Shahdol News। शहडोल: मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल जिला शहडोल के जिला अस्पताल से एक अजीब मामला सामने आया है. कुशाभाऊ ठाकरे जिला अस्पताल के एक सिविल सर्जन ने अजीबोगरीब फरमान जारी किया. जब इसका विरोध हुआ तो फिर फरमान वापस ले लिया. सिविल सर्जन ने इलाज से पहले ही मरीज-परिजनों से शपथ पत्र देने के फरमान जारी किया था. इस फरमान की चर्चा शहडोल से लेकर भोपाल तक थी. जानें क्या है पूरा मामला


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सिविल सर्जन का अजीबोगरीब बयान


कुशाभाऊ ठाकरे जिला अस्पताल के सिविल सर्जन ने एक फरमान जारी किया था. इसमें उन्होंने लिखा था कि जिला अस्पताल में इलाज कराने आए मरीज या उसके परिजनों को इलाज से पहले इस बात का शपथपत्र देना होगा कि इलाज के  नाम पर किसी को कोई पैसा नहीं दिया है. सिविल सर्जन के इस फरमान से हड़कंप मच गया था. इस बात का विरोध होने पर उन्होंने अपने इस फरमान को वापस ले लिया.


जानें पूरा मामला


दरअसल, हाल ही में कुशा भाऊ ठाकरे जिला अस्पताल में इलाज के नाम पर अन्य मरीजों के आलावा जैतपुर क्षेत्र से BJP विधायक जयसिंह मरावी के ड्राइवर से पैसों की मांग की गई थी. इस पर विधायक द्वारा आपत्ति करने पर पैसा वापस किया गया था. पैसों की मांग का मामला सामने आने के बाद डॉक्टर अपूर्व पांडेय को सस्पेंड भी कर दिया गया था. इसके बाद  सिविल सर्जन डॉ. जीएस परिहन ने ये फरमान जारी किया था. 


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सिविल सर्जन ने अपने इस फरमान में उल्लेखित किया था कि जिला अस्पताल में इलाज कराने आए मरीज या उसके परिजनों ने इलाज के पहले इस बात का शपथ पत्र देना होगा कि इलाज के  नाम पर किसी को कोई पैसा नहीं दिया. ये फरमान जारी होते ही हड़कंप मच गया था. इसको लेकर जनप्रतिनिधियों ने आपत्ति जताई और चर्चा भोपाल तक हुई. भारी विरोध होने के बाद फरमान को वापस ले लिया गया. 


सिविल सर्जन ने दी सफाई


इस पूरे मामले में सफाई देते हुए सिविल सर्जन डॉ. जीएस परिहार ने कहा कि अस्पताल में डॉक्टरों द्वारा मरीजों से पैसा मांगने की इस काम को रोकने के लिए उन्होंने एक प्रयोग के रूप में पत्र जारी किया था. जिसमें लोगों को कोई शपथपत्र नहीं देना था, बल्कि उनसे स्वस्थ्य अमला इलाज के नाम पर पैसा न ले इसके लिए एक सहमति पत्र देना का उद्देश्य था, लेकिन अब उसे वापस ले लिया गया है. बता दें कि संभागीय मुख्यालय शहडोल के कुशा भाऊ ठाकरे जिला अस्पताल में  उमरिया, शहडोल, अनूपपुर जिले के अलावा छत्तीसगढ़ बॉर्डर से भी लोग इलाज कराने के लिए आते हैं. लेकिन जिला अस्पताल के डॉक्टरों द्वारा दूर-दराज से इलाज कराने आए मरीजों से पैसों की मांग की जाती है.