उत्तराधिकारी के नाम पर पूर्व पीएम ने दिया था यह रोचक जवाब, जानिए अनोखा किस्सा
देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की आज पुण्यतिथि है. जानिए उनकी जिंदगी से जुड़ा एक अनोखा किस्सा.
भोपाल। हर दिन के साथ हर नई तारीख अपने आप में कोई न कोई किस्सा जरूर अपने साथ लेकर आती है. आज देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की पुण्यतिथि है. पंडित नेहरू आजाद भारत के निर्माण में एक बड़ा योगदान रखते हैं. 16 साल 9 महीने और 12 दिन भारत के प्रधानमंत्री रहे पंडित नेहरू के निधन के बाद गुलजारी लाल नंदा को देश का कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनाया गया था. लेकिन क्या आप जानते हैं कि पंडित जवाहर लाल नेहरू से उनकी मौत के कुछ दिन पहले ही जब उनसे उनके उत्ताराधिकारी को लेकर सवाल किया गया था. तो इस पर उन्होंने अनोखा जवाब दिया था.
''मुझे नहीं लगता कि मेरी मौत जल्दी होनी है''_ पंडित नेहरू
दरअसल, पंडित नेहरू का स्वास्थ्य थोड़ा खराब रहने लगा था. ऐसे में उस वक्त कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष रहे के कामराज ने नेहरू को काम थोड़ा कम करने की सलाह दी. हालांकि अपनी अस्वस्था पर नेहरू कभी चिंतित नहीं दिखे. उनकी मौत से महज पांच दिन पहले जब पत्रकारों ने नेहरू से पूछा कि उन्होंने अपने उत्तराधिकारी के रूप में किस नेता को चुना है. तो इस सवाल का जवाब देते हुए पंडित नेहरू ने कहा कि ''मैंने इस बारे में सोचना तो शुरू किया है, लेकिन मुझे नहीं लगता कि मेरी मौत इतनी जल्दी होने वाली है''
पांच दिन बाद हुई मौत
इस घटना के अगले दिन पंडित नेहरू देहरादून यात्रा पर चले गए. जिसके बाद उनकी तबियत अचानक खराब रहने लगी. देहरादून में जब उनके सीने का दर्द बढ़ा तो 26 मई की रात करीब 8 बजे वो दिल्ली पहुंचे. यहां से सीधे प्रधानमंत्री निवास पहुंचे और आराम करने लगे. इतिहास के मुताबिक उस रात वो रातभर करवटें बदलते रहे. उन्हें पीठ और कंधे में दर्द था.
27 मई की सुबह आया था हार्ट अटैक
रातभर तकलीफ के बाद 27 मई को सुबह 06.30 बजे पंडित नेहरू को पहले पैरालिटिक अटैक आया और फिर हार्ट अटैक. इसके बाद वो अचेत हो गए. इंदिरा गांधी ने तुरंत उनके डॉक्टरों को फोन किया. तीन डॉक्टरों ने वहां पहुंच कर अपनी ओर से भरपूर कोशिश की लेकिन नेहरू का शरीर कोमा में पहुंच चुका था. शरीर से कोई रिस्पांस नहीं मिल रहा था, जिससे पता लगे कि इलाज कुछ असर कर भी रहा है या नहीं. कई घंटे की कोशिश के बाद डॉक्टरों ने जवाब दे दिया. इसके बाद 27 मई 1964 की दोपहर के वक्त यह जानकारी पूरे देश को बताई गई कि देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू नहीं रहे. जिसके बाद यह खबर पूरी दुनिया में आग की तरह फैल गई और हर कोई अपने नेता को विदाई देने में लग गया.
अचानक बिगड़ी थी तबीयत
नेहरू की सेहत को लेकर ऐसी कोई बड़ी या गंभीर घटना का जिक्र कहीं नहीं मिलता. उस दौरान उनके पास रहने वाले लोग बताते हैं कि उन्होंने भारत की सेना की मजबूती के लिए बहुत सारे काम किए और वैश्विक स्तर पर मजबूती से उसका सामना भी किया. लेकिन उनमें वह उत्साह देखने को बेशक नहीं मिला जो पहले दिखा करता था.
सबसे लंबे समय तक भारत के प्रधानमंत्री रहें पंडित जवाहरलाल नेहरू
पंडित जवाहरलाल नेहरू सबसे लंबे समय तक भारत के प्रधानमंत्री रहे. उनके करियर की बात की जाए तो पंडित नेहरू ने हैरो और ट्रिनिटी कॉलेज, कैंब्रिज से पढ़ाई की. उन्होंने इनर टेंपल से अपना बैचलर ऑफ लॉ की डिग्री हासिल की थी. जब वह जनवरी 1934 से फरवरी 1935 तक जेल में थे तो अपनी आत्मकथा लिखी जिसका नाम 'टूवार्ड फ्रीडम' है. इसे 1936 में अमेरिका में प्रकाशित किया गया था. उन्होंने पश्चिम के विरोध के तौर पर पश्चिमी परिधान पहनना बंद कर दिया. इसकी जगह वह जो जैकेट पहनते थे, उसका नाम नेहरू जैकेट पड़ गया. वह बच्चों का मुकाबला गुलाब की कली से करते और अपने जैकेट में गुलाब रखा करते थे.
कश्मीरी पंडित थे नेहरू
1950 से 1955 तक कई बार वह नोबेल पीस प्राइज के लिए भी नामित हुए. कुल 11 बार राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों द्वारा उनको नामित किया गया. वह एक असाधारण विद्वान थे. उनके नाम में जो पंडित जुड़ा है, वह इसलिए नहीं कि वह विद्वान थे, दरअसल, उनका संबंध कश्मीरी पंडित से था. इसलिए उनके नाम में पंडित लगता है. पंडित नेहरू ने भारत पर दो किताबे भी लिखी है, Discovery of India डिस्कबरी ऑफ इंडिया और Glimpses of the World गिलेप्स ऑफ था वर्ल्ड.
26 साल में हुई थी शादी
26 साल की उम्र में नेहरू का विवाह 16 साल की कश्मीर ब्राह्मण बालिका से हो गया जिनका नाम कमला कौल था. उनके पिता पुरानी दिल्ली में एक प्रतिष्ठित व्यापारी थी. उनका विवाह 7 फरवरी, 1916 को हुआ था. 28 फवरी, 1936 को तपेदिक की बीमारी से उनका निधन स्विटरजरलैंड में हो गया. 1947 में भारत को आजादी मिलने पर जब भावी प्रधानमंत्री के लिए कांग्रेस में मतदान हुआ तो सरदार वल्लभभाई पटेल और आचार्य कृपलानी को सर्वाधिक मत मिले थे, लेकिन महात्मा गांधी के कहने पर दोनों ने अपना नाम वापस ले लिया और जवाहरलाल नेहरू को प्रधानमंत्री बनाया गया.
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