India Indedpendence day 2022: हमारे देश का इतिहास कई महान शख्सियतों से भरा हुआ है. ऐसी ही एक महान शख्सीयत थीं भीकाजी कामा. एक सदी पहले 21 अगस्त 1907 को पहली बार विदेश में भारतीय झंडा भीकाजी कामा (Bhikaji Cama) ने ही फहराया था. भीकाजी कामा ने वंदेमातरम लिखा भारतीय झंडा (Indian Flag) जर्मनी के स्टुटगार्ट में फहराया था. यह उस दौर की बात है, जब इंटरनेशनल सोशलिस्ट कॉन्फ्रेंस में भारतीय झंडे की जगह ब्रिटेन का झंडा फहराया जाता था, उस दौर में भीकाजी कामा ने भारतीय झंडा फहराकर सभी को हैरान कर दिया था. 


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सावरकर ने किया था झंडा डिजाइन
जो झंडा भीकाजी कामा ने जर्मनी में फहराया था, वह भारतीय राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे का प्रारंभिक रूप था. उस झंडे की भीकाजी कामा, श्याम कृष्ण वर्मा और विनायक दामोदर सावरकर ने मिलकर डिजाइन किया था. भीकाजी कामा ने अपना जीवन समाजसेवा में बिताया. उन्होंने सिर्फ देश की आजादी की लड़ाई ही नहीं लड़ी बल्कि महिला अधिकारों के लिए भी उन्होंने लगातार आवाज उठाई. यही वजह थी कि रूस के लोग उन्हें  मदर ऑफ रिवोल्यूशन कहते थे.


देश की आजादी के बाद महिलाओं को भी वोट का अधिकार देने समेत अन्य अधिकार देने की वकालत भी भीकाजी कामा ने की थी. भीकाजी कामा एक प्रभावी पारसी परिवार से ताल्लुक रखती थीं और उनके पिता सोराबजी फरामजी पटेल एक व्यापारी थे. 24 सितंबर 1861 को मुंबई में जन्मीं भीकाजी कामा की शुरुआती पढ़ाई भी मुंबई में ही हुई. 


भीकाजी कामा की शादी साल 1885 में रुस्तमजी कामा के साथ हुई थी लेकिन उनके और उनके पति के विचारों में काफी फर्क था. रुस्तमजी कामा एक वकील थे और उन्हें ब्रिटिश और ब्रिटिश संस्कृति काफी पसंद थी. वहीं भीकाजी कामा अंग्रेजी हुकूमत को नापसंद करती थीं. भीकाजी कामा ने पारसी इंडियन सोसाइटी का गठन किया जो देश के क्रांतिकारियों की मदद करता था. भीकाजी कामा अधिकतर समय देश से बाहर रहीं और यूरोप और अमेरिका से देश की आजादी के लिए फंड जुटाती रहीं. 


जब क्रांतिकारी मदन लाल धींगरा ने एक अंग्रेज अधिकारी सर विलियम हट कर्जन की हत्या कर दी तो ब्रिटिश हुकूमत ने कई भारतीय क्रांतिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की. इन्हीं में एक भीकाजी कामा भी थीं. अंग्रेज हुकूमत ने भीकाजी कामा की संपत्ति सील कर दी थी. हालांकि इसके बावजूद कामा अंग्रेज सरकार के सामने नहीं झुकीं.  


साल 1896 में जब दुनिया में प्लेग महामारी फैली तो भीकाजी कामा ने उस वक्त भी देश में लोगों की सेवा की. हालांकि इसी दौरान वह प्लेग की चपेट में आ गईं. इसके बाद वह इलाज के लिए लंदन चलीं गईं. भीकाजी कामा ने देश के कई क्रांतिकारियों की मदद की, इनमें सावरकर और सेनापति बापट जैसे नाम शामिल हैं. 


सावरकर की किताब फर्स्ट वार ऑफ इंडियन इंडिपेंडेंस को ब्रिटिश हुकूमत ने बैन कर दिया था लेकिन भीकाजी कामा ने इस किताब को भारत में चोरी-छिपे बंटवाया और इसका फ्रैंच भाषा में भी अनुवाद कराया. सावरकर को जब लंदन में गिरफ्तार कर लिया गया था तो उन्हें जेल से छुड़ाने में भी भीकाजी कामा की अहम भूमिका थी. जब अंग्रेजों ने भीकाजी कामा को वापस भारत लौटने की इजाजत दी तो वह पूरे 33 साल बाद अपने देश लौटीं लेकिन यहां लौटने के महज 9 महीने बाद ही 13 अगस्त 1936 को उनका देहांत हो गया.