रकल्प भी चलाए गए, जिससे समाज बेहतर हुआ है.'
इसके साथ ही कोर्ट ने ये भी कहा- 'आखिर 1960 और 1990 के दशकों में RSS की गतिविधियों को किस आधार पर सांप्रदायिक माना गया.कौन सी रिपोर्ट थी जिसके कारण सरकार फैसले पर पहुंची.' बता दें कि 1966 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने केंद्रीय कर्मचारियों के RSS सहित अन्य विचारधारा वाले संगठनों में शामिल होने पर रोक लगा दी थी. इसके बाद 1970 और 1980 में भी ये सर्कुलर निकाले गए थे.
इनपुट- इंदौर से शिव मोहन शर्मा की रिपोर्ट, ZEE मीडिया
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