श्योपुर। नामीबिया से भारत के श्योपुर लाए गए 8 चीतों की सुरक्षा पूरी तरह से की जा रही है. डॉक्टरों और चीता मित्रों की टीम हर पल चीतों पर नजर बनाए हुए हैं. वहीं अब चीतों की सुरक्षा के लिए कूनो नेशनल पार्क में गजराज की भी एंट्री होने जा रही है, यानि अब गजराज यानि हाथी भी चीतों की सुरक्षा करेंगे. चीतों की सुरक्षा के लिए सतपुड़ा टाइगर रिजर्व से दो हाथी भी श्योपुर के कूनो नेशनल पार्क पहुंच गए हैं. बता दें कि फिलहाल चीतों को किसी प्रकार की परेशानी नहीं हो रही है. 


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चीतों की सुरक्षा में तैनात होंगे हाथी 
बता दें कि नामीबिया से भारत आए आठ चीतों को श्योपुर का कूनो नेशनल पार्क रास भी आ रहा है. चीते आराम से कूनो के बाड़े में रह रहे हैं. वहीं डॉक्टर भी पल-पल चीतों की सेहत पर नजर रख रहे हैं. वहीं अब चीतों की सुरक्षा के लिए सतपुड़ा टाइगर रिजर्व से दो हाथी जिनमें नर और मादा हाथी लाए गए हैं. इन दिनों हाथियों के नाम सिद्धनाथ और लक्ष्मी है. अब ये दोनों हाथी भी कूनो में 8 चीतों की सुरक्षा करेंगे. ये हाथी चीतों के पास बनी जगह पर तैनात रहेंगे. 


इसके अलावा फारेस्ट गार्ड और हथियार धारी पूर्व सैनिक भी चीतों की सुरक्षा में तैनात हैं. फिलहाल सभी 8 चीते अब तक खुश नजर आ रहे हैं. चीते अपने बाड़े में एक्टिविटी कर रहे हैं और रविवार से अब तक उन्हें खाने के लिए भैंस का मांस दिया जा रहा है, जिसे चीते आराम से खा रहे हैं. सभी 8 चीतों के बीते 4 दिन कूनो में बेहतर बीते हैं. 


1 महीने पार्क में रहेंगे चीते 
बता दें कि कूनो नेशनल पार्क में आए चीतों को अभी एक महीना इन्हीं बाड़ों में रहना होगा. इन 8 चीतों में ओबान, फ्रेडी, क्रेडी, सवाना, आशा, सिबिली, सैसा और साशा शामिल हैं. इन चीतों में से एक मादा को पीएम मोदी ने आशा नाम दिया है. भारत में चीतों के प्रोजेक्ट से जुड़े अधिकारियों को आशा से ज्यादा उम्मीदें हैं क्योंकि आशा 3 साल 4 माह की है. 


70 सालों बाद वापस आए हैं चीते 
1950 के दशक में चीते भारत से विलुप्त हुए थे. वाइल्ड लाइफ विशेषज्ञ मानते हैं कि चीतों के विलुप्त होने से भारत के ग्रासलैंड में इकोलॉजी खराब हुई और इस इकोलॉजी को ठीक करने के लिए चीतों को वापस भारत लाया गया है. चीतों को कूनो में लाने की वजह यहां का मौसम नामीबिया जैसा है और कूनो में चीतों के खाने की भी कमी नहीं है.


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