Sharad Yadav: MP का वो बेटा जो 3 राज्यों से बना सांसद, उसके पक्ष में लगे नारे ने हिलाकर रख दी थी कांग्रेस की नींव
जनता दल यूनाइटेड(JDU) के पूर्व अध्यक्ष और कद्दावर नेता शरद यादव का 75 साल की उम्र में निधन हो गया है. बेटी सुभाषिनी शरद यादव ने ट्वीट कर ये जानकारी दी कि पापा नहीं रहे....
नई दिल्ली: जनता दल यूनाइटेड(JDU) के पूर्व अध्यक्ष और कद्दावर नेता शरद यादव का 75 (sharad yadav death) साल की उम्र में निधन हो गया है. बेटी सुभाषिनी शरद यादव (subhashini sharad yadav) ने ट्वीट कर ये जानकारी दी कि पापा नहीं रहे.... मध्यप्रदेश में जन्म हुआ और बिहार की राजनीति में अपनी अलग पहचान रखने वाले शरद यादव का इस तरह से निधन हर किसी को दुख पहुंचा रहा है. उनके निधन पर पीएम नरेंद्र मोदी समेत कई दिग्गजों ने शोक जताया है. बिहार और केंद्र की (Bihar politics) राजनीति में शरद यादव की अपनी अलग शख्सियत थी. शरद यादव छात्र राजनीति से सत्ता में आए थे. उन्होंने अपना पहला चुनाव मध्यप्रदेश के जबलपुर से जीता था. तब सिर्फ एक नारे ने कांग्रेस की नींव हिलाकर रख दी थी. जानिए कैसे..
बता दें कि मध्यप्रदेश के जबलपुर से शरद यादव दो बार सांसद चुने गए थे और एक बार उत्तर प्रदेश के बदायूं से लोकसभा के लिए गए थे. शरद यादव संभवत: पहले ऐसे राजनेता थे जो तीन राज्यों से लोकसभा के लिए चुने गए हो. मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, और बिहार.
पीएम मोदी ने जताया शोक
जब जबलपुर में गूंजा नारा
दरअसल 5वीं लोकसभा में तात्कालीन सांसद सेठ गोविंद दास का निधन हो गया. जिससे वहां की सीट खाली हो गई. सेठ गोविंददास 1952 से इस सीट पर चुनाव जीतते आ रहे थे. उनके निधन पर 1974 में जबलपुर में उपचुनाव हुआ. विपक्ष ने संयुक्त तौर पर शरद यादव को अपना प्रत्याशी बनाया. अब आप ये तो जानते ही हैं कि चुनाव में नारों की काफी अहमियत है. बुलंद नारों की मदद से ही जीत निकलती है. तब जबलपुर में शरद यादव के पक्ष में एक नारा निकला. ''लल्लू को न जगदर को, मुहर लगेगी हलधर को..'' इस एक नारे ने कांग्रेस की नींव जबलपुर में कमजोर कर दी. उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी जगदीश नारायण अवस्थी को शिकस्त दे दी. बता दें कि शरद यादव का चुनाव चिन्ह हलधर किसान था. इस नारे के अलावा एक और नारा जबलपुर में चला था. वह था- गली गली और कूचे कूचे पैदल चलकर देखा है, अपना भैया सबका भैया बड़ा अनोखा है.
सीएम शिवराज ने दी श्रद्धांजलि
दो बार जीते लेकिन कार्यकाल रहा अधूरा
उपचुनाव 1874 में मिली शरद यादव की जीत का कार्यकाल 3 साल का रहा फिर 6वीं लोकसभा के चुनाव 1977 में हुए. शरद यादव फिर जीतकर आए लेकिन इस बार वे करीब 3 साल तक का ही कार्यकाल कर पाए. दरअसल आपातकाल के समय तात्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने जब मनमाने तरीके से लोकसभा का कार्यकाल 6 साल का किया तो इस कदम का विरोध शरद यादव ने किया और जेल में रहते हुए उन्होंने लोकसभा पद से इस्तीफा दे दिया.
लोहिया के विचारों से प्रेरित थे शरद
शरद यादव डॉ. राम मनोहर लोहिया के विचारों से काफी प्रेरित थे. उन्होंने कई आंदोलनों में हिस्सा भी लिया था. साल 1969-70, 1972, और 1995 में उन्होंने गिरफ्तारी भी दी थी. मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करने वाले नेताओं के साथ उनकी एक अहम भूमिका थी.