विमलेश मिश्रा/मंडला: कहा जाता है कि नर्मदा ही एक मात्र ऐसी नदी है जिसकी परिक्रमा की जाती है. यही कारण है कि बड़े, बुजुर्ग, युवा और बच्चे नर्मदा परिक्रमा (Narmada Parikrama) करते हैं. लेकिन जिले के ग्राम भलवारा में मां नर्मदा का एक अनोखा भक्त देखने को मिला है. जो नेत्रहीन है और अकेले ही परिक्रमा पर है. इस भक्त को जिसने भी देखा वह हैरान हो गया. सभी सोच रहे हैं कि क्या कभी कोई ऐसे भी नर्मदा परिक्रमा कर सकता है.


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गौरतलब है कि मंडला जिला मां नर्मदा से तीनों तरफ से घिरा हुआ है. लिहाजा यहां बड़ा नर्मदा परिक्रमा पथ है. इस पथ पर अनेक लोग परिक्रमा करते मिलते हैं. उन्हीं में से एक इंदौर मूसाखेड़ी के रहने वाले 37 साल के नरेश धनगर जो मां नर्मदा के अनोखे भक्त कहे जा सकते है. जन्म से ही नेत्रहीन है. बावजूद वे अकेले ही मां नर्मदा की परिक्रमा कर रहे हैं. नर्मदा की इस परिक्रमा में यदि कोई साथ है तो एक उनकी लाठी और दूसरा उनकी मां नर्मदा के प्रति उनकी आस्था. जो उन्हें कच्चे-पक्के और जंगल-पहाड़ी रास्तों पर चलने में मदद कर रही है.


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नर्मदा की शक्ति से मिला साहस
नरेश ने नर्मदा परिक्रमा की शुरूआत बुदनी तट से शुरू की है. इनकी यात्रा को करीब 23 दिन हो चुके है. जिसमें इन्होंने सैकड़ों किलोमीटर का सफर एक लाठी के सहारे तय कर बरेला-मनेरी मार्ग होते हुए मंडला जिले के ग्राम भलवारा पहुंचे है. लाठी के सहारे नर्मदा परिक्रमा कर रहे नीलेश ने बताया कि वह राजनीति विज्ञान से एमए हैं. कम्प्यूटर कोर्स भी किया है. उन्होंने बताया कि मन में नर्मदा की परिक्रमा करने की इच्छा थी, लेकिन नेत्रहीनता के कारण साहस नहीं जुटा पा रहे थे. लेकिन नर्मदा की शक्ति और उनकी खुद की इच्छा शक्ति ने साहस प्रदान किया है. नरेश ने अपना नर्मदा परिक्रमा का संकल्प पूरा करने से पहले इंदौर से देवास, उज्जैन, ओंकारेश्वर और खंडवा की यात्रा की है. जब उक्त यात्राएं सफलता से पूरी हो गईं तो उत्साह बढ़ा और शुरू की नर्मदा परिक्रमा जो जारी है.


चूंकि जिले में नर्मदा पथ है तो परिक्रमावासी भी यहां से गुजरते है. नर्मदा पथ पर जहां इन परिक्रमावासियों के सेवादार भक्त है. वहीं स्थानीय लोग एक से बढ़कर एक नर्मदा भक्त यहां से गुजरते देखते है. परंतु इस आंखों से दिव्यांग परिक्रमावासी को जो देखता है. बस देखता ही रह जाता है.


3600 किमी की यात्रा करना हैं
मां नर्मदा के प्रति अटूट विश्वास को लेकर एक लाठी के सहारे परिक्रमा कर रहे इस भक्त को करीब 3600 किमी की यात्रा करना हैं. यात्रा पूरी होने में छह से सात महीने का समय लग सकता है, लेकिन यह भक्त केवल एक लाठी के सहारे ऊंचे, नीचे रास्तों पर बढ़ते जा रहा है. जिसे देखकर लगता है, जैसे लाठी ही इसकी आंखों का काम कर रही है. बहरहाल स्थानीय लोगों के मुताबिक इस तरह के ये एकमात्र परिक्रमावासी दिखते हैं. जो नेत्रहीन होने के बाद भी अकेले ही परिक्रमा पर निकल पड़े हैं.