MP News: देश में समरसता की मिसाल बना उज्जैन का ये गांव,गुमनाम क्रांतिवीरों को मिल रही है पहचान
अंग्रेजों के दौर में अंग्रेजों भारत छोड़ो के नारे के साथ आजादी की लड़ाई लड़ने वाले क्रांतिकारी बिरसा मुंडा की प्रतिमा का उद्घाटन उज्जैन जिले के एक गैर आदिवासी गांव में किया गया है.
Ujjain News: उज्जैन जिले के गजनीखेड़ी (Gajnikhedi of Ujjain district) में शहीद समरसता मिशन ने समरसता की मिसाल पेश की है. सामाजिक समरसता व राष्ट्र भक्ति से ओतप्रोत इस कार्यक्रम में शहीद समरसता मिशन द्वारा जिले में शहीद धर्मेंद्र बारिया के स्मारक के निर्माण के लिए चलाए जा रहे "वन चेक वन साइन फ़ॉर शहीद" ("One Check One Sign for Martyr") अभियान में ग्रामीणों ने जनसहयोग से 1 लाख 51 हजार की राशि चेक के माध्यम से शहीद धर्मेंद्र बारिया के पूज्य माता-पिता कैलाश बारिया एवं कांताबाई बारिया के चरणों में अर्पित की.
जनजाति क्रांतिवीरों ने भारत को भारत बनाए रखा
कार्यक्रम में मोहन नारायण ने कहा कि ब्रिटिश काल में सर्वप्रथम अंग्रेजों भारत छोड़ो के नारे के साथ उल गुलान की घोषणा करने वाले क्रांतिकारी बिरसा मुंडा (Revolutionary Birsa Munda)को उनके त्याग और बलिदान ने भगवान बना दिया. बिरसा कोई व्यक्ति नहीं एक विचार थे. गजनीखेड़ी ने समरसता का जो मंत्र उनकी प्रतिमा को राष्ट्र शक्ति स्थल के रूप में स्थापित करके देश को दिया है.इसके लिए इस गांव व ग्रामीणों का नाम समरस भारत के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों से लिखा जाएगा. भगवान बिरसा, वेगडाजी भील, छत्रपति शिवाजी के माउलो, राणा पूंजा भील आदि ने यदि अपना सर्वस्व इस राष्ट्र को समर्पित नहीं किया होता तो शायद आज भारत, भारत न होता! और शहीद समरसता मिशन ने संकल्प है कि -
जिनके बलिदानों पर खड़ा है हिंदुस्थान,
कदम-कदम पर खड़े करेंगे उनके निशां।"
शहीद समरसता मिशन के संस्थापक व राष्ट्रीय संयोजक मोहन नारायण ने आगे ये भी कहा कि तथाकथित इतिहासकारों ने राष्ट्र के जनजातीय नायकों के साथ अन्याय किया है. विदेशी आक्रांताओं व ब्रिटिश आततायियों के चाटुकार बनकर उन्होंने जनजाति क्रांतिवीरों के त्याग व बलिदान को गुमनामी की खाई में डाल दिया.