नई दिल्लीः लाल बहादुर शास्त्री की कद काठी ज्यादा लंबी नहीं थी लेकिन उनका व्यक्तित्व इतना बड़ा था कि वह आज भी देश के करोड़ों लोगों को प्रेरित करते हैं. आज2 अक्टूबर को देश अपने इस लाल की जयंती पर उन्हें याद कर रहा है. साल 1964 में देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के निधन के बाद लाल बहादुर शास्त्री ने प्रधानमंत्री का पद संभाला. वह पंडित नेहरू के बाद देश के दूसरे प्रधानमंत्री थे. जिस वक्त लाल बहादुर शास्त्री ने देश की बागडोर संभाली, वह समय देश के लिए काफी चुनौतीपूर्ण था. 


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खाद्य संकट से बचाया देश!


लाल बहादुर शास्त्री के पद संभालने से 3 साल पहले ही देश ने साल 1962 में चीन के साथ युद्ध को झेला था. वहीं 1965 में देश में गंभीर खाद्य संकट पैदा हो गया. ऐसे मुश्किल हालात में भी लाल बहादुर शास्त्री ने गजब की नेतृत्व क्षमता का परिचय दिया. खाद्य संकट से निपटने के लिए लाल बहादुर शास्त्री ने देशवासियों से हफ्ते में एक दिन उपवास रखने की अपील की. शास्त्री जी की इस अपील का जबरदस्त असर हुआ. साथ ही शास्त्री जी ने देशवासियों से अपील की कि वह खाली पड़ी जमीन में अनाज या सब्जियों का उत्पादन करें. शास्त्री जी की कोशिशों का नतीजा ये रहा कि देश खाद्य संकट के इस मुश्किल दौर को पार कर गया. 


1965 का भारत पाक युद्ध
चीन युद्ध के घाव अभी तक भरे भी नहीं थे कि 1965 में भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान ने हमला बोल दिया. पाकिस्तानी सेना कश्मीर और गुजरात में काफी अंदर तक आ गई थी. ऐसे में वक्त में शास्त्री ने गजब की नेतृत्व क्षमता दिखाई और भारतीय सेना को पंजाब की तरफ से मोर्चा खोलने का आदेश दिया. इसका नतीजा ये हुआ कि भारतीय सेना लाहौर तक पहुंच गई और पाकिस्तान की सेना दबाव में आ गई. आखिरकार संयुक्त राष्ट्र के दखल के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच ताशकंद समझौता हुआ. 


पाकिस्तानी जनरल ने भी की थी तारीफ
जिस वक्त लाल बहादुर शास्त्री ने पीएम पद संभाला, उस वक्त पाकिस्तान में आर्मी जनरल अयूब खान का शासन था. पंडित नेहरू के निधन के बाद अयूब खान ने दिल्ली आने से मना कर दिया था और कहा था कि 'अब वहां (दिल्ली में) कौन है बात करने के लिए?' हालांकि साल 1964 में लाल बहादुर शास्त्री ने पाकिस्तान का दौरा किया. हालांकि अयूब खान लाल बहादुर शास्त्री से प्रभावित नहीं हुआ लेकिन जब भारत पाकिस्तान युद्ध में भारत की सेना लाहौर तक पहुंच गई और सीजफायर हुआ तो अयूब खान भी लाल बहादुर शास्त्री की शख्सीयत का फैन हो गया था. जब ताशकंद समझौते के बाद लाल बहादुर शास्त्री का निधन हो गया था तो उनके अंतिम संस्कार में भारत पहुंचने वाले विदेशी मेहमानों में सबसे पहला नाम अयूब खान का ही था. लाल बहादुर शास्त्री के साथ रहे मशहूर पत्रकार कुलदीप नैयर ने बताया था कि अयूब खान ने लाल बहादुर शास्त्री के पार्थिव शरीर को देखकर कहा था कि 'यही आदमी भारत और पाकिस्तान को एक साथ ला सकता था.'


किस्त पर ली थी कार
लाल बहादुर शास्त्री की सादगी के बारे में बहुत बातें की जाती हैं. लाल बहादुर शास्त्री किन उच्च मूल्यों वाले व्यक्ति थे कि जब लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री थे तो उन्होंने अपनी पहली कार किस्तों पर ली थी. खास बात ये है कि जब लाल बहादुर शास्त्री का निधन हो गया था, उसके बाद तत्कालीन सरकार ने कार के लोन को माफ करने की पेशकश की थी लेकिन लाल बहादुर शास्त्री की पत्नी ने मना कर दिया था और अपनी पेंशन से कार लोन को चुकता किया था.