भोपाल। आज 1857 की क्रांति के जननायक राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह का बलिदान दिवस है, जिस पर प्रदेश में बड़ा आयोजन हो रहा है, खास बात यह है कि बीजेपी और कांग्रेस की तरफ से राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह के बलिदान दिवस पर आयोजन को लेकर होड़ लगी हैं, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ आज इन क्रांतिकारियों की कर्मस्थली जबलपुर पहुंच रहे हैं. इस आयोजन में सीएम शिवराज सिंह चौहान भी शामिल होंगे. तो वहीं कांग्रेस भी राजधानी भोपाल में बलिदान दिवस पर कार्यक्रम आयोजित कर रही है, जिसमें खुद प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ शामिल होंगे, जहां श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया जाएगा. लेकिन इस आयोजन को लेकर दोनों पार्टियां इतनी अलर्ट क्यों है, आखिर इसके पीछे का मामला क्या है. 


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बीजेपी और कांग्रेस का महाकौशल पर फोकस 
दरअसल, आदिवासी वर्ग से आने वाले राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह महाकौशल अंचल में 1857 की क्रांति के सबसे बड़े जननायक थे, उन्होंने अंग्रेजों से लड़ते-लड़ते खुद को देश के लिए समर्पित कर दिया था. यही वजह है कि बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों का उनके बलिदान दिवस पर आयोजन को लेकर खास फोकस है, दरअसल, महाकौशल मध्य प्रदेश का दूसरा सबसे बड़ा अंचल माना जाता है, जहां विधानसभा की 38 सीटें आती हैं, इनमें ज्यादातर आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हैं, ऐसे में आदिवासी वोट बैंक पर दोनों ही पार्टियों की नजर है. 


बीजेपी का जबलपुर में बड़ा आयोजन 
बीजेपी राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह के बलिदान दिवस पर जबलपुर में बड़ा आयोजन कर रही है. जिसमें उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ मुख्य अतिथि हैं, बता दें कि पिछले साल इसी तरह के आयोजन में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने शिरकत की थी. जबकि इस बार भी बीजेपी बड़ा आयोजन कर रही है. 


कांग्रेस भोपाल में करेगी आयोजन 
वहीं कांग्रेस भोपाल में बड़ा आयोजन कर रही है. ​​​​​​प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ पीसीसी में राजा शंकर शाह, रघुनाथ शाह के शहीदी दिवस पर आयोजित श्रद्धांजलि सभा में उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे. जिसमें आदिवासी कांग्रेस के अध्यक्ष ओमकार सिंह मरकाम भी मौजूद रहेंगे. इसके अलावा इस दौरान कांग्रेस के सभी विधायक और मौजूद रहेंगे. 


कौन थे राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह 
बता दें कि 1857 में जबलपुर में तैनात अंग्रेजों की 52वीं रेजीमेंट का कमांडर क्लार्क बहुत ही क्रूर था. वह इलाके के छोटे राजाओं, जमीदारों को परेशान किया करता था और मनमाना कर वसूलता था. इस पर तत्कालीन गोंडवाना राज्य, जो कि मौजूदा जबलपुर और मंडला का इलाका था, वहां के राजा शंकर शाह और उनके बेटे कुंवर रघुनाथ शाह ने अंग्रेज कमांडर क्लार्क के सामने झुकने से इंकार कर दिया. दोनों ने आसपास के राजाओं को अंग्रेजों के खिलाफ इकट्ठा करना शुरू किया. बताया जाता है कि दोनों बाप बेटे अच्छे कवि थे और वह अपनी कविताओं के जरिए राज्य में लोगों को क्रांति के लिए प्रेरित करते थे. कमांडर क्लार्क को अपने गुप्तचरों से यह बात पता चल गई. जिस पर क्लार्क ने राज्य पर हमला बोल दिया. माना जाता है कि अंग्रेज कमांडर ने धोखे से पिता-पुत्र को बंदी बना लिया था. 14 सितंबर को दोनों को बंदी बनाया गया और 18 सितंबर को दोनों को तोप के मुंह से बांधकर उड़ा दिया गया था. उसके बाद से हर साल 18 सितंबर को इस दिन को बलिदान दिवस के रूप में मनाता रहा है. 


मध्य प्रदेश में हैं 2 करोड़ से ज्यादा आदिवासी 
मध्य प्रदेश में 2 करोड़ से ज्यादा आदिवासी आबादी है, 43 समूहों में बटा प्रदेश का आदिवासी वर्ग राज्य की 230 विधानसभा सीटों में से 87 विधानसभा सीटों पर सीधा असर डालता है. जिनमें से 47 सीटें आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हैं. 


समझिए आदिवासियों की सियासी ताकत 
मध्य प्रदेश के पिछले कुछ चुनावी इतिहास पर नजर डाले तो यह बात स्पष्ट समझ में आती है कि कैसे प्रदेश की सियासत में आदिवासी वर्ग कैसे हार-जीत का समीकरण तय करता है. मध्य प्रदेश में आदिवासी समुदाय सियासत में अहम स्थान रखता है. आदिवासी वर्ग के लिए 47 सीटें आरक्षित हैं, जबकि आदिवासी वर्ग प्रदेश की 90 विधानसभा सीटों पर सीधा प्रभाव रखते हैं और यहां हार-जीत में अहम भूमिका निभाते है. 2018 के विधानसभा चुनाव में 47 में 31 सीटें कांग्रेस ने जीती थी, तो वहीं भाजपा को सिर्फ 16 सीट मिली थी. जबकि 35 अनुसूचित जाति वर्ग की 17 सीटों पर कांग्रेस और 18 सीटों पर बीजेपी को जीत मिली थी. जिससे इन सीटों पर दोनों ही पार्टियों ने खास फोकस शुरू कर दिया है.