आरबी सिंह परमार, ओरछा: देश में रामजन्म भूमि को लेकर चल रहे विवाद पर सियासी उठा-पटक भले ही जारी हो पर मध्य प्रदेश में रामलला की सरकार का रुतबा आज भी बरकरार है. उनकी इस भूमि पर जाने वाले जब भी राजा बनने का प्रयास करते हैं तब-तब उनका राज सिंहासन छिन जाता है, यहां भगवान राजा के रूप में विराजमान हैं.


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अयोध्या में भले ही रामलला का जन्म हुआ हो लेकिन उनकी असली सरकार तो यहां चलती है, यहां हर आमजन प्रजा होता है चाहे वह प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति क्‍यों न हो. यही कारण है कि यहां किसी वीवीआईपी को गार्ड आफ ऑनर नहीं दिया जाता. जी हां, हम बात कर रहे हैं निवाड़ी जिले के ओरछा के रामलला सरकार की, जहां मान्‍यता है कि उनकी मर्जी के बगैर आज भी पत्ता नही खड़कता.


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यह विश्व का एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां मर्यादा पुरुषोत्‍तम राम की पूजा भगवान के रूप में नहीं बल्कि मानव स्वरूप में राजा के रूप में की जाती है. यहां मंदिर में नहीं महल में विराजमान हैं राजाराम, जहां श्रीराम को एक राजा की तरह चारों पहर सरकारी पुलिस जवानों द्वारा दी जाती है सशस्त्र सलामी. यह परंपरा आज की नहीं बल्कि करीब साढ़े चार सौ वर्षों से लगातार चली आ रही है.


अगर मंदिर से जुड़ी अन्य परंपराओं एवं नियमों की बात करें तो आज भी मंदिर के अंदर वीडियोग्राफी एवं फोटो खींचने पर सख्त मनाही है. इसके अलावा अगर इससे जुड़ी कुछ खासियतों की बात करें तो यहां पर भगवान श्री रामलला धनुषधारी के रूप में नहीं बल्कि ढाल-तलवार लिए विराजमान हैं.


यहां मंदिर का समय भी आज से नहीं बल्कि पिछले करीब साढ़े 400 वर्षों से निर्धारित है जिसमें ऋतु परिवर्तन के अनुरूप साल में दो बार बदलाव होता है. समयानुसार रामराजा के पट बंद होने के उपरांत किसी भी वीआईपी या वीवीआईपी तक को दर्शन होना नामुमकिन है. इसके लिये दर्शनार्थी को समयानुसार पट खुलने का इंतजार करना पडता है.


रामराजा मंदिर का इतिहास
देश की दूसरी अयोध्या कहे जाने वाली पर्यटक एवं धार्मिक नगरी ओरछा का इतिहास अत्यंत्र प्राचीन और गौरवशाली है. ओरछा का रामराजा मंदिर अत्यंत प्राचीन है और यहां स्थापित मूर्ति के बारे में प्रचलित मान्यता के अनुसार 1631 में ओरछा की महारानी गणेश कुंवर पुष्य नक्षत्र में इस मूर्ति को अयोध्‍या से नंगे पैर चलकर गोद में लेकर ओरछा लाई थीं.