Pradosh Vrat 2023: आज है गुरु प्रदोष व्रत, जानें व्रत कथा, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि
June Pradosh Vrat: आषाण के गुरु प्रदोष व्रत का विशेष महत्व होता है. इस बार गुरु प्रदोष व्रत गुरुवार 15 जून 2023 को पड़ रहा है. इस दिन माता पार्वती और शिव जी की पूजा की जाती है. आइए जानते हैं इस व्रत के बारे में सबकुछ.
Ashadha Guru Pradosh Vrat 2023: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, प्रत्येक माह की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat 2023) रखा जाता है. इस बार प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat 2023) 15 जून दिन गुरुवार को रखा जाएगा. मान्यता है कि प्रदोष व्रत करने से भगवान शिव की विशेष कृपा रहती है. ये दिन भगवान शंकर और माता पार्वती को समर्पित है.
आषाढ़ का यह प्रदोष व्रत गुरुवार (Ashadha Guru Pradosh Vrat 2023) के दिन पड़ रहा है, इसलिए इसे गुरु प्रदोष व्रत भी कहा जाएगा. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गुरु प्रदोष का व्रत करने से 100 गायों को दान करने के बराबर शुभ फल मिलता है. आइए जानते हैं इस व्रत से जुड़ी कथा और पूजा विधि और तिथि.
आषाढ़ गुरु प्रदोष व्रत तिथि
आषाढ़ गुरु प्रदोष व्रत 15 जून को रखा जाएगा. प्रदोष व्रत की त्रयोदशी तिथि 15 जून को सुबह 8ः32 से शुरू हो रही है. जिसका समापन अगले दिन 16 जून 2023 को सुबह 8ः39 पर होगा. शिव पूजा का शुभ मुहूर्त शाम को 7ः23 से 9ः24 तक होगा.
गुरु प्रदोष व्रत 2023 पूजा विधि (Guru Pradosh Vrat 2023 Puja Vidhi)
इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें. इसके बाद भगवान शिव का स्मरण करते हुए व्रत का संकल्प लें. अब भगवान शिव की पूजा के लिए मंदिर में जाकर शिवलिंग पर गाय के दूध से अभिषेक करें.
आप भगवान शिव की पूजा घर पर भी कर सकते हैं. शिवलिंग पर बेलपत्र, अक्षत, भांग, धतूरा, शमी वृक्ष के पत्ते, सफेद फूल, शहद भस्म, शक्कर आदि समर्पित करने के साथ ही माता पार्वती के श्रृंगार का सामान चढ़ाएं.इसके बाद ओम नमः शिवाय मंत्र का 108 बार जाप करें और गुरु प्रदोष व्रत की कथा का पाठ पढ़ें.
गुरु प्रदोष व्रत कथा
व्रत की कथा के अनुसार एक बार देवराज इंद्र और वृत्रासुर की सेना के बीच जमकर युद्ध हुआ था. जिसमें वृत्रासुर सेना मारे गए. सेना के नष्ट होने को बाद वृत्रासुर गुस्सा होकर भयंकर युद्ध करने लगा. जिसके बाद गुरुदेव बृहस्पति के पास गए और उनसे उपाय पूछा. इसके बाद गुरुदेव ने वृत्रासुर की कथा बताते हुए कहा कि पूर्व जन्म में यह वर चित्ररथ राजा था इसने शिव भगवान को तपस्सा से काफी प्रसन्न किया था.
शिव भगवान को खुश करने के बाद वो राक्षस हिमालय गया जहां उसके माता पार्वती को देख उपहास किया कि हे प्रभो आप भी मोह माया में फंस कर स्त्री के साथ आलिंगनबद्ध होकर बैठे हैं. इस पर माता पार्वती ने क्रोधित होकर दैत्य होने का श्राप दिया. जिसके बाद में यही राजा वृत्रासुर बना.