लचर व्यवस्था का नतीजा, सड़क न होने से शव को नसीब नहीं हुए चार कंधे, हाथों में झुलाकर ले जानी पड़ी अर्थी

Maihar News: मैहर में ऐसा अंतिम संस्कार हुआ जिसने प्रदेश को शर्मसार कर दिया. एमपी के मैहर में सिस्टम की लचर व्यवस्था सामने आई. जिले से इंसानियत को शर्मसार कर देने वाली तस्वीरें सामने आई हैं. सड़क न होने की वजह से शव को कंधों पर नहीं ले जाया जा सका. अर्थी को हाथों में झुलाकर ले जाना पड़ा. तब जाकर अंतिम संस्कार हुआ.

अभय पांडेय Sat, 13 Jul 2024-11:46 pm,
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सिस्टम की लचर व्यवस्था का शिकार मैहर

पवित्र नगरी के नाम से देश में अलग पहचान रखने वाला जिला मैहर इन दिनों सिस्टम की लचर व्यवस्थाओं का शिकार है. कहने को तो यह जिला है पर यहां के लोग अब भी पिछड़े होने का दंश झेल रहे हैं. आज आज़ादी के 70 साल बाद भी यहां लोग सड़क, बिजली, पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं.

 

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मानवता को शर्मसार करती तस्वीर

एमपी के नवगठित जिला मैहर से आज मानवता को शर्मसार करने वाली एक तस्वीरें सामने आई हैं. जिसने सूबे पर बैठे सिस्टम और सरकार पर सवाल खड़े कर दिए हैं. पवित्र नगरी आज उस वक्त शर्मसार हो गई जब सड़क न होने की वजह से शव को चार कंधे नसीब न हो सके.

 

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ग्राम सुनवारी वार्ड 1 का मामला

दरअसल, मामला मैहर के ग्राम सुनवारी वार्ड 1 का है. जहां गांव के ही रहने वाले युवक बबलू पटेल की सड़क हादसे में मृत्यु हुई. जिसके बाद परिजनों द्वारा शव को अंतिम संस्कार के लिए मुक्ति धाम ले जाया जा रहा था.

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अर्थी ले जाने का उलटा तरीका

मगर यहां अंतिम संस्कार के लिए शव ले जाने का तरीका बिल्कुल उलटा दिखा जो कि तस्वीरों में भी साफ देखा जा सकता है.

 

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सड़क की कमी से जूझते ग्रामीण

ग्रामीणों ने बताया कि गांव में सड़क नहीं है, पतली पगडंडी के सहारे मुक्ति धाम जाने का रास्ता बनाया गया है. जिसमें 4 लोगों का एक साथ चलना मुश्किल है. जिस वजह से अर्थी को लटका कर अंतिम संस्कार के लिए ले जाया गया है.

 

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सिस्टम और सरकार पर उठे सवाल

ग्रामीणों के इस आरोप ने मैहर में बैठे सिस्टम और विकास का दावा करने वाली सरकार पर सवाल खड़े कर दिए हैं.

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अंतिम इच्छा

मृतक के परिजनों का कहना है कि हर मृतक की अंतिम इच्छा चार कंधों पर जाने की होती है. मगर सुविधा न होने की वजह से उनके बेटे की आज यह इच्छा भी अधूरी रह गई. सड़क की मांग पिछले कई वर्षों से चली आ रही है. मगर आज तक कोई सुनवाई नहीं हुई. ऐसे ही जब गांव में कोई बीमार होता है या अंतिम संस्कार करने के लिए जाना होता है तो कई किलोमीटर तक इसी तरह जोखिम उठाना पड़ता है.

रिपोर्ट: नजीम सौदागर (मैहर)

 

 

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