Tilak Sindoor Mandir: मध्य प्रदेश के मंदिर में सिंदूर से होता है भगवान शिव का श्रृंगार, जानें कैसे शुरू हुई परंपरा
Tilak Sindoor Mandir: मध्यप्रदेश (Madhya pradesh) के नर्मदापुरम से 40 किलो मीटर दूर एक ऐसा मंदिर हैं जहां पर शिवलिंग में सिंदूर लगा कर पूजा की जाती है. इसकी वजह से इसे तिलक सिंदूर (Tilak Sindoor) के नाम से जानते हैं. सिंदूर लगाने की परंपरा यहां पर आदिवासियों ने शुरू की थी.
Tilak Sindoor Mandir Hoshangabad: नर्मदापुरम। महाशिवरात्रि (Mahashivratri ) पर्व देश भर में हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है. देशभर में मंदिरों में शिवभक्तों का तांता लगा हुआ है. एमपी (Madhya pradesh)के नर्मदापुरम (होशंगाबाद) (Hoshangabad)में एक ऐसा मंदिर है जहां पर लोग भगवान शिव को जल,दूध चढ़ाने के बजाय सिंदूर चढ़ाते हैं. इस वजह से इस जगह का नाम भी तिलक सिंदूर पड़ गया है. कहा जाता है कि ये देश का एक मात्र ऐसा मंदिर है जहां पर भगवान शिव को सिंदूर चढ़ाया जाता है.
पांच दिवसीय पर्व
आज से यहां महाशिवरात्रि के पर्व पर पांच दिवसीय मेले का आयोजन किया जा रहा है. जिसमें डेढ़ लाख श्रद्धालु देश भर से पहुँचने की संभावना बताई जा रही है. यहां पर आने वाले भक्त अपने साथ या फिर मंदिर के पास लगी हुई दुकानों से सिंदूर लेते हैं और वही भगवान शिव को चढ़ाते हैं. इसके अलावा बता दें कि इस शिवलिंग को आदिवासी समुदाय बड़ा देव मानकर पूजा करता है. यह मंदिर नर्मदापुरम् (होशंगाबाद ) से 40 किलो मीटर की दूरी पर है.
ये भी पढ़ें: महाशिवरात्रि में नहीं पहुंच पाए उज्जैन, यहां करें बाबा महाकाल के दिव्य दर्शन
भारी संख्या में सुरक्षा कर्मियों की तैनाती
इस मंदिर में महाशिवरात्रि के अवसर पर काफी ज्यादा संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. जिसको लेकर प्रशासन के द्वारा सुरक्षा व्यवस्था का पुख्ता इंतजाम किया गया है. कहा जा रहा है कि इस बार इस बार आने वाले भक्तों को कोई दिक्कत न हो इसके लिए 100 पुलिस कर्मियों को सुरक्षा इंतजाम में लगाया गया है.
ये है मान्यता
इस मंदिर को लेकर कहा जाता है कि जब भस्मासुर शिवजी पर अपना हाथ रखने आया था तो भगवान शिव भागते हुए इसी जगह पर आकर छिपे थे और यहां से सुरंग के रास्ते होते हुए पंचमढ़ी पहुंचे थे. बताया जाता है कि वो सुरंग आज भी यहां मौजूद है और लोग यहां पर आकर पूजा करते हैं. साथ ही साथ भगवान शिव को तिलक सिंदूर लगाते हैं. जिसकी वजह से इस मंदिर को तिलक का मंदिर भी कहते हैं. सिंदूर का तिलक लगाने की परंपरा यहां पर आदिवासियों ने शुरू की थी.