MP नामा: जबलपुर में नहीं मनाई गई थी दिवाली, इसलिए नहीं बन पाई मध्य प्रदेश की राजधानी
Reason of Jabalpur not become the capital of MP: मध्य प्रदेश बनने के बाद जबलपुर के राजधानी बनने की पूरी संभावना थी.हालांकि,भोपाल को मध्य प्रदेश की राजधानी बनाया गया और जबलपुर मध्य प्रदेश की राजधानी नहीं बन सका.
Jabalpur History: 1956 में जब मध्य प्रदेश का गठन होने वाला था.तब राज्य की राजधानी के लिए भोपाल के अलावा ग्वालियर,रायपुर, इंदौर और जबलपुर जैसे शहर लाइन पर थे.मध्य भारत के बड़े शहर होने कारण इंदौर और ग्वालियर राजधानी के लिए दावेदारी पेश कर रहे थे. वहीं मध्य प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री पंडित रविशंकर शुक्ला,उस समय के कांग्रेस के कद्दावर नेता थे. इसलिए रायपुर भी राजधानी बनने की होड़ में था. साथ ही मध्य प्रदेश के लिए राज्य पुनर्गठन की रिपोर्ट में जबलपुर को राजधानी बनाने की सिफारिश की गई थी. आपको बता दें कि उस समय जबलपुर के मध्य प्रदेश की राजधानी बनने की पूरी संभावना थी. हालांकि, भोपाल को मध्य प्रदेश की राजधानी बनाया गया और जबलपुर मध्य प्रदेश की राजधानी नहीं बन सका.
ये कारण आए सामने
वरिष्ठ पत्रकार दीपक तिवारी अपनी किताब 'राजनीतिनामा मध्यप्रदेश' में लिखते हैं कि जबलपुर को राजधानी बनाने की सबसे ज्यादा वकालत और सिफारिश सेठ गोविंद दास ने की थी और कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में ऐसा लिखा था कि जबलपुर राजधानी बनने वाली है. इसलिए सेठ गोविंद दास का परिवार जबलपुर-नागपुर रोड पर सैकड़ों एकड़ जमीन खरीद लिया था.जिससे भविष्य में उनको फायदा हो और इसी के चलते नेहरू जी की नजर में जबलपुर का पक्ष कमजोर हो गया था. साथ ही साथ यह बात भी सामने आई कि जबलपुर अगर राजधानी बन जाता है तो अधिकारियों- कर्मचारियों के लिए वहां पर उस टाइप की इमारतें नहीं हैं और यह सब चीजें भोपाल में मौजूद हैं.
नेहरू जी ने शंकर दयाल शर्मा की बात मानी
साथ ही उस समय भोपाल के मुख्यमंत्री शंकर दयाल शर्मा ने नेहरू जी को समझा दिया था कि भोपाल को ही मध्य प्रदेश की राजधानी बनना चाहिए. इसके अलावा मौलाना आजाद भी भावनात्मक रूप से भोपाल को राजधानी बनाने के पक्ष में थे. तीसरा कारण ये भी सामने आया था कि भोपाल को राजधानी बना कर विंध्य प्रदेश के समाजवादी आंदोलन को कमजोर करना था और अगर जबलपुर राजधानी बन जाता तो विन्ध्य के साथ-साथ महाकौशल भी राजनीति का केंद्र बन जाता है. इन्हीं सब कारणों के चलते जबलपुर राजधानी नहीं बन पाया और जिसके बाद जबलपुर को संस्कार धानी नाम सांत्वना के रूप में विनोबा भावे ने दिया था.