नितिन गौतम/नई दिल्लीः देश में पुरानी पेंशन व्यवस्था (Old Pension Scheme (OPS)) को फिर से बहाल करने की मांग उठ रही है. कांग्रेस शासित राज्यों छत्तीसगढ़, राजस्थान और झारखंड में इसे लागू भी कर दिया गया है. वहीं पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार भी पुरानी पेंशन व्यवस्था को लागू करने की योजना बना रही हैं. हाल ही में हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई है और वहां भी सरकार ने पुरानी पेंशन व्यवस्था को लागू करने की तैयारी शुरू कर दी है. मध्य प्रदेश में भी कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ऐलान कर चुके हैं कि उनकी पार्टी के सत्ता में आने पर पुरानी  पेंशन व्यवस्था (OPS) लागू की जाएगी. कई अन्य राज्यों में भी इसी तरह की मांग उठ रही है. हालांकि आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो पता चलता है कि भले ही यह कुछ फीसदी सरकारी कर्मचारियों के लिए फायदेमंद बात है लेकिन पुरानी पेंशन व्यवस्था सरकारी खजाने के लिए विनाशकारी साबित हो सकती है!


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पुरानी पेंशन व्यवस्था बनाम नई पेंशन व्यवस्था (OPS VS NPS)
पुरानी पेंशन व्यवस्था के खतरे जानने से पहले ये जानना जरूरी है कि पुरानी पेंशन व्यवस्था और नई पेंशन व्यवस्था (New Pension Scheme) क्या हैं और इनके क्या फायदे और नुकसान हैं.


पुरानी पेंशन व्यवस्था (Old Pension Scheme)
पुरानी पेंशन व्यवस्था में कर्मचारी के रिटायरमेंट के बाद उसकी अंतिम बेसिक सैलरी और डीए की कुल रकम या फिर रिटायरमेंट से पहले आखिरी 10 महीने की औसत सैलरी की 50 फीसदी रकम पेंशन के तौर पर मिलती थी. हालांकि इसके लिए कर्मचारी को कम से कम 10 साल की सर्विस करनी जरूरी थी. 


पुरानी पेंशन व्यवस्था में कर्मचारी को पेंशन में अपनी सैलरी से कोई योगदान नहीं देना होता था. सरकारी नौकरी होना ही पेंशन की गारंटी था. कर्मचारी स्वैच्छिक रिटायरमेंट लेता है तो भी उसे पूरी पेंशन का भुगतान किया जाता है. इतना ही नहीं महंगाई भत्ते में बढ़ोतरी होने पर पेंशन में भी इसकी बढ़ोतरी होती है और वेतन आयोग के सुधार भी पेंशन पर लागू होते हैं. जनरल प्रोविडेंट फंड की सुविधा मिलती है और इस पर मिलने वाले ब्याज पर टैक्स भी नहीं लगता. 


नई पेंशन स्कीम (New Pension Scheme)
नई पेंशन स्कीम के तहत कर्मचारी को हर महीने अपनी बेसिक सैलरी का 10 फीसदी पेंशन फंड में योगदान देना होता है. वहीं सरकार द्वारा 14 फीसदी का योगदान दिया जाता है. सरकार द्वारा इससे तैयार फंड को बाजार में विभिन्न माध्यमों में निवेश किया जाता है. रिटायरमेंट के बाद निवेश की गई रकम का कुछ हिस्सा पेंशन के रूप में कर्मचारी को मिलता रहता है. स्वैच्छिक रिटायरमेंट लेने पर 20 फीसदी राशि नकद और 80 फीसदी पेंशन के रूप में मिलती है. वेतन आयोग या महंगाई भत्ते में बढ़ोतरी का इस पर कोई असर नहीं होता. 


2003 में लागू हुई नई पेंशन योजना
पुरानी पेंशन योजना दिसंबर 2003 में तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने बंद कर दी थी. जिसके बाद 1 अप्रैल 2004 से नई पेंशन व्यवस्था लागू की गई थी. नई पेंशन व्यवस्था के तहत सरकार कर्मचारी की सैलरी से काटी गई रकम और फिर अपने योगदान को मिलाकर तैयार हुए फंड का 15 फीसदी हिस्सा खुले बाजार में निवेश करती है. वहीं 85 फीसदी हिस्सा सरकारी प्रतिभूतियों, एलआईसी, यूटीआई और एसबीआई आदि में निवेश किया जाता है. फिलहाल 1.54 करोड़ कर्मचारी नई पेंशन योजना से जुड़े हुए हैं और सरकार अब तक करीब 6 लाख करोड़ रुपए की राशि इस मद में निवेश कर चुकी है. जिससे हर महीने करीब 9 हजार करोड़ रुपए का अंशदान हर महीने मिलता है, जो कर्मचारियों को पेंशन के रूप में मिलता है. 


क्या हैं पुरानी पेंशन योजना लागू करने के खतरे? 
कई अर्थशास्त्री पुरानी पेंशन योजना को वित्तीय रूप से भविष्य के लिए विनाशकारी बता रहे हैं. योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया भी पुरानी पेंशन योजना को लागू करना जोखिमभरा बता चुके हैं. अर्थशास्त्रियों का तर्क है कि महज 2 फीसदी सरकारी कर्मचारियों पर कुल राजस्व का 12 फीसदी खर्च करना सरकारी खजाने के लिए बेहद खतरनाक है. अभी कई राज्य भारी कर्ज के दबाव में हैं. ऐसे में पुरानी पेंशन योजना लागू करना अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है. 


आंकड़ों के अनुसार, हिमाचल प्रदेश के कुल टैक्स कलेक्शन का 80 फीसदी हिस्सा पेंशन पर खर्च हो जाता है. वहीं बिहार में यह आंकड़ा 60 फीसदी, पंजाब में 35 फीसदी, राजस्थान में 31 फीसदी और छत्तीसगढ़ में 25 फीसदी है. इसमें अगर सैलरी व ब्याज को भी जोड़ लें तो कुल राजस्व का अधिकतर हिस्सा इसी में खर्च हो जाता है. ऐसे में इंफ्रास्ट्रक्चर, स्वास्थ, शिक्षा जैसे जरूरी क्षेत्रों के लिए बहुत कम पैसा बचता है. यह देश के विकास के लिए बेहद घातक स्थिति कही जा सकती है. 


क्या हो सकता है सही कदम
नई पेंशन व्यवस्था में भी खामियां हैं क्योंकि यह कर्मचारियों को रिटायरमेंट के बाद सामाजिक सुरक्षा देने में नाकाफी साबित हो रही है. यही वजह है कि पुरानी पेंशन योजना को फिर से बहाल करने की मांग उठ रही है. ऐसे में सरकार को एक ऐसी पेंशन व्यवस्था बनाने की जरूरत है जो आर्थिक रूप से व्यवहारिक भी हो और उससे कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा भी मिले. इसके लिए सरकार सामाजिक सुरक्षा के लिए चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं को पेंशन योजना के साथ मिलाने पर विचार कर सकती है. या फिर किसी और तरीके से विचार करके सरकार इस विवाद को खत्म करने का प्रयास कर सकती है.