Friendship Day 2022: अटल-आडवाणी की दोस्ती की दी जाती हैं मिसालें, फर्श से अर्श तक का साथ किया सफर
Friendship Day 2022: स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी राजनीति की सबसे चमकती जोड़ी रही हैं. इनकी दोस्ती 65 सालों तक अनब्रेकेबल रही. इस फ्रेंडशिप डे (7 अगस्त) पर हम उन्हीं की दोस्ती को याद कर रहे हैं.
श्याम सुंदर गोयल/नई दिल्ली: राजनीति में वैसे तो कोई किसी का न तो दोस्त होता है और न ही दुश्मन, ये सब वक्त बदलने के साथ रिश्ते भी बदल जाते हैं लेकिन कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जिनका टूटना बहुत मुश्किल होता है. ऐसा ही कुछ दोस्ती का रिश्ता था भारत के पूर्व प्रधानमंंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी और बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी का जिन्होंने साथ मिलकर फर्श से अर्श तक का सफर पूरा किया.
50 के दशक में हुई थी दोनों की मुलाकात
अटल बिहारी की आडवाणी से पहली मुलाकात 50 के दशक में हुई. उस समय वाजपेयी जनसंघ के अध्यक्ष के साथ राजस्थान की यात्रा पर थे जहां उनकी मुलाकात आडवाणी से हुई.
सांसद बनकर दिल्ली पहुंचे तो दोस्ती हुई गहरी
उसके बाद जब अटल बिहारी पहली बार लोकसभा का चुनाव जीतकर संसद में पहुंचे वहां दोनों की फिर मुलाकात हुई. दिल्ली में दोनों एक दूसरे के नजदीक आए और फिर अच्छे दोस्त बने. पार्टी के लिए दोनों मिलकर साथ काम करते थे और खाली वक्त में घूमने भी साथ जाते थे. उस समय दोस्ती गहरी होनी शुरू हो गई थी.
राजनीति में भी दिया आडवाणी ने अटल का साथ
दिल्ली में वाजपेयी सांसद बनकर रहने तो लगे लेकिन वह हमेशा जनसंघ के महत्वपूर्ण नेता बलराज मधोक के निशाने पर रहते थे. उन्हें लगता था कि वाजपेयी ग्वालियर से आते हैं और ग्वालियर कांग्रेस का गढ़ है तो कहीं वाजपेयी कांग्रेस के जासूस तो नहीं हैं. मधोक को वाजपेयी का जीने का तरीका भी खटकता था. वहीं, वाजपेयी को लगता था कि भारत जैसे देश में संतुलित उदार दृष्टिकोण की ज़रूरत है ना कि कट्टर विचारों की. इन सब बातों के प्रभाव से बचाने में आडवाणी ने उनकी काफी मदद की और उस नरेटिव को चेंज करने में जो हो सकता था, वह किया.
आपातकाल में नहीं टूटा था साथ
आपातकाल के दिनों में दोनों एक साथ जेल में रहे. दोनों ने जनसंघ का विलय जनता पार्टी में करने का फैसला किया तो उनकी इस रणनीति ने कांग्रेस की कमर तोड़ दी थी. 1977 में जब देश में जनता पार्टी की सरकार बनी तो उन्हें विदेश मंत्री बनाया गया और आडवाणी को सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनाया गया.
कुछ इस तरह रहा राजनीति में सफर
इसके बाद दोनों ने जनता पार्टी से अलग होकर 1980 में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) बनाई. वाजपेयी बीजेपी के पहले अध्यक्ष बने. 1984 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को सिर्फ दो सीटें मिली थीं. 1986 में पार्टी ने अपने सबसे लोकप्रिय नेता अटल बिहारी वाजपेयी को अध्यक्ष पद से हटा दिया. उसके बाद आडवाणी का युग शुरू हुआ. इसमें अटल बिहारी ने पर्दे के पीछे रहकर अपने दोस्त का साथ दिया.
आडवाणी की पत्नी भी कराती थी दोनों में समझौता
कुछ किताबों में इस बात का जिक्र है कि वाजपेयी और आडवाणी की दोस्ती के बीच आडवाणी की पत्नी कमला आडवाणी ने अहम भूमिका निभाई. जब कभी दोनों के बीच मुनमुटाव होता तो कमला आडवाणी वाजपेयी को डिनर पर घर बुला लिया करती थीं और इस बहाने से वाजपेयी और आडवाणी के गिले शिकवे दूर हो जाया करते थे.
65 सालों तक तक रही मित्रता
पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के निधन पर लाल कृष्ण आडवाणी ने कहा था कि उनके पास अपना दुख बयां करने के लिए शब्द नहीं है. हम सभी भारत के सबसे बड़े स्टेट्समेन के जाने से दुखी हैं. आडवाणी ने कहा था कि मेरे लिए अटलजी एक सीनियर साथी से कहीं ज्यादा थे. असल में वह 65 सालों तक मेरे सबसे करीबी मित्र रहे.
भारत रत्न देने की सिफारिश भी की
आडवाणी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को एक पत्र लिखकर अटल बिहारी वाजपेयी को भारत रत्न देने की भी मांग की थी. 2014 में एनडीए की सरकार बनने के बाद पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी को भारत रत्न का अवॉर्ड दिया गया था. भारतीय राजनीति में अटल-आडवाणी की ये दोस्ती हमेशा याद की जाएगी.इसी दोस्ती के बलबूते और एक दूसरे का साथ निभाते हुए बीजेपी सत्ता में आई और अटल बिहार वाजपेयी तीन बार भारत के प्रधानमंत्री बने और आडवाणी दूसरे नंबर पर रहे और उप प्रधानमंत्री बने.