Chhattisgarh News: घने जंगल वाली करेलघाटी में जुटते हैं देवी-देवता, 3 दिन तक चलता है अनुष्ठान
Chhattisgarh News: नारायणपुर जिले के अबूझमाड़ के प्रवेशद्वार करेलघाटी में हर तीन साल में लच्छन कुंवर देव का जात्रा का आयोजन किया जाता है, जिसका समापन देवी देवताओं को विदाई के साथ शुक्रवार को संपन्न हुआ. इस जात्रा में लच्छन कुंवर परगना के देवी देवता के परिवार के सदस्य कांकेर जिले सहित नारायणपुर और अबूझमाड़ से पहुंचे थे.
तीन दिनों तक चले जात्रा पर्व में वर्षो पुरानी आदिवासी संस्कृति परंपरा का निर्वहन किया और साथ ही अपनी आने वाली पीढ़ी को भी अपनी परंपरा और संस्कृति से रूबरू कराते नजर आए. 6 वर्षीय बालक पर भी देवता आए. बालक ने देवता की पूजा अर्चना कर उनका आशीर्वाद लिया.
जात्रा में देवी-देवताओं की पूजा अर्चना कर लोग ढोल नगाड़े की धुन पर नाचते नजर आए. यहां पर्व के दौरान लोग कील की शकरी से अपने बदन पर मारते है पर उन्हें दर्द नहीं होता, क्योंकि उनके देवी देवता उन पर आते हैं.
कांकेर जिले से आए सहदेव गोटा ने बताया कि नारायणपुर के करेल घाटी में इष्ट देवी होने की जानकारी मिली तो अपनी इष्ट देवी के दर्शन करने 60 वर्ष की आयु में करने पहुंचे हैं.
नक्सल दहशत के बीच जहां अबूझमाड़ में सिर्फ गोलियों की आवाज गूंजा करती है उसी अबूझमाड़ के घने जंगलों के बीच ढोल नगाड़े की आवाज से पूरा अबूझमाड़ गूंज उठा पूरा माहौल भक्तिमय नजर आया.
अबूझमाड़ आदिवासी संस्कृति परंपरा और घने जंगलों, पहाड़ियों के नाम से जाना व पहचाना जाता है. यहां नक्सली दहशत के बावजूद आज भी आदिवासी अपनी परम्परा और संस्कृति का निर्वहन करते आ रहे हैं.
जात्रा पर्व में पहले दिन दिन देवी देवताओं का आगमन हुआ. दूसरे दिन पेड़ और पहाड़ की पूजा अर्चना करने के बाद नीचे ढोल नगाड़ों की थाप पर ग्रामीण नाच गाकर अपनी देवी देवता की पूजा अर्चना करते नजर आए. तीसरे दिन मेले का आयोजन बड़े जमहरी में किया गया. जहां परिक्रमा करने के बाद देवी देवताओं को सम्मान विदाई दी गई.
आदिवासी अपनी परम्परा और संस्कृति से अपनी आने वाली पीढ़ी को अवगत करा रहे हैं, ताकी आगे वे निर्वहन करें. वहीं कई लोग ऐसे भी नजर आए जिन्हें अपनी इष्ट देवी स्थल की जानकारी 65 वर्ष की उम्र के पड़ाव पर मिली और वे दर्शन करने पहुंच गए.
खास बात यह है कि जात्रा के लिए ग्रामीण अपने साथ अपने रुकने की व्यवस्था साथ लेकर चलते हैं. जात्रा स्थल पर अपना डेरा बनाकर वहीं अपने सोने से लेकर खाने की व्यवस्था करते हैं.