Chaitra Navratri: कैसा है उज्जैन के हरसिद्धि मंदिर में नवरात्र का पहला दिन, 51 शक्तिपीठों में से एक है यह धाम

Chaitra Navratri: 9 अप्रैल से यानी गुड़ी पड़वा से विक्रम संवत 2081वें हिन्दू नव वर्ष की शुरुआत हो गई है. चैत्र माह के पहले दिन आज से नवरात्रि की शुरुआत भी हुई है. उज्जैन स्थित देवी मां के 51 शक्तिपीठों में से एक मां हरसिद्धि के धाम में सुबह से भक्तों की भीड़ उमड़ने लगी. इस विशेष अवसर पर देखिए नवरात्र के पहले दिन मां हरसिद्धि धाम में क्या हुआ?

Tue, 09 Apr 2024-9:36 am,
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आज मंगलवार पहला दिन नवरात्र का घट स्थापना का दिन है. चैत्र माह में नवरात्र के पहले दिन 51 शक्तिपीठों में से एक मां हरसिद्धि के धाम में अल सुबह से ही बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं का तांता मंदिर में माता के दर्शन लाभ लेने के लिए लगने लगा. भक्त दूर राज्य व देशों से अवंतिका नगरी उज्जैन पहुंच रहे हैं. 

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मां हरसिद्धि के धाम में ही नहीं चौबीस खंबा स्थित देवी महामाया, देवी महालया, भूखी माता मंदिर, गढ़कालिका माता मंदिर व शहर के तमाम प्राचीन देवी स्थलों पर भक्तों का तांता लगा हुआ है.

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चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 9 अप्रैल से नवरात्र का आरंभ हो चुका है. प्रतिपदा से कहा जाता है सृष्टि का आरंभ हुआ है. इस नवरात्र को वासंती नवरात्र से भी जाना जाता है. 09 दिन पुष्पों से माता को प्रसन्न किया जा सकता है. 

 

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श्रीमद् देवी भागवत महापुराण के अनुसार आदि शक्ति को प्रसन्न करने के लिए सेवंती, मोगरा, रक्त कनेर, सूर्यमुखी, कमल आदि के पुष्प चढ़ाए जा सकते हैं. इसके अलावा पारिवारिक कुल परंपरा के अनुसार माता की उपासना की जा सकती है. 09 दिन में अलग-अलग प्रकार से माता की पूजन की जा सकती है.

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पं. अमर डिब्बेवाला के अनुसार शुभ लाभ अमृत के चौघडिये में पूर्व दिशा के ईशान कोण में पृथ्वी पर जल या गंगाजल से लेपन करें. इसके पश्चात स्वास्तिक बनाएं, अक्षत के दाने अर्पित करें और ताम्र कलश में जल भरकर वैदिक मंत्र के माध्यम से कलश का पूजन करें. 

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तत्पश्चात हल्दी, कुमकुम, अबीर, गुलाल, अक्षत के दाने, पुंगी फल, लौंग, इलायची, स्वर्ण, चांदी या पीतल का सिक्का इसमें डालें. चार दिशाओं के चार पान के पत्ते या पंच पल्लव से उसे परिपूरित करें. उसके ऊपर पानी वाला नारियल रखें. 

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कलश के कंठ में नाड़े से वेस्टन करें. माता का मंत्र पढ़ कर कलश को स्वास्तिक पर स्थापित करें. दिशा और कोण कुल परंपरा, वंश परंपरा या गोत्र परंपरा के आधार पर तय की जा सकती है. पंडित अमर डब्बेवाला ने घट स्थापना के मुहूर्त के बारे में भी बताया.

 

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