भोपाल। मध्य प्रदेश में जिला पंचायत और जनपद अध्यक्ष पद के लिए अब जोड़-तोड़ शुरू हो गई है. 29 जुलाई को जिला पंचायत अध्यक्ष पद का निर्वाचन होना है. बीजेपी और कांग्रेस के पास कई जिलों में बहुमत नहीं है. ऐसे में यहां क्रॉस वोटिंग का डर बन गया है. जिसके चलते बीजेपी और कांग्रेस जिला और जनपद पंचायत सदस्यों को संभालने में जुट गई हैं. खास बात यह है प्रदेश के कई सदस्यों की दूसरे राज्यों में बाड़ेबंदी की गई है. कांग्रेस ने अपने समर्थित सदस्यों को कांग्रेस शासित राज्यों में भेजा है, तो बीजेपी ने भी अपने सदस्यों को बीजेपी शासित राज्यों में भेजा है. 


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100 से ज्यादा सदस्यों की बाड़ेबंदी 
बताया जा रहा है कि मध्य प्रदेश के 100 से ज्यादा जिला पंचायत सदस्य और जनपद सदस्य प्रदेश से बाहर हैं. अंदेशा जताया जा रहा है कि अध्यक्ष चुनाव के पहले बीजेपी कांग्रेस इन सदस्यों को दूसरे प्रदेशों में ले गई हैं. कांग्रेस को राजस्थान और छत्तीसगढ़ पर भरोसा है, तो भाजपा ने गुजरात और उत्तर प्रदेश की तरफ रुख किया है. माना जा रहा है कि इन सदस्यों की वापसी अब चुनाव के दिन ही होगी. 


52 जिलों में होगा निर्वाचन 
29 जुलाई को प्रदेश के सभी 52 जिला पंचायतों में अध्यक्ष का निर्वाचन होगा. इसके अलावा 313 जनपद अध्यक्षों व उपाध्यक्षों का चनाव 27 और 28 जुलाई को होगा. ऐसे में अपने-अपने अध्यक्ष बनाने के लिए दोनों पार्टियां एक्टिव हो गई हैं. जानकारी के मुताबिक मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया के जिले के सदस्य मथुरा-वृंदावन में धर्मिक यात्रा पर गए हैं. जबकि बीजेपी ने झाबुआ जिले के कुछ सदस्यों को गुजरात भेजा है. 


इसी तरह से कांग्रेस के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह के गृह जिले राजगढ़ जिला पंचायत के सदस्यों को छत्तीसगढ़ भेजने की बात सामने आई है. इसके अलावा भी कई सदस्य राज्यों से बाहर हैं. उज्जैन जिले में भी बीजेपी और कांग्रेस समर्थित बताए जा रहे जिला और जनपद सदस्य राज्य से बाहर हैं. 


क्रॉस वोटिंग का डर 
दरअसल, पंचायत चुनाव राजनीतिक सिंबल पर नहीं होते हैं. चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस अपने समर्थित प्रत्याशियों को उतारती है. ऐसे में जिले में अपना अध्यक्ष बनाने के लिए दोनों ही पार्टियों को ऐसे सदस्यों की जरुरत भी पड़ती है. जो दोनों राजनीतिक दलों से इतर होते हैं. इसके अलावा अपने-अपने समर्थित सदस्यों के बीच क्रॉस वोटिंग का डर भी रहता है. ऐसे में दोनों दल एक्टिव है. 


खास बात यह है कि मंत्रियों से लेकर विधायकों-सांसदों ने तक ने यह पूरी जिम्मेदारी संभाली है. जबकि जिला पंचायत अध्यक्ष की दावेदारी कर रहे सदस्यों ने भी पूरा जोर लगा रखा है. प्रदेश की राजनीति में ऐसा पहली बार देखा जा रहा है जब सदस्यों को दूसरे राज्य में भेजा जा रहा है.